Essay about Dharti in Hindi please
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हमारी पृथ्वी एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र हैं जिनमे दो प्रकार के प्रमुख घटक शामिल हैं- जैविक और अजैविक. जैवमंडल का निर्माण भूमि, गगन, अनिल (वायु), अनल (अग्नि), जल नामक पंचतत्वो से होता हैं. जिसमे हम छोटे-बडें एवं जैव-अजैव विविधताओ के बिच रहते आए हैं. इसमे पेड़, पौधे एवं प्राणियों का निश्चित सामजस्य और सहस्तित्व हैं, जिसे समन्वयात्मक रूप से पर्यावरण के विभिन्न अवयव कहते हैं. पर्यावरण शब्द ‘परि’ और ‘आवरण’ इन दो शब्दों के योग से बना हैं.
‘परि’ और ‘आवरण’ का सम्यक अर्थ हैं- वह आवरण जो हमे चारों ओर से ढके हुए हैं, आवृत किये हुए हैं. प्रकृति और मानव के बीच का मधुर सामजस्य बढ़ती जनसंख्या एवं उपभोगी प्रवृति के कारण घोर संकट में हैं. यह असंतुलन प्रकृति के विरुद्ध तीसरे विश्वयुद्ध के समान हैं. विश्वभर में वनों का विनाश, अवैध एवं असंगत उत्खनन, कोयला, पेंट्रोल, डीजल के उपयोग में अप्रत्याशित अभिवृद्धि और कल-कारखानों के विकास के नाम पर विस्तार ने मानव सभ्यता को महाविनाश की कगार पर ला खड़ा किया हैं.
विश्व की प्रसिद्ध नदियाँ, जैसे- गंगा,यमुना, नर्मदा, राइन, सीन, मॉस, टेम्स आदि भयानक रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं. इसके निकट बसे लोगों का जीवन दूभर हो गया हैं. पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन गैस की मोटी परत हैं. यह धरती के जीवन की रक्षा कवच हैं जिसमे सूर्य से आने वाली हानिकारक किरने रोक ली जाती हैं. किन्तु पृथ्वी के उपर जहरीली गैसों के बादल बढ़ते जाने के कारण सूर्य की अनावश्यक किरणें बाह्य अन्तरिक्ष में प्रवर्तित नही हो पाती हैं जिसके कारण पृथ्वी का तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) बढ़ता जा रहा हैं.
पृथ्वी पर निबंध भाग-2
इससे छोटे बड़े सभी द्वीपसमूहों एवं महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रो के डूब जाने का खतरा बढ़ गया हैं इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं. यही स्थति रही तो मुंबई जैसे महानगर प्रलय की गोद में समा सकते हैं. पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के कारण विश्व सभ्यता को अमृत एवं पोषक जल प्रदान करने वाले ग्लेशियर या तो लुप्त हो गये हैं या लुप्त होने की कगार पर हैं.
अमृतवाहिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री के मूल स्थान से कई किलोमीटर पीछे खीचक चुकी है. प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी के कारण लाखों लोग शरणार्थी बन चुके हैं. विशेष कर अपने भारत में ही बाधों, कारखानों, हाइड्रो पॉवर स्टेशनों के बनने के कारण लाखों वनवासी भाई-बहन बेघर होकर शरणार्थी बने हैं.
पर्यावरण के प्रति गहरी आस्था सवेदनशीलता प्राचीन काल से मिलती हैं. अथर्ववेद में लिखा हैं-‘माता भूमि: पुत्रों प्रथ्विया: अर्थात भूमि माता है, हम पृथ्वी के पुत्र हैं. एक जगह पर यह भी विनय किया गया हैं कि ‘हे पवित्र करने वाली भूमि! हम कोई ऐसा काज ना करे जिससे तेरे ह्रदय को आघात पहुचे. यहाँ ह्रदय को आघात पहुचाने का अर्थ हैं पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्रों अर्थात पर्यावरण के साथ क्रूर छेड़छाड़ करना. हमे प्राकृतिक संसाधनो के अप्राकृतिक एवं बेतहाशा दोहन से बचना होगा.
आज की आवश्यकता इस बात की हैं कि विश्व के तमाम राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे को लेकर आपसी मतभेद भुला दे और अपनी-अपनी जिम्मेदारी इमानदारीपूर्वक निभाए, ताकि समय रहते हुए सर्वनाश से उबरा जा सके. विश्वविनाश से निपटने के लिए सामूहिक एवं व्यक्तिगत प्रयासों की जरुरत हैं, प्रकृति बचाओ अभियान में कई आन्दोलन चल रहे हैं. अरण्य रोदन के बदले अरण्य सरक्षण की बात हो रही हैं. सचमुच हमे आत्मरक्षा के लिए पृथ्वी को बचाना होगा. भूमि माता हैं और हम उसकी सन्तान इस कथन को चरितार्थ करना होगा.
पृथ्वी पर निबंध भाग-3
पृथ्वी को बचाने उपाय
आम जन को बढ़ रहे प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिग की समस्याओ से अवगत करवाए.सभी देश आपसी भेदभाव को भूलकर पृथ्वी बचाने की दिशा में सार्थक कदम उठाएं.पृथ्वी और पर्यावरण बचाने बाबत आयोजित कार्यक्रमों को विश्व के सभी देशो में आयोजन किया जाए.वृक्षों की कटाई पर पूर्ण रोकथाम लगाकर, पोधरोपण को बढ़ावा देने के प्रयत्न किये जाने चाहिए.प्राकृतिक संसाधनो के अंधाधुंध उपयोग पर सीमाए लगाना जरुरी हैं.3R यानि पुन: निर्माण, फिर उपयोग और उससे अपशिष्ट के भी उपयोग की व्यवस्था अपनाई जाएं.अधिक वायु प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों और कलकारखानो पर पूर्णत रोक.कम प्रदूषण फैलाने और कम ईंधन के उपयोगी वाहनों को बढ़ावा दिया जाए.सेव अर्थ (पृथ्वी बचाओं) की दिशा में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मान दिया जाए.विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में पृथ्वी के बारे जागरूकता फैलाने के निबंध पाठ्यक्रम में स्थान मिले.कोयले से बिजली उत्पादन की बजाय सौर उर्जा को बढ़ावा दिया जाए.
हमारी पृथ्वी को बचाने के लिए प्रत्येक विद्यार्थी, नौजवान, महिला,स्थानीय सरकार, केंद्र सरकार, विभिन्न देशो के संगठन और गैर सरकारी संस्थाओ के सयुक्त प्रयासों से बढती प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का हल किया जा सकता हैं. आज से हमे सभी को यह प्रण लेना चाहिए, कि हम कोई ऐसा कृत्य नही करेगे जिससे हमारी पृथ्वी और पर्यावरण को नुकसान पहुचे या उनके लिए नुकसान देह हो.
–प्रभु नारायण
‘परि’ और ‘आवरण’ का सम्यक अर्थ हैं- वह आवरण जो हमे चारों ओर से ढके हुए हैं, आवृत किये हुए हैं. प्रकृति और मानव के बीच का मधुर सामजस्य बढ़ती जनसंख्या एवं उपभोगी प्रवृति के कारण घोर संकट में हैं. यह असंतुलन प्रकृति के विरुद्ध तीसरे विश्वयुद्ध के समान हैं. विश्वभर में वनों का विनाश, अवैध एवं असंगत उत्खनन, कोयला, पेंट्रोल, डीजल के उपयोग में अप्रत्याशित अभिवृद्धि और कल-कारखानों के विकास के नाम पर विस्तार ने मानव सभ्यता को महाविनाश की कगार पर ला खड़ा किया हैं.
विश्व की प्रसिद्ध नदियाँ, जैसे- गंगा,यमुना, नर्मदा, राइन, सीन, मॉस, टेम्स आदि भयानक रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं. इसके निकट बसे लोगों का जीवन दूभर हो गया हैं. पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फियर में ओजोन गैस की मोटी परत हैं. यह धरती के जीवन की रक्षा कवच हैं जिसमे सूर्य से आने वाली हानिकारक किरने रोक ली जाती हैं. किन्तु पृथ्वी के उपर जहरीली गैसों के बादल बढ़ते जाने के कारण सूर्य की अनावश्यक किरणें बाह्य अन्तरिक्ष में प्रवर्तित नही हो पाती हैं जिसके कारण पृथ्वी का तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) बढ़ता जा रहा हैं.
पृथ्वी पर निबंध भाग-2
इससे छोटे बड़े सभी द्वीपसमूहों एवं महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रो के डूब जाने का खतरा बढ़ गया हैं इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं. यही स्थति रही तो मुंबई जैसे महानगर प्रलय की गोद में समा सकते हैं. पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के कारण विश्व सभ्यता को अमृत एवं पोषक जल प्रदान करने वाले ग्लेशियर या तो लुप्त हो गये हैं या लुप्त होने की कगार पर हैं.
अमृतवाहिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री के मूल स्थान से कई किलोमीटर पीछे खीचक चुकी है. प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी के कारण लाखों लोग शरणार्थी बन चुके हैं. विशेष कर अपने भारत में ही बाधों, कारखानों, हाइड्रो पॉवर स्टेशनों के बनने के कारण लाखों वनवासी भाई-बहन बेघर होकर शरणार्थी बने हैं.
पर्यावरण के प्रति गहरी आस्था सवेदनशीलता प्राचीन काल से मिलती हैं. अथर्ववेद में लिखा हैं-‘माता भूमि: पुत्रों प्रथ्विया: अर्थात भूमि माता है, हम पृथ्वी के पुत्र हैं. एक जगह पर यह भी विनय किया गया हैं कि ‘हे पवित्र करने वाली भूमि! हम कोई ऐसा काज ना करे जिससे तेरे ह्रदय को आघात पहुचे. यहाँ ह्रदय को आघात पहुचाने का अर्थ हैं पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्रों अर्थात पर्यावरण के साथ क्रूर छेड़छाड़ करना. हमे प्राकृतिक संसाधनो के अप्राकृतिक एवं बेतहाशा दोहन से बचना होगा.
आज की आवश्यकता इस बात की हैं कि विश्व के तमाम राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे को लेकर आपसी मतभेद भुला दे और अपनी-अपनी जिम्मेदारी इमानदारीपूर्वक निभाए, ताकि समय रहते हुए सर्वनाश से उबरा जा सके. विश्वविनाश से निपटने के लिए सामूहिक एवं व्यक्तिगत प्रयासों की जरुरत हैं, प्रकृति बचाओ अभियान में कई आन्दोलन चल रहे हैं. अरण्य रोदन के बदले अरण्य सरक्षण की बात हो रही हैं. सचमुच हमे आत्मरक्षा के लिए पृथ्वी को बचाना होगा. भूमि माता हैं और हम उसकी सन्तान इस कथन को चरितार्थ करना होगा.
पृथ्वी पर निबंध भाग-3
पृथ्वी को बचाने उपाय
आम जन को बढ़ रहे प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिग की समस्याओ से अवगत करवाए.सभी देश आपसी भेदभाव को भूलकर पृथ्वी बचाने की दिशा में सार्थक कदम उठाएं.पृथ्वी और पर्यावरण बचाने बाबत आयोजित कार्यक्रमों को विश्व के सभी देशो में आयोजन किया जाए.वृक्षों की कटाई पर पूर्ण रोकथाम लगाकर, पोधरोपण को बढ़ावा देने के प्रयत्न किये जाने चाहिए.प्राकृतिक संसाधनो के अंधाधुंध उपयोग पर सीमाए लगाना जरुरी हैं.3R यानि पुन: निर्माण, फिर उपयोग और उससे अपशिष्ट के भी उपयोग की व्यवस्था अपनाई जाएं.अधिक वायु प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों और कलकारखानो पर पूर्णत रोक.कम प्रदूषण फैलाने और कम ईंधन के उपयोगी वाहनों को बढ़ावा दिया जाए.सेव अर्थ (पृथ्वी बचाओं) की दिशा में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मान दिया जाए.विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में पृथ्वी के बारे जागरूकता फैलाने के निबंध पाठ्यक्रम में स्थान मिले.कोयले से बिजली उत्पादन की बजाय सौर उर्जा को बढ़ावा दिया जाए.
हमारी पृथ्वी को बचाने के लिए प्रत्येक विद्यार्थी, नौजवान, महिला,स्थानीय सरकार, केंद्र सरकार, विभिन्न देशो के संगठन और गैर सरकारी संस्थाओ के सयुक्त प्रयासों से बढती प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का हल किया जा सकता हैं. आज से हमे सभी को यह प्रण लेना चाहिए, कि हम कोई ऐसा कृत्य नही करेगे जिससे हमारी पृथ्वी और पर्यावरण को नुकसान पहुचे या उनके लिए नुकसान देह हो.
–प्रभु नारायण
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this is short essay in Hindi on Dharti
I MAY THIS WILL HELP YOU
MARK ME AS BRAINLIEST
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