essay in Hindi for Jivan Mein Sanskar ka mahatva
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हिन्दू संस्कृति बहुत ही विलक्षण है. इसके सभी सिध्दातं पूर्णतः वैज्ञानिक है और सभी सिध्दातॊं का एकमात्र उद्देश्य है- मनुष्य का कल्याण करना. मानव का कल्याण सुगमता एवं शीघ्रता से कैसे हो, इसके लिए जितना गंभीर विचार और चिन्तन भारतीय संस्कृति में किया गया है उतना अन्य किसी धर्म या संप्रदाय में नहीं, जन्म से मृत्यु पर्यन्त मानव जिन-जिन वस्तुओं से संपर्क मे आता है और जो-जो क्रियाएँ करता है, उन सबकॊ हमारे देवतुल्य मनीषियों ने बडे ही परिश्रम और बडे ही वैज्ञानिक ढंग से सुनियोजित, मर्यादित एवं सुसंस्कृत किया है, ताकि सभी मनुष्य परम श्रेय की प्राप्ति कर सकें.
मानव जीवन में संस्करों का बडा महत्व है. संस्कार संपन्न संतान ही गृहस्थाश्रम की सफ़लता और समृध्दि का रहस्य है. प्रत्येक गृहस्थ अर्थात माता-पिता का परम कर्तव्य बनता है कि वे अपने बालकों को नौतिक बनायें और कुसंस्कारों से बचाकर बचपन से ही उनमें अच्छे आदर्श तथा संस्कारों का ही बीजारोपण करें.
घर संस्कारों की जन्मस्थलि है. अतः संस्कारित करने का कार्य हमें अपने घर से प्रारम्भ करना होगा. संस्कारों का प्रवाह बडॊं से छॊटॊं की ओर होता है. बच्चे उपदेश से नहीं ,अनुसरण से सीखते हैं. बालक की प्रथम गुरु माता अपने बालक में आदर,स्नेह एवं अनुशासन-जैसे गुणॊं का सिंचन अनायास ही कर देती है परिवाररुपी पाठशाला मे बच्चा अच्छे और बुरे का अन्तर समझाने का प्रयास करता है. जब इस पाठशाला के अध्यापक अर्थात माता-पिता, दादा-दादी संस्कारी होंगे, तभी बच्चों के लिए आदर्श उपस्थित कर सकते है. आजकल माता-पिता दोनों ही व्यस्तता के कारण बच्चों मे धैर्यपूरक सुसंस्कारों के सिंचन जैसा महत्वपूर्ण कार्य उपेक्षित हो रहा है. आज अर्थ की प्रधानता बढ रही है. कदाचित माता-पिता भौतिक सुख-साधन उपलब्ध कराकर बच्चों को सुखी और खुश रखने की परिकल्प्ना करने लगे हैं. इस भ्रांतिमूलक तथ्य को जानना होगा. अच्छा संस्काररुपी धन ही बच्चों के पास छोडने का मानस बनाना होगा एवं इसके लिए माता- पिता स्वय़ं को योग्य एवं सुसंस्कृत बनावें. उनकी विवेकवती बुध्दि को जाग्रत कर आध्यात्म-पथ पर आरुढ होना होगा. आनुवांशिकता और माँ के अतिरिक्त संस्कार का तीसरा स्त्रोत बालक का वह प्राकृतिक तथा सामाजिक परिवेश है, जिसमें वह जन्म लेता है, पलता है और बढता है. प्राकृतिक परिवेश उसके आहार-व्यवहार, शरीर के रंग-रुप का निर्णायक होता है, आदतें बनाता है. .सामाजित परिवेश के अन्तर्गत परिवार ,मुहल्ला,गांव और विध्द्यालय के साथी, सहपाठी, मित्र, पडौसी तथा अध्यापकगण आते हैं. बालक समाज में जैसे आचरण और स्वभाव की संगति मे आता है, वैसे ही संस्कार उसके मन पर बध्दमूल हो जाते हैं प्रत्येक समाज की संगति की एक जीवन-पध्दति होती है, जिसके पीछे उस समाज की परम्परा और इतिहास होते हैं. यह समाज रीति-रिवाज बनाता है, सांस्कृतिक प्रशिक्षण देता है , स्थायीभाव जगाता है, अन्तश्चेतना तथा पाप-पुण्य की अवधारणा की रचना करता है. उसी क्रम में भारतवर्ष में सोलह संस्कारों की परम्परा है जो मनुष्य और मनुष्य के बीच, मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्धसूत्र बुनते है. प्रत्येक धर्म-संस्कृति मे विवाह आदि के विधान के पीछे धार्मिक आस्था जुडी हुई होती है. पवित्र भावों और आस्था का सूत्र अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और पूज्यभाव से प्रेरित होता है. यह सूत्र सामाजिक आचरण का नियमन करता है.
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संस्कारों के अध्ययन से पता चलता है कि उनका सम्बन्ध संपूर्ण मानव जीवन से रहा है। मानव जीवन एक महान रहस्य है। संस्कार इसके उद्भव, विकास और ह्रास होने की समस्याओं का समाधान करते थे। जीवन भी संसार की अन्य कलाओं के समान कला माना जाता है। उस कला की जानकारी तथा परिष्करण संस्कारों द्वारा होता था। संस्कार पशुता को भी मनुष्यता में परिणत कर देते थे।
जीवन एक चक्र माना गया है। यह वहीं आरम्भ होता है, जहाँ उसका अंत होता है। जन्म से मृत्यु पर्यंत जीवित रहने, विषय भोग तथा सुख प्राप्त करने, चिंतन करने तथा अंत में इस संसार से प्रस्थान करने की अनेक घटनाओं की श्रृंखला ही जीवन है। संस्कारों का सम्बन्ध जीवन की इन सभी घटनाओं से था।
हिंदू धर्म में संस्कारों का स्थान
संस्कारों का हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान था। प्राचीन समय में जीवन विभिन्न खंडों में विभाजन नहीं, बल्कि सादा था। सामाजिक विश्वास कला और विज्ञान एक- दूसरे से सम्बंधित थे। संस्कारों का महत्व हिंदू धर्म में इस कारण था कि उनके द्वारा ऐसा वातावरण पैदा किया जाता था, जिससे व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके।
हिंदुओं ने जीवन के तीन निश्चित मार्गों को मान्यता प्रदान की - 1. कर्म- मार्ग, 2. उपासना- मार्ग तथा 3. ज्ञान- मार्ग। यद्यपि मूलतः संस्कार अपने क्षेत्र की दृष्टि से अत्यंत व्यापक थे, किंतु आगे चलकर उनका समावेश कर्म- मार्ग में किया जाने लगा। वे एक प्रकार से उपासना- मार्ग तथा ज्ञान- मार्ग के लिए भी तैयारी के साधन थे।