essay in hindi naukari pesha nari samsaya
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जीवन का अर्धांग नारी आज पहले जैसी नहीं रह गई। आधुनिक भारत में ऐसा एक क्षेत्र नहीं रह गया है, जहां नारी का पदार्पण न हो चुका हो। आज नारी सामान्य से लेकर उच्चतम पदों पर सेवा-कार्य कर रही है। पुलिस और सेना में ाी नारी अपनी कार्य क्षमता और अदभुत योज्यता का परिचय दे रही है। आज कई नारियां एकदम स्वतंत्र रूप से उद्योग-धंधे, कल-कारखाने तथा अन्य प्रकार के प्रतिष्ठान पूर्ण सफलता के साथ संचालित कर रही हैं। हमारी सामाजिक चेतना और मानसिकता से जैसे-जैसे मध्यकालीन सामंती विचार और मान्यतांए निकलकर नवीन, वैज्ञानिक एंव समानतावादी आधुनिक चेतनांए विकास करती जा रही है, वैसे-वैसे जीवन के व्यवहार क्षेत्रों में नारी का महत्व भी बढ़़ता जा रहा है। वह सात पर्दों में बंद रहने वाली छुई-मुई नहीं रह गई। न ही वह मक्खन की टिकिया ही रह गई है कि जो तनिक-सी आंच पर पिघलकर बह जाए या, ठंडक पाकर जम जाए। उसकी स्थिति आज इतना की उस शीशी जैसी नहीं रह गई, जो ढक्कर खुलते ही उड़ जाए और वह ढक्कर में हमेशा बंद रहकर सड़-गल जाए। आज वह संवैधानिक स्तर पर तो पुरुष के समान स्वतंत्र और सभी अधिकारों से संयमित है ही, सामाजिक ओर व्यावहारिक स्तर पर भी उसे स्वतंत्रता और समानता और स मान आदि प्राप्त होते जा रहे हैं। फिर भी अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या नारी के लिए नौकरी करना आवश्यक है? यदि हां तो क्यों है?
आज का जीवन अर्थ-प्रधान है। आर्थिक स्वाधीनता के अभाव में अन्य सभी प्रकार की स्वाधीनताओं का कोई अर्थ एंव महत्व नहीं रह जाता। सो एक मान्यता यह है कि नारी नौकरी करके आर्थिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ रही है। नारियों द्वारा नौकरी करने का एक अन्य कारण भी माना जाता है। वह यह कि कई बार पारिवारिक गरीबी से छुटकारा पाने के लिए वह नौकरी किया करती है। कई बार ऐसा भी होता है कि माता-पिता चल बसते हैं। तब परिवार की बड़ी बहन होने के नाते छोटे-बहनों का पालन करने के लिए वह नौकरी करती है। इसी तरह कई बार बाप या बड़े भाई आदि के बेकार, नाकारा या बेवफा अथवा कर्तव्यहीन होने पर भी किसी नारी को घर-परिवार का लालन-पालन करने के लिए विवश भाव से नौकरी करनी पड़ जाती है। नौकरी करने के ये सभी कारण वास्तविक हैं। इनमें से किसी के भी चलते यदि वह नौकरी करती है, तो अनुचित नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत, संपन्न घरों या बड़े-बड़े अफसरों की बेटियां-बीवियां अपनी पहुंच और सिफारिश के आधार पर यदि महज समय बिनाने के लिए नौकरी करती हैं, तो इसे स्वस्थ मानसिकता का परिचायक नहीं कहा जा सकता। यह तो वास्तविक ओर योज्य व्यक्तियों के अधिकारों पर डाका डालने के समान ही कहा जा सकता है। इससे व्यापक समाज का भला कभी भी संभव नहीं हो सकता। संपन्न परिवारों की नारियों की नौकरी करने पर पाबंदी लगाकर जरूरतमंदों की सहायता का द्वार खेला जाना चाहिए, ऐसी हमारी स्पष्ट मान्यता है।
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