essay in hindi on pradushan karan or nivaran
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प्रकृति और मानव का सम्बंध आदि काल से चला आ रहा है। मानव जाति उस जटिल और समन्वित पारिस्थितिकीय श्रृंखला का एक अंग है जो अपने में वायु, पृथ्वी, जल तथा विविध रूपों में वनस्पति व पशु जीवन को समेटे हुए है। जब मानव का विकासात्मक क्रियाओं के परिणामस्वरूप प्रकृति की स्वच्छता तथा संतुलन भंग हो जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप ‘प्रदूषण’ का जन्म होता है।प्रदूषण से सरदर्द, उच्च रक्तचाप, मतली, कान में दर्द, चमड़ी की जलन, स्मरण शक्ति का ह्रास आदि कई शारीरिक रोग तथा मानसिक दबाव, निराशा, चिड़चिड़ापन, जी घबराना आदि मानसिक रोग भी उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा कल-कारखानों एवं सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण ध्वनि प्रदूषण को ही माना जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा किये गये परीक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि 120 डेसीबल से अधिक की ध्वनि गर्भवती महिला, उसके गर्भस्थ शिशू, बीमार व्यक्तियों तथा दस साल से छोटी उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य को अपेक्षाकृत अधिक हानि पहुँचाती है।
प्रदूषण एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या बन चुका है। प्रदूषण के खतरों से रक्षा करवाना किसी एक देश के लिये सम्भव नहीं है। इस कार्य के लिये सभी राष्ट्रों की भागीदारी की आवश्यकता है। राष्ट्र धर्म, जाति और भाषा के नाम पर प्रदूषण की रोकथाम अलग-अलग नहीं की जा सकती है। आज प्रत्येक मानव को इस बात का एहसास होना चाहिए कि हम सब प्राकृतिक रूप से एक अविभाज्य पृथ्वी के नागरिक है जो अपने नागरिकों के साथ किसी भी स्तर पर भेदभाव नहीं करती है। आज “वसुधैव कुटुम्बकम” जैसे अमृत वचनों को मूर्त स्वरूप देने की आवश्यकता है।
पर्यावरण संरक्षण का अर्थ विकास ही समझा जाना चाहिए और इस कार्य में ग्रामीण तथा शहरी सभी लोगों को सक्रिय होकर हिस्सा लेना चाहिए। भारतीय संस्कृति में वनों के महत्व को समझते हुए उनके संरक्षण को उचित मान्यता दी गई है। हमारे यहाँ हरे-भरे वृक्षों को काटना पाप माना गया है। आज इसी भावना को लोगों में फिर से जगाने की आवश्यकता है। इसके अलावा प्रदूषण को निम्नलिखित उपायों द्वारा काफी सीमा तक नियत्रिंत किया जा सकता है।
1. जनसाधारण को प्रदूषण से उत्पन्न खतरों से अवगत कराया जाय जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर प्रदूषण कम से कम करने का हर सम्भव प्रयास ईमानदारी से करें।
2. विस्तृत पैमाने पर उचित वृक्षारोपण कर प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इसके लिये सरकार को चाहिए कि वह जगह-जगह कुछ ऐसी भूमि की व्यवस्था करे जहाँ पर व्यक्ति अपने नाम से, यादगार व स्वास्थ्य के लिये कम से कम एक वृक्ष लगा सके।
3. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
4. प्रदूषण से बचने के लिये यह आवश्यक है कि किसी भी परियोजना को तैयार किये जाने के समय ही पर्यावरण से सम्बंधित मसलों पर विचार कर, उन्हें परियोजना में शामिल कर लिया जाए।
5. प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिये, प्राकृतिक संसाधनों, कूड़े-कचरे व अवांछित पदार्थों का नियोजित ढंग से प्रबंध कर तथा विषैले रसायनों का प्रचलन रोक कर किया जा सकता है।
प्रगति एवं प्रकृति एक दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी न होकर पूरक है। परन्तु प्रगति के नाम पर प्रकृति की अवहेलना नहीं की जा सकती है। अतः दोनों में सामंजस्य आवश्यक है। वन विनाश के दुष्परिणामों पर स्काटलैंण्ड के विद्वान लेखक रोबर्ट चेम्बर्स लिखते हैं कि “वन नष्ट होते हैं तो जल नष्ट होता है, मत्स्य और शिकार नष्ट होते हैं, उर्वरता विदा ले जाती है और तब ये पुराने प्रेत एक के पीछे एक प्रकट होने लगते हैं-बाढ़, सूखा, आग, अकाल और महामारी”।
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