Hindi, asked by MahithaVarshini9919, 1 year ago

Essay for prem vistar h and swath sankuchan in hondo

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Answered by shishir303
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              प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन  है

प्रेम विस्तार है स्वार्थ सकुंचन है ये उद्गार भारत के महान दार्शनिक संत स्वामी विवेकानंद द्वारा व्यक्त किये गये हैं। स्वामी जी द्वारा कही गई यह पंक्तियां एकदम सटीक और हर युग के  समयानुकूल हैं।

प्रेम की हम परिभाषा जानने का प्रयत्न करें तो हमें समझना पड़ेगा कि तो प्रेम क्या है। प्रेम एक अहसास है जो केवल व्यक्त और अनुभव ही किया जा सकता है। प्रेम सकारात्मकता का प्रतीक है। प्रेम को अपनाकर हम अपने जीवन में अपने विचारों को सकारात्मक बनाते हैं। जब हमारे विचार सकारात्मक बनते हैं तो हमारे आसपास का वातावरण भी सकारात्मक बनता है। हमारे चरित्र और आचरण में विविधता आती है। हमारा सामना और संपर्क भी सकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों से होता है, या हम अपने संपर्क में आने वाले व्यक्ति को सकारात्मक बना देते हैं। यहीं से हमारा विस्तार प्रारंभ होता है।

प्रेम एक ऐसा गुण है जिसको अपनाने पर वो हमारे अंदर एक दिव्य आभा उत्पन्न कर देता है। एक ऐसी आभा जो सबको आकर्षित करती है।  

दूसरी तरफ स्वार्थी रहकर हम स्वयं को अपने अंदर ही समेट लेते हैं क्योंकि हम अपनी दुनिया में सिमट जाते हैं। स्वार्थ हमें केवल स्वयं के बारे में ही सोचने को विवश कर देता है, जिसके कारण हमें आसपास अपने हित के अलावा और कुछ नजर नहीं आता और हमारी दुनिया छोटी होती जाती है, सकुंचित हो जाती है इस प्रकार स्वार्थ हमें सकुंचन की ओर ले जाता है।

प्रेम जीवंतता का प्रतीक है। क्योंकि जिसने प्रेम करना और प्रेम बांटना सीख लिया वो ही जीवित है, वो जीवन का सच्चे अर्थों में आनंद ले सकता है। जहाँ प्रेम है, वहाँ दया, करुणा, ममता जैसे संवेदी गुण अवश्य होंगे। जो इन सद्गुणों से युक्त वो ही उत्तम मानव है।

स्वार्थी बनने की प्रवृत्ति नकारात्मकता का प्रतीक है। नकारात्मकता जीवंतता नही बल्कि मृत्यु का प्रतीक है। इस पृथ्वी पर अगर सब लोग स्वार्थी होते तो आज वैसा संसार ही नही होता जैसा आज है। शायद संसार का अस्तित्व ही समाप्त हो गया होता। संसार में अनेक लोग ऐसे हुये हैं जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर परमार्थ के कार्य में लगे, तभी तो ये सुंदर संसार बन पाया।  

इसलिये अपने स्वार्थ का परित्याग करके जीवन में प्रेम को अपनाओ। सब से प्रेम करो। इस प्रकृति से प्रेम करो, प्राणियों से प्रेम करो। इस संसार से प्रेम करो। आपका विस्तार निरंतर होता जायेगा। आप स्वार्थी बनोगे तो आप संकुचित होते जाओगे और एक दिन असमय काल के ग्रास बन जाओगे।

याद रखिये हम केवल उन्हीं लोगों को याद रखते हैं जिन्होंने समाज के लिये कुछ किया। समाज में प्रेम बांटा। जो केवल स्वार्थी बने रहे उनका नाम कौन जानता है।

जो प्रेम से भरा है वही जी रहा है, जो स्वार्थी है वो निरंतर मृत्यु की ओर बढ़ रहा है।

इसलिये प्रेम विस्तार है, और स्वार्थ संकुचन है।

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