Hindi, asked by dilipjaiswal0341, 6 months ago

एस्से ऑन रेप ऐसे ऑन रेप इन हिंदी फॉर स्टैंडर्ड 8 ​

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Answered by AdityaRaviShetty7061
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Answer:

आजकल हम टी वी पर देखते हैं अखबारों में

पढ़ते हैं रेप या बलात्कार की आठ दस घटनाएँ

तो रोज हमारे संज्ञान में आती ही हैं कभी कभी

ये घटनाएँ बहुत हृदयविदारक और नृशंस होती

है जैसे गैंगरेप और तड़पाकर कर अमानवीय

तरीके से की गयी हत्या छोटी छोटी बच्चियों

से दरिंदगी बाप या भाई या सगे सम्बन्धी द्वारा

बारम्बार बलात्कार और सम्बंधित महिला या

लड़की की कोई मजबूरी का फायदा उठाकर

उसके साथ बलात्कार ये सब देख या सुनकर

हम आप क्या करते हैं ?कभी कभी मूड ख़राब

हो जाता है कभी ज़माने को कोसते कभी न्याय

व्यवस्था को कभी पुलिस को फिर थोड़े देर बाद

सब भूलकर अपनी दिनचर्या में लग जाते हैं

क्या कभी आपने गौर किया है कि इन घटनाओं

के पीछे कारण क्या हो सकते है कुछ लोग कहते

हैं लड़कियों का खुलापन समाज में उन्हें मिली

नयी नयी आजादी उनके पहिनावे फैशन कुछ

लोग लड़कियों की भ्रूण हत्या और इसके

परिणाम स्वरूप उत्पन्न स्त्री पुरुष अनुपात

में भयंकर अंतर जो हमारे देश के विभिन्न

भागों में बहुतायत है कहीं कहीं ये प्रति हज़ार

सात सौ या इससे भी कम है तो इस स्थिति

में बहुत सारे लड़के कुवारे रहने पर मजबूर हैं

और शारीरिक भूँख के चलते अपराध जनमते हैं

हमारा सामाजिक सोंच कि लड़की बंश नहीं

चलाती उसके लिये लड़के ही चाहिये लड़की की

शादी में दहेज़ भी देना होता है और पगड़ी भी

नीची होती है समधियो के आगे नाक भी

रगडनी पड़ती है और उनके नखरे झेलने

पड़ते हैं अतः बवाल कौन मोल ले लड़की को

गर्भ में ही मार दो बहुत सारी लडकियाँ उचित

देखभाल या नेगलेक्ट से बचपन में ही मर जाती

है और यह स्थिति तब तक नहीं बदलेगी

जबतक हमारी स्त्री जाति के प्रति सोंच नहीं

बदलती हमारी संसद में काफी संख्या में स्त्रियाँ

होते हुवे भी महिला आरक्षण बिल बरसों से

इसी सोंच के कारण लटका है महिलाओं पर

अत्याचार के मामलों में महिलाएं ही काफी आगे

है जिनमे सास ननद जेठानी आदि शामिल होती

हैं उन्हें क्रमशः अपना लड़का भाई या देवर

अचानक दुसरे के अधिकार में जाता दीखता है

और वे अकारण नयी बहू के विरोध में उठ खड़ी

होती हैं सारे यत्न ये होते है कि नवागत कहीं

अपने पति को बस में न कर ले और यदि घर

के पुरुषों ने उसकी उसकी सुन्दरता की या उसके

बनाये खाने की तारीफ कर दी तो ये जलन

और विरोध भड़क उठता है और नयी बहू को

परेशान करने उसे घटिया और निकम्मा साबित

करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है यदि दो तीन

साल में बच्चे नहीं हुए तो बिना डाक्टरी जाँच

उसे बाँझ घोषित करने में जरा भी देर नहीं की

जाती पति के शराबी जुवारीहोनेऔरअय्याशियों के

लिये भी बहू जिम्मेदार घोषित कर दी जाती

है सब उसे ही कोसते है और वो रानी से

नौकरानी बन जाती है हमारे समाज की सोंच

है कि लड़की की डोली ससुराल जाती है और

केवल अर्थी ही वहां से निकलती है अर्थात उसके

मायके का कोई सहयोग या साथ उसे नहीं मिलता

और वो घुटते घुटते एक दिन मर जाती है

हमारा धार्मिक सोंच कि लड़का ही चिता को आग

लगाना चाहिये तभी स्वर्ग मिलता है समाज में

लडको के महत्व को बढाता है विशेष देखभाल

प्यार पढने और आगे बढ़ने के अवसर लड़कों

को मिलते हैं मेधावी होने के बावजूद लड़कियों को

कम योग्य लड़के से सुविधाएँ और अवसर कम दिये

जाते हैं इस सोंच के कारण कि लडकियाँ पढ़ लिख

कर दूसरे के घर को लाभ देंगी हमें नहीं लडकियों के

प्रति हमारा ये ही रवैय्या उन्हें दब्बू और लड़कों को

उद्दंड बना देता है और समाज दोष लड़कों में नहीं

लड़कियोंमें ढूँढने लगता है बलात्कार होने पर लोग दोष

लड़कियों में ढूढने लगते है उसी ने बहकाया होगा वो ही

गलत है हमारे एक नेताजी तो यहाँ तक बोल गये रेप

पर कि लड़कों से गलती हो ही जाती है तो क्या इसके

लिये उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाये हमारी सरकार आएगी तो हम ऐसा कानून

हटा देंगे ये और बात है कि उनकी सरकार नहीं आयी

अब फिर से मुख्य विषय पर लौटते है तमाम

पृष्ट भूमि हमने चर्चा की स्त्रियाँ हमारे समाज का

कमजोर पर महत्वपूर्ण अंग हैं वो माँ भी है बहन भी

बेटी भी और बीबी भी विभिन्न रूपों में वे हमारे

जीवन का अंग हैं उनके बिना समाज की कल्पना नहीं

हो सकती वे नये जीव को संसार में लाती हैं पाल पोस

उसे बड़ा करती है उन्हें हम उपेक्षित कैसे छोड़ सकते

है तो क्या किया जाय जिससे रेप या बलात्कार पर

काबू पाया जा सके..

मेरी समझ में निम्न उपाय कारगर होंगे:-

1-स्त्री पुरुष लिंगानुपात में सुधार लड़कियों

की भ्रूण हत्या पर सख्ती से रोक बचपन में

उनकी अनदेखी से अकाल मृत्यु को रोकना

2-लडकियों की पैदाईश को बढ़ावा उन्हें बचपन

से बढ़ावा दिया जानाजिससेवोआगेबढ़ सकें

3- रेप को जघन्य अपराध घोषित करना और

कड़े दंड के साथ जुर्माने का प्रावधान आदतन

पाये जाने वाले अपराधी को मृत्युदंड की सजा

जो अपराध होने के तीन माह में दे दिया जाना

चाहिये आखिर वोह किसी की जिन्दगी से

खेला ही तो था इसी कड़ी में यह भी महत्वपूर्ण

है कि झूँठे सिद्ध होने पर याचिकाकर्ता को भी

कड़े दंड मिले जिससे झूंठे मामले चलाने वालो

पर रोक लगे और इस कानून का दुरूपयोग

रोका जा सके जो किसी को फ़साने धन वसूली

ब्लैक मेल के लिए उपयोग हो सकता है..

4-समाज का रवैय्या महिलाओ के प्रति बदले

उन्हें आपेक्षित सम्मान मिले रेप पीड़ित महिला

को समाज से सहानुभूति और स्वीकार मिले

धिक्कार नहीं पीड़ित को न्याय दिलाने में

समाज की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता

समाज ये माने और स्वीकार करे कि हमारी बहू

भी किसी की बेटी है और हमारी बेटी को भी

दुसरे घर जाना है यदि ये ही व्यवहार उसके

साथ उसकी ससुराल में हुवा तो क्या हमें

वोस्वीकार होगा एक ऐसे देश में जहाँ नारी दुर्गा

लक्ष्मी सरस्वती जैसे रूपों में पूजी जाती है

उसकी वर्तमान दशा लज्जा की ही बात है

आशा है देश में सही दिशा में सोंच शुरू होगी

और हम इस लज्जा दायक बीमारी रेप या

बलात्कार से निजात पा सकेंगे और अपनी

संगिनी सह धर्मिणी स्त्री जाति को जो माँ भी

है बहन भी बेटी भी पत्नी भी को उचित सम्मान

दिला सकेंगे जिसकी वोह पात्र है और हमारा

गौरव भी है

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