essay in hindi on sports and its importance in our life
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स्वस्थ रहने के लिये हमें हर दिन कुछ न कुछ व्यायाम करना चाहिये । खेल भी शारीरिक व्यायाम करने का एक उत्तम तरीका है। खेल खेलने से हम अपना शरीर को चुस्त, और दुरुस्त (योग्य या फिट) रख सकते हैं । बिना व्यायाम के हम मोटे हो जाते हैं और बदन में फाट जाम जाता है। खेलों से हमें आनंद मिलता है । खेल तो आजकल एक पेशा भी है। और खेल एक बड़ा उद्योग और व्यापार भी है ।
खेलों और क्रीडाओं का हमारे जीवन में बहुत महत्व पूर्ण योगदान और भूमिका है । खेलों से हम बहुत कुछ सीखते हैं । बच्चे तो खेलों से अपना समय बिताते हैं और मन बहलाते हैं। वे अपने साथियों के साथ दोस्ती भी खेलों के मध्यम से बढ़ाते हैं।
खेल खेलने से पेशी बढ़ती हैं । मलबंध रोग का अच्छा इलाज हो जाता है । मन शांत रहता है और प्रसन्न होता है । मोटापन कम होता है । उत्साह बढ़ता है । चेहरा खिलता है । हृदय रोग नहीं आते । अगर होंगे तो भी थोड़ा सा कम होते हैं। बदन में खून का बहाव ठीक ठीक रहता है । दिमाग तेज चलने लगता है । रात को नींद भी ठीक ठीक आता है। इसीलिए बहुत लोग अपने घरों में केरम बोर्ड, बैंक, बिज़नस, चदरंग के खेल खेलते हैं। स्विमिंग पूल भी बनवाते हैं । बाडमिंटन कोर्ट भी बनवाते हैं।
अपने विद्यालय, शहर, राज्य या देश के लिये खेलों में भाग लेना तो बड़ा गर्व की बात है। इस से सभी हमें सम्मान मिलता है । पुरस्कार भी मिलते हैं । ख़ाली समय में हम खेल खेलने से समय भी बीतता है और हम थोडासा आराम करने के बाद ज्यादा दिलचस्पी से पढ़ाई या घर का काम कर सकते हैं। दैनंदिक कार्यक्रम में कुछ समय विनोद या मनोरंजन नहीं होने से जीवन एक तान और नीरस हो जाता है।
बहुत अच्छे खेलने वालों को आजकल बहुत अवसर मिलते हैं अपने जिला, अपने विद्यालय, राज्य , देश के लिए खेलने के लिए। आजकल तो पैसे भी मिलते हैं खिलाड़ियों को। कुछ ही साल पहले तो आई. पी. एल. , आइ . सी. एल . , पी. के, एल. इत्यादि टोर्नामेंट शुरू हुए हैं । इन खेलों को भारत के सब शहरों में बहुत आदरण मिला है। खिलाड़ियों को नौकरी भी मिलता है ।
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दशहरा या विजयदशमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भारतीय संस्कृति के वीरता का पूजक, शौर्य का उपासक है। आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला दशहरा यानी आयुध-पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है।
असत्य पर सत्य की विजय - भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं, इस दिन शस्त्र-पूजा, वाहन पूजा की जाती है।
प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे अवगुणों को छोड़ने की प्रेरणा हमें देता है।
दशहरा शब्द की उत्पत्ति- दशहरा या दसेरा शब्द 'दश'(दस) एवं 'अहन्' से बना है। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएं की गई हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है।
भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग का ठिकाना हमें नहीं रहता। इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है। तो कुछ लोगों के मत के अनुसार यह रण यात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाते हैं, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि सहेज कर में रखे जाने वाले हो जाते हैं।
इस उत्सव का संबंध नवरात्रि से भी है क्योंकि नवरात्रि के उपरांत ही यह उत्सव होता है और इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख मिलता है। दशहरा या विजया दशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था।
राम और रावण का युद्ध- रावण भगवान राम की पत्नी देवी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। राम की विजय के प्रतीक स्वरूप इस पर्व को 'विजयादशमी' कहा जाता है।
दशहरा पर्व पर मेले- दशहरा पर्व को मनाने के लिए जगह-जगह बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। यहां लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ आते हैं और खुले आसमान के नीचे मेले का पूरा आनंद लेते हैं। मेले में तरह-तरह की वस्तुएं, चूड़ियों से लेकर खिलौने और कपड़े बेचे जाते हैं। इसके साथ ही मेले में व्यंजनों की भी भरमार रहती है।
रामलीला और रावण वध- इस समय रामलीला का भी आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा, शस्त्र पूजन, हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। रामलीला में जगह-जगह रावण वध का प्रदर्शन होता है।
शक्ति के प्रतीक का उत्सव- शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्रि प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। इस मौके पर लोग नवरात्रि के नौ दिन जगदंबा के अलग-अलग रूपों की उपासना करके शक्तिशाली बने रहने की कामना करते हैं। भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता व शौर्य की समर्थक रही है। दशहरे का उत्सव भी शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला उत्सव है।
बुराई पर अच्छाई की विजय- इस दिन क्षत्रियों के यहां शस्त्र की पूजा होती है। इस दिन रावण, उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धू-धू कर जलने लगता है और इनमें लगे पटाखे फटने लगते हैं और उससे उसका अंत हो जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
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