Hindi, asked by suryansh83, 1 year ago

Essay for dowry system: a curse in hindi

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Answered by ips420
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प्रात: काल जब हम समाचार-पत्र खोलते हैं तो प्रतिदिन यह समाचार पढ़ने को मिलता है कि आज दहेज के कारण युवती को प्रताड़ित किया तो कभी उसे घर से निकाल दिया या फिर उसे जलाकर मार डाला । दहेज प्रथा हमारे देश और समाज के लिए अभिशाप बन गई है ।

यह प्रथा समाज में सदियों से विद्‌यमान है । सामाजिक अथवा प्रशासनिक स्तर पर समय-समय पर इसे रोकने के लिए निरंतर प्रयास भी होते रहे हैं परंतु फिर भी इस कुप्रथा को दूर नहीं किया जा सका है । अत: कहीं न कहीं इस कुत्सित प्रथा के पीछे पुरुषों का अहं; लोभ एवं लालच काम कर रहा है ।

प्रारंभ में पिता अपनी पुत्री के विवाह के समय उपहार स्वरूप घर-गृहस्थी से जुड़ी अनेक वस्तुएँ सहर्ष देता था । इसमें वर पक्ष की ओर से कोई बाध्यता नहीं होती थी । धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदलता चला गया और आधुनिक समय में यह एक व्यवसाय का रूप ले चुका है ।

विवाह से पूर्व ही वर पक्ष के लोग दहेज के रूप में वधू पक्ष से अनेक माँगे रखते हैं जिनके पूरा होने के आश्वासन के पश्चात् ही वे विवाह के लिए तैयार होते हैं । किसी कारणवश यदि वधू का पिता वर पक्ष की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो वधू को उसका दंड आजीवन भोगना पड़ता है । कहीं-कहीं तो लोग इस सीमा तक अमानवीयता पर आ जाते हैं कि इसे देखकर मानव सभ्यता कलंकित हो उठती है ।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम को सबसे अधिक उन लड़कियों को भोगना पड़ता है जो निर्धन परिवार की होती हैं । पिता वर पक्ष की माँगों को पूरा करने के लिए सेठ, साहूकारों से कर्ज ले लेता है जिसके बोझ तले वह जीवन पर्यत दबा रहता है I

कुछ लोगों की तो पैतृक संपत्ति भी बिक जाती है । ऐसा नहीं है कि उच्च घरों के लोग इससे अछूत रहे हैं । उधर मनचाहा दहेज न मिलने पर नवयुवतियाँ प्रताड़ित की जाती हैं ताकि पुन: वापस जाकर वे अपने पिता से वांछित दहेज ला सकें ।

कभी-कभी यह प्रताड़ना बर्बरता का रूप लेती है जब नवविवाहिता को लोग जलाकर मार देते हैं अथवा उसकी हत्या कर देते हैं तथा उसे आत्महत्या का नाम देकर अपने कृत्यों पर परदा डाल देते हैं । कहीं-कहीं तो ऐसी स्थिति बन गई है कि दहेज के भय से ‘अल्ट्रासाउंड’ द्‌वारा पता लगाकर लोग कन्याओं को जन्म से पूर्व ही मार देते हैं ।

प्रशासनिक स्तर पर दहेज प्रथा को रोकने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं । कानून की दृष्टि में दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है । इसका पालन न करने वाले को कारावास तथा आर्थिक जुर्माना भी वहन करना पड़ सकता है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व एवं इसके पश्चात् भी समय-समय पर अनेक समाज सुधारकों व समाज सेवी संस्थाओं ने इसके विरोध में आवाज उठाई है परंतु इतने प्रयासों के बाद भी हमें आशातीत सफलता नहीं मिल सकी है ।

दहेज प्रथा की जड़ें बहुत गहरी हैं । यह केवल सरकार या किसी व्यक्ति विशेष के द्‌वारा नहीं रोकी जा सकती अपितु सामूहिक प्रयासों से ही हम इस बुराई को नष्ट कर सकते हैं । विशेष तौर पर युवा वर्ग का योगदान इसमें अपेक्षित है । युवाओं को इसके दुष्परिणामों के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक होना पड़ेगा तथा अपने परिवार व समाज को भी इसके लिए जागरूक करना होगा ।

इसके अतिरिक्त हमें हर उस व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर बहिष्कृत करना होगा जो दहेज प्रथा का समर्थन करता है । निस्संदेह ऐसे प्रयासों से आशा की किरण जागेगी और पुन: हम दहेज प्रथा विहीन समाज का निर्माण कर सकेंगे । युवक-युवतियों को इस मामले में सर्वाधिक सजगता दिखानी होगी ।

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