essay in hindi about jasalmer
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जैसलमेर किले में दुनिया की सबसे बड़ी किलेबंदी की है। यह किला जैसलमेर किले में स्थित है, जो भारत के राजस्थान राज्य में आता है। यह एक वर्ल्ड हेरिटेज साईट है। इसका निर्माण 1156 AD में राजपूत शासक रावल जैसल ने किया था, इसीलिये किले का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया था।
जैसलमेर किला थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर खड़ा है और यहाँ काफी इतिहासिक लड़ाईयां भी हुई है। किले में भारी पीले रंग के बलुआ पत्थरो की दीवारे बनी है। दिन के समय सूरज की रौशनी में इस किले की दीवारे हल्के सुनहरे रंग की दिखती है। इसी कारण से यह किला सोनार किला या गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह किला शहर के बीचो बिच बना हुआ है और जैसलमेर की इतिहासिक धरोहर के रूप में लोग उस किले को देखने आते है।
जैसलमेर किला 1156 CE में रावल जैसल ने बनवाया था। जैसल गौर के सुल्तान द्वारा बनाये षड्यंत्र में फस गया ताकि वह उसके प्रदेश को अपने भतीजे भोजदेव से बचा सके। किले की एक और महत्वपूर्ण घटना 1276 में घटी जब जेत्सी के राजा ने दिल्ली के सुल्तान से परेशान होकर उसपर आक्रमण किया।
56 दुर्ग की चढ़ाई 3700 सैनिको ने की थी। आक्रमण के 8 सालो बाद सुल्तान की आर्मी ने महल का विनाश कर दिया। उस समय भाटियो ने किले को नियंत्रित किया लेकिन उनके पास ताकत का कोई साधन नही था। 1306 में दोदू द्वारा बलपूर्वक राठौर को बाहर निकालने की बहादुरी के लिये उन्हें ही किले का रावल चुना गया।
और तभी से उन्होंने किले का निर्माण करना शुरू किया। लेकिन रावल मुग़ल साम्राज्य के हमलो को सहन नही कर सका और परिणामस्वरूप 1570 में वह अकबर की शरण में चला गया और अपनी बेटी का विवाह भी उससे करा दिया।
मध्यकाल में पर्शिया, अरबिया, इजिप्त और अफ्रीका से व्यापार करते हुए इस शहर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। किले में दीवारों की 3 परते है। किले की बाहरी और निचली परत ठोस पत्थरो से बनी हुई है. दूसरी और बिच वाली परत किले के चारो तरह साँप के आकार में बनी हुई है। एक बार राजपुतो ने दीवारों के बीच से अपने दुश्मनों के उपर उबला हुआ पानी और तेल फेका था और दूसरी और तीसरी दीवार के बिच उन्हें घेर लिया था। इस प्रकार किले की सुरक्षा के लिये कुल 99 दुर्ग बनाये गये थे जिनमे से 92 दुर्ग 1633 से 1647 के बीच बनाये गये थे।
13 वी शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने किले पर आक्रमण किया और उसे हासिल कर लिया और 9 साल तक उसने किले को अपने नियंत्रण में ही रखा। किले की घेराबंदी के समय राजपूत महिलाओ ने अपनेआप को जौहर में समर्पित किया। किले की दूसरी लड़ाई 1541 में हुई थी जब मुग़ल शासकहुमायूँ ने जैसलमेर पर हमला किया था।
1762 तक किले पर मुग़लों का ही नियंत्रण था इसके बाद में किले को महारावल मूलराज ने नियंत्रित किया। किला एकांत जगह पर बसा होने के कारण किले ने मराठाओ के इंतकाम का बचाव किया।
पूर्व भारतीय कंपनी और मूलराज के बीच 12 दिसम्बर 1818 को हुए समझौते के कारण राजा को ही किले का उत्तराधिकारी माना गया और आक्रमण के समय उन्हें सुरक्षा भी प्रदान की जाती थी। 1820 में मूलराज की मृत्यु के बाद उनके पोते गज सिंह ने शासन को अपने हाथो में ले लिया।
ब्रिटिश नियमो के आते ही बॉम्बे बंदरगाह पर समुद्री व्यापार की शुरुवात हुई, इससे बॉम्बे का तो विकास हुआ लेकिन जैसलमेर की आर्थिक स्थिति नाजुक होती गयी। स्वतंत्रता और भारत के विभाजन के बाद प्राचीन व्यापार यंत्रणा पूरी तरह से बंद हो चुकी थी। लेकिन फिर 1965 और 1971 में भारत-पकिस्तान युद्ध के समय जैसलमेर किले ने अपनी महानता को प्रमाणित किया था।
जैसलमेर किला इतना विशाल है की वहा की पूरी जनता उस किले के अन्दर रह सकती है और आज भी वहा 4000 लोग रहते है जिनमे से बहोत से ब्राह्मण और दरोगा समुदाय के है। ये लोग भाटी शासको की निगरानी में काम करते थे और तभी से वे उसी किले में रह रहे है। लेकिन फिर जैसे-जैसे जैसलमेर की जनसंख्या बढती गयी वैसे-वैसे लोग त्रिकुटा पर्वत के निचे भी रहने लगे थे।
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जैसलमेर किला थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर खड़ा है और यहाँ काफी इतिहासिक लड़ाईयां भी हुई है। किले में भारी पीले रंग के बलुआ पत्थरो की दीवारे बनी है। दिन के समय सूरज की रौशनी में इस किले की दीवारे हल्के सुनहरे रंग की दिखती है। इसी कारण से यह किला सोनार किला या गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह किला शहर के बीचो बिच बना हुआ है और जैसलमेर की इतिहासिक धरोहर के रूप में लोग उस किले को देखने आते है।
जैसलमेर किला 1156 CE में रावल जैसल ने बनवाया था। जैसल गौर के सुल्तान द्वारा बनाये षड्यंत्र में फस गया ताकि वह उसके प्रदेश को अपने भतीजे भोजदेव से बचा सके। किले की एक और महत्वपूर्ण घटना 1276 में घटी जब जेत्सी के राजा ने दिल्ली के सुल्तान से परेशान होकर उसपर आक्रमण किया।
56 दुर्ग की चढ़ाई 3700 सैनिको ने की थी। आक्रमण के 8 सालो बाद सुल्तान की आर्मी ने महल का विनाश कर दिया। उस समय भाटियो ने किले को नियंत्रित किया लेकिन उनके पास ताकत का कोई साधन नही था। 1306 में दोदू द्वारा बलपूर्वक राठौर को बाहर निकालने की बहादुरी के लिये उन्हें ही किले का रावल चुना गया।
और तभी से उन्होंने किले का निर्माण करना शुरू किया। लेकिन रावल मुग़ल साम्राज्य के हमलो को सहन नही कर सका और परिणामस्वरूप 1570 में वह अकबर की शरण में चला गया और अपनी बेटी का विवाह भी उससे करा दिया।
मध्यकाल में पर्शिया, अरबिया, इजिप्त और अफ्रीका से व्यापार करते हुए इस शहर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। किले में दीवारों की 3 परते है। किले की बाहरी और निचली परत ठोस पत्थरो से बनी हुई है. दूसरी और बिच वाली परत किले के चारो तरह साँप के आकार में बनी हुई है। एक बार राजपुतो ने दीवारों के बीच से अपने दुश्मनों के उपर उबला हुआ पानी और तेल फेका था और दूसरी और तीसरी दीवार के बिच उन्हें घेर लिया था। इस प्रकार किले की सुरक्षा के लिये कुल 99 दुर्ग बनाये गये थे जिनमे से 92 दुर्ग 1633 से 1647 के बीच बनाये गये थे।
13 वी शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने किले पर आक्रमण किया और उसे हासिल कर लिया और 9 साल तक उसने किले को अपने नियंत्रण में ही रखा। किले की घेराबंदी के समय राजपूत महिलाओ ने अपनेआप को जौहर में समर्पित किया। किले की दूसरी लड़ाई 1541 में हुई थी जब मुग़ल शासकहुमायूँ ने जैसलमेर पर हमला किया था।
1762 तक किले पर मुग़लों का ही नियंत्रण था इसके बाद में किले को महारावल मूलराज ने नियंत्रित किया। किला एकांत जगह पर बसा होने के कारण किले ने मराठाओ के इंतकाम का बचाव किया।
पूर्व भारतीय कंपनी और मूलराज के बीच 12 दिसम्बर 1818 को हुए समझौते के कारण राजा को ही किले का उत्तराधिकारी माना गया और आक्रमण के समय उन्हें सुरक्षा भी प्रदान की जाती थी। 1820 में मूलराज की मृत्यु के बाद उनके पोते गज सिंह ने शासन को अपने हाथो में ले लिया।
ब्रिटिश नियमो के आते ही बॉम्बे बंदरगाह पर समुद्री व्यापार की शुरुवात हुई, इससे बॉम्बे का तो विकास हुआ लेकिन जैसलमेर की आर्थिक स्थिति नाजुक होती गयी। स्वतंत्रता और भारत के विभाजन के बाद प्राचीन व्यापार यंत्रणा पूरी तरह से बंद हो चुकी थी। लेकिन फिर 1965 और 1971 में भारत-पकिस्तान युद्ध के समय जैसलमेर किले ने अपनी महानता को प्रमाणित किया था।
जैसलमेर किला इतना विशाल है की वहा की पूरी जनता उस किले के अन्दर रह सकती है और आज भी वहा 4000 लोग रहते है जिनमे से बहोत से ब्राह्मण और दरोगा समुदाय के है। ये लोग भाटी शासको की निगरानी में काम करते थे और तभी से वे उसी किले में रह रहे है। लेकिन फिर जैसे-जैसे जैसलमेर की जनसंख्या बढती गयी वैसे-वैसे लोग त्रिकुटा पर्वत के निचे भी रहने लगे थे।
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