Essay in hindi on rashtra sant gadge baba
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गाडगे बाबा खुद अनपढ़ थे, किंतु बड़े विद्वान और बुद्धिवादी व्यक्ति थे। पिता की मौत हो जाने से उन्हें बचपन से अपने नाना के यहाँ रहना पड़ा था। अपने बचपन में उन्होंने गायें चराने और खेती का काम किया । सन् 1905 से 1917 तक वे अज्ञातवास पर चले गये और इसी बीच उन्होंने जीवन को बहुत नजदीक से देखा।
गाँवो की सफाई करने के उपरांत वे शाम को गाँव में भजन- कीर्तन का आयोजन करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण कार्यो का प्रसार करते थे। अपने लोकभजनो के माध्यम से वे लोगो को अन्धविश्वास की भावनाओ के विरुद्ध शिक्षित करते थे। अपने भजन कीर्तनों में वे प्रसिद्ध सूफी संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे।
संत गाडगे बाबा को जानवरों से अत्यधिक लगाव था और वे लोगो को जानवरो पर अत्याचार करने से रोकते थे और वे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नही मानते थे और लोगो को इसके खिलाफ वे जागरूक करते थे और पूर्ण रूप से वे ऐसी कुप्रथाओ को समाज से खत्म कर देना चाहते थे । उन्हें शराब से भी घृणा थी और समाज में वे शराबबंदी करवाना चाहते थे।
अंधविश्वासों, आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को कितनी भयंकर हानि हो सकती है, इसका उन्हें भलीभाँति अनुभव हुआ। इसी कारण इनका उन्होंने घोर विरोध किया करते थे ।संत-महात्माओं के चरण छूने की प्रथा आज भी समाज में प्रचलित है, परन्तु गाडगे बाबा इसके प्रबल विरोधी थे।
गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र ध्येय था- लोकसेवा। दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर की सच्ची भक्ति मानते थे। धार्मिक आडंबरों का उन्होंने पुरजोर विरोध किया। गाडगे महाराज लोगो को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे और हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी इसी राह पर चलने को कहा।उनका विश्वास था कि ईश्वर हमे न तो तीर्थ स्थानों में मिलेंगे और न मंदिरों या मस्जिद में। इश्वर तो दरिद्र नारायण के रूप में मानव समाज में विद्यमान है। जरूरत है तो बस उसे पहचानने की और उसकी तन-मन-धन से सेवा करे। जो की भूखों को भोजन, नंगे को वस्त्र, अनपढ़ को शिक्षा, बेरोजगार को रोजगार , और मूक जीवों को अभय प्रदान करना ही भगवान की सच्ची भक्ति व सेवा है।
संत गाडगे महाराज
संत गाडगे महाराज
जन्म : २३ फेब्रुवारी १८७६
मृत्यू : १९५६
हे ईश्वर कशात आहे ही नेमकी जाणीव असलेले संत आणि गोरगरीब, दीनदलित यांचा ऐहिक व आध्यात्मिक विकास होण्यासाठी; अज्ञान, अंधश्रद्धा, अस्वच्छता यांचे उच्चाटन करण्यासाठी तळमळीने कार्य करणारे होते.
गाडगे महाराजांचे चिंध्याची गोधडी हे महावस्त्र होते. ते तुटक्या पादत्राणांचे विजोड जोडपायी वापरत. डोईवर फुटके मडके असे. भोजनाच्या वेळी थाळी म्हणून आणि भोजनानंतर शिरस्त्राणे म्हणून त्याचा वापर होत असे. त्यांनी कशाचा संग्रह केला नाही, कशाची हाव बाळगली नाही.
बाबांनी धर्मशाळा, घाट, अन्नछत्रे आणि सदावर्त बांधली. फिरते दवाखाने सुरु केले. बाबा स्वतः निरक्षर होते पण समाजसुधारक आणि शिक्षण प्रसारक होते. ‘सद्गुरु गाडगे महाराज कॉलेज’ काढून कर्मवीर भाऊराव पाटील यांनी त्यांच्या ऋणविमोचनाचा अल्पसा प्रयत्न केला.