Essay in hindi nadi kinare ek shaam
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शाम को किसी प्राकृतिक स्थान की सैर करना मुझे अच्छा लगता है। हरेभरे मैदान, पर्वत प्रदेश, मंदिर, नदी किनारा और समुद्र का किनारा ऐसे कई स्थल मुझे अपनी और खीचते है।
पिछले रविवार की शाम मै घूमते घूमते अपने मित्रों के साथ पहुँच गया एक समुद्र के किनारे। एक और सागर हिलोरे ले रहा था तो दूसरी ओर मानव- महासागर। बच्चों को तो जैसे स्वर्ग मिल गया हो ऐसे ख़ुशी के मारे उछल कूद कर रहे थे। छोटे छोटे बच्चे ऐसे खेल रहे थे जैसे की बाग में तितलियाँ उड़ रही हो। कई लोग तट पर बैठे हुए थे और शांत मन से अपनी बातो में खोए हुए थे। युवावस्था के लोग समुद्र के किनारे पानी में बैठ कर उसका मजा उठा रहे थे। तो कई लोग अपने अपने मोबाइल से गाने सुन रहे थे। वहाँ पर एक चित्रकार भी था जो इस सुंदर दृश्य का चित्र बना रहा था। कुछ लोग चेहरे पर हँसी लेकर यहाँ वहाँ टहल रहे थे।समुद्र की मनचलि लहरे इस तरह किनारे के पास आ रही थी, मानो जैसे कोई दूर खड़ा हमें संदेश भेज रहा हो और वो हमें सुनाने आ रही हो। शीतल, मंद पवन के स्पर्स से शरीर और मन दोनो प्रफुल्लित हो उठे थे। सूर्य अपनी किरने लगभग समेट चुका था और उसकी लालिमा से सागर का जल सिंदूरी बन रहा था। सागर में खड़ी नावें बड़ी बड़ी छाया मूर्ति जैसी लग रही थी। सूर्य की किरणों की वजह से पुरा समुद्र लाल हो चुका था मानो जैसे लाल पानी भरा हुआ हो। आकाश अपनी सुनहरी शोभा बिखेरकर रजनी रानी के स्वागत की तैयारिया कर रहा था। दूज का उगता हुआ चाँद बड़ा मोहक लग रहा था। बड़ा अदभुत दृश्य था वह!
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