essay in hindi on satyamev jayate
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संत कबीर द्वाारा सचे गए इस सूक्ति परक दोहे का सीधा और सरल अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है कि इस नाशवान और तरह-तरह की बुराईयों से भरे विश्व में सच बोलना सबसे बड़ी सहज-सरल तपस्या है। सत्य बोलने, सच्चा व्यवहार करने सत्य मार्ग पर चलने से बढक़र और कोई तपस्या है, न ही हो सकती है। इसके विपरीत जिसे पाप कहा जाता है। बात-बात पर झूठ बोलते रहना, छल-कपट और झूठ से भरा व्यवहार तथा आचरण करना उन सभी से बड़ा पाप है। जिस किसी व्यक्ति के हृदय में सत्य का वास होता है। ईश्वर स्वंय उसके हृदय में निवास करते हैं। जीवन के व्यावहारिक सुख भोगने के बाद अंत में वह आवागमन के मुश्किल से छुटकारा भी पा लेता है। इसके विपरीत मिथ्याचरण-व्यवहार करने वाला, हर बात में झूठ का सहारा लेने वाला व्यक्ति न तो चिंताओं से छुटकारा प्राप्त कर पाता है न प्रभु की कृपा का अधिकार ही बना सकता है। उसका लोग तो बिगड़ता ही है, वह परलोक-सुख एंव मु ित के अधिकार से भी वंचित हो जाया करता है।