Hindi, asked by touhidahmed6, 1 year ago

ESSAY IN HINDI ABOUT NATURAL BEAUTY OF ASSAM

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Answered by chhayag39
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1. भूमिका:

पौराणिक काल का प्राग्ज्योतिषपुर आज का असम प्रदेश है । विशाल भारतवर्ष के प्रांगण में उत्तर पूर्वी छोर पर ‘पूर्व की ज्योति’ के नाम से विख्यात यहप्रदेश वन प्रदेशों, नदियों, झरनों और सुन्दर पर्वतमालाओं से भरा है । इसके उत्तर में अरुणाचल प्रदेश और भूटान, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में पश्चिम बंगाल तथा बला देश और पूरब में मणिपुर, नागालैंड तथा म्यांमार (बर्मा) स्थित हैं । इसकी राजधानी गुवाहाटी (दिसपुर) है ।


2. इतिहास:

हमारा असम पौराणिक काल से विचित्रताओं और जादू-टोने का देश कहा जाता रहा है । अहोमों के यहाँ आने से पहले महाभारत काल से नरकासुर के अत्याचारों से इस प्रदेश को मुक्त करने के लिए द्वारका के राजा श्रीकृष्ण यहाँ पधारे थे ।


उनके पोते अनिरुद्ध को राजा बाण द्वारा बन्दी बना लिए जाने पर श्रीकृष्ण और बाण के बीच युद्ध का भी वर्णन मिलता है । इसके पूर्व राजा भगदत्त ने महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की मदद भी की थी । 12वीं सदी से लेकर 19वीं शताब्दी तक इस प्रदेश पर अहोमवंशी शासकों का अच्छा शासन रहा ।


इन शासकों में प्रथम राजा चुकाफा के पश्चात् गदाधर सिंह और शिवसिंह की असम के इतिहास में विशेष ख्याति है । अंग्रेजी शासन के दौरान आजादी की लड़ाई में मणिराम देवान, पियालि बरुवा, तरुणराम फुकन, गोपीनाथ बरदलै, कनकलता आदि देशभक्तों ने असम की भूमि पर अपने प्राणों का बलिदान देकर इसमें एकता, आजादी और आपसी प्रेम का बीज बोने का प्रयत्न किया ।


आज का असम:


कुल 78,438 वर्ग किलोमीटर भूमि वाला आज का यह असम 26 जिलों में बँटा हुआ है । निचले असम और ऊपरी असम नाम से यह दो मुख्य भागों में विभक्त है । इस राजनैतिक विभाजन (Political division) के बावजूद अनुपम प्राकृतिकसौंदर्य वाला सम्पूर्ण असम सभ्यता और संस्कृति (Civilisation and culture) की दृष्टि से एक समान है ।


13वीं शताब्दी में जो धर्म की ज्योति श्रीमंत शंकरदेव तथा उनके शिष्यों ने जलायी थी वह आज भी यहाँ रहने वाले भिन्न जाति-सम्प्रदायों केलोगों केमन में ‘आमि अखमीया नहओं दुखीया’ की प्रेरणा के रूप में जल रही है । बिहू के रूप में हमारे असम की यह एकता और सुन्दरता और भी निखर उठती है ।


4. उपसंहार:

हमारा प्यारा असम केवल अपने नाम से ही असमान है किन्तु वास्तव में इस सुन्दर प्रदेश में, कामाख्या, भुवनेश्वरी आदि जैसी देवियों की गोद में जितनी समानता है, उतनी अन्य स्थानों पर होना अभी शेष है ।




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