Essay in hindi on bhaichara,spread love,peace???(atleast 150 words)plzzz
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आतंककारी आक्रमणों से जब-जब देश और देश के बाहर विनाश लीला हुई, विश्व शांति खतरे में पड़ी, हर बार बच्चों ने भाईचारे की अहमियत को शिद्दत से महसूस किया। सीखा कि हमें अपनी पढ़ाई के साथ-साथ विश्व-बंधुत्व के लिए भी प्रयास करने चाहिए। ‘शिक्षा’ और ‘स्कूल’ को एक दूसरे के पयार्य के रूप में इस्तेमाल करना हमेशा सही नहीं है क्योंकि सारी शिक्षा स्कूल में नहीं मिलती। शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है, जबकि स्कूल वे संस्थाएं हैं, जो हमें प्रारंभिक तौर पर तैयार करती हैं। यह वह उम्र है, जब स्कूल बच्चों के चरित्र और विचारों को गंभीर और स्थाई रूप से प्रभावित करते हैं। भारत में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम ने शिक्षा पर हमारा ध्यान फिर से एक सार्वभौमिक अधिकार के रूप में केंद्रित किया। इसे सफलतापूर्वक लागू करने का एक तरीका यह है कि शिक्षक विद्यार्थियों को शिक्षित होने के लिए प्रेरित करें। राजनीतिक दार्शनिक हना अरेंद के मुताबिक शिक्षा वह है जो ‘विश्व से इतना प्यार करना सिखाए कि हम उसके लिए अपनी जिम्मेदारी महसूस करें और उसे विनष्ट होने से बचाएं।’ हालांकि हम जब भी शिक्षा पर चर्चा कर रहे होते हैं, तो स्कूल जाने का मकसद, उसकी अहमियत और उससे जुड़ी चुनौतियों की चर्चा कर रहे होते हैं। कैम्ब्रिज विश्वद्यिालय के दिवंगत प्रोफेसर जीन रडोक की मान्यता थी कि स्कूल से बच्चों की यह अपेक्षा रहती हैे कि वे वहां सुरक्षित महसूस करें, उनको मान-सम्मान मिले और यह कि वे वहां कुछ हासिल कर रहे हैं। सुरक्षित महसूस करने का मतलब है एक ऐसा परिवेश, जहां गलतियों और/अथवा जोखिम उठाने को नजरअंदाज कर दिया जाए। और अब यह अधिकाधिक हो रहा है कि समाज स्कूलों से काफी अपेक्षाएं रखता है और बदले में स्कूल भी विद्यार्थियों से उम्मीद लगा कर चलते हैं। स्कूल समाज की अपेक्षाओं को कई तरह से पूरा कर सकते हैं: * प्रोजेक्ट के माध्यम से, जो अंतरविद्यालयीय सहयोग को प्रोत्साहित कर सकता है; * पाठ्यक्रम ऐसा बनाके, जिससे बच्चों में भरोसा, आदर, एक दूसरे की संस्कृति को समझने और सहिष्णुता जैसे मूल्यों को प्रोत्साहन मिल सके; * जो पढ़ाया जाता है और जिस तरह से पढ़ाया जाता है, उसके माध्यम से; और * अधिसंख्य लोगों को प्रभावित करने के लिए किताब आदि प्रकाशित करने जैसे इवेंट्स का आयोजन करके। सबसे पहले हमें स्कूली शिक्षा का लक्ष्य और उसकी अहमियत पर फिर से विचार करने की जरूरत है। क्या उसका लक्ष्य विस्तृत होना चाहिए, जैसे विश्व शांति के लिए शिक्षित करना। या स्कूली शिक्षा का मूल उद्देश्य अधिक पढ़े-लिखे लोगों को तैयार करना है, ताकि भविष्य में वे बेहतर नागरिक बन सकें? अधिकांश लोगों का जवाब बाद वाला होगा। फ्रैंक फुरेदी अपनी किताब ‘वेस्टिड: वाइ एजुकेशन इजंट एजुकेटिंग’ में इस धारणा के विरुद्ध तर्क देते हैं कि शिक्षा की केवल तभी अहमियत है जब वह विस्तृत लक्ष्य को पूरा करे। वे मानते हैं कि शिक्षा की मूलभूत उपयोगिता है। इस मत का समर्थन करने के अधिक कारण हैं।
shiningunicorn:
umm dont you think its kinda related to something else only?
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