Hindi, asked by samrendra, 1 year ago

essay in hindi on topic beti bachao beti padhao in 500-800 words.Please its urgent.

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Answered by saniarisha
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तोह आज का निबद्ध का विषय है "बेटी पदाओ बेटी बचाओ".यह विषय काफी मज़ेदार है. में सिर्फ ज़रूरी बात लिखूंगी.अगर आपको एस्से चाहिए तोह आप उसे कृपया करके बड़ा लीजिये ग.

 

बेटियां देवी  की रूप होते है.उन्हें तकलीफ देने का हमारा  कोई  हक़  नहीं  है.उन्हें लक्लीफ देने का मतलब है देवियों का असम्मान करना.

 

हम पहले के जमसे से शुरुवात  करेंगे.

 

पहले सिर्फ लड़कों  को पढ़ाया जाता था.उस्वक़्त लड़कियों  को ज़्यादा महत्व  नहीं दिया जाता था.उन्हें पड़ ने का कोई हक़ नहीं था.वह  सिर्फ घर  के काम   करते थे.

 

अब हम आज के ज़माने  के बात करेंगे .

 

आज के ज़माने में लड़कियां भी पढ़ाई की उतनीही हकदार है जितने की लड़के है.उन्हें भी पड़ने का पूरा हक़ है.आज भी ऐसे कुछ लोग है जो लड़कियों को पड़ ने से रोकते है.

 

लड़कियों को पड़ हाना बहुत ज़रूरी है.हम अपने देश की बेटियों को पड़ हाकर उनिकी रक्षा भी कर पाएंगे.वह गर शिक्षित होंगे तोह खुदके रक्षा कर पाएंगे.

 

इस तरह से हम उन्हें पड़ा कर उन्हें बचा पाएंगे.

तोह आज आइये हम सब प्रण लेते है की इस देश की साड़ी बेटियों को पड़ा कर उन्हें बचाएंगे.


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Answered by jayathakur3939
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प्रस्तावना :-  

जैसे कोई भी गाड़ी एक पहिए से नहीं चल सकती, ऐसे ही जीवन की गाड़ी भी केवल पुरुषों से नहीं चल सकती है। जीवन चक्र में स्त्री और पुरुष दोनों की समान सहभागिता है। हमारे शास्त्रों और ग्रंथो में नारियों को आदरणीय स्थान प्राप्त है। कहा जाता था कि जहां नारियों की पूजा होती है, देवता वहीं निवास करते हैं। ये वो देश तो नहीं लगता, जहां ऐसी बातें होती हों। वैदिक काल का वो भारत अब केवल किताबों तक ही सीमित है। न ही अब वो देश हैं, न ही वैसी सोच।

जब ईश्वर होकर माता सीता इस कुप्रथा से नहीं बच पाई , फिर हम तो मामूली इंसान है, हमारी क्या औकात। ये पुरुष-प्रधान समाज लड़कियों को जीने नहीं देना चाहता। मुझे समझ नही आता, मैं इन मर्दो की सोच पर हंसु या क्रोधित होऊं। ये जानते हुए भी कि उनका अस्तित्व भी एक महिला के कारण ही है, फिर भी ये पुरुष समाज केवल पुत्र की ही कामना करता है। और अपने इस पागल-पन में न जाने कितनी लड़कियों का जीवन नष्ट किया है। हम सभी जानते हैं कि हमारा भारत देश पुरुष-प्रधान देश है। यहाँ सदियों से स्त्रियों के साथ ज्यादतियां होते आई है।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का उद्देश्य:-:-

आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं।” –प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी  |

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का शुभारंभ प्रधान मंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। हरियाणा में ही करने का मेन कारण वहां लिंग-अनुपात में सर्वाधिक अंतर है। यह योजना पुरे देश को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री जी ने पुरे देश का आह्वाहन किया, और सभी देशवासियों को एकजुट होकर लड़कियों की कम जनसंख्या को संतुलित करने का संकल्प किया। इस योजना का दारोमदार तीन मंत्रालयों को सौंपा गया है, ये हैं - महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय।  इस योजना के तहत सबसे पहले सम्पूर्ण भारत में पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994  को लागू किया गया है। कोई भी ऐसा करते पकड़ा गया तो उसके लिए कड़े दंड के प्रावधान हैं।

साथ ही साथ यदि कोई चिकित्सक भ्रूण लिंग परीक्षण करते या भ्रूण-हत्या का दोषी पाया गया, तो उसे अपने लाइंसेंस रद्द के साथ साथ भयंकर परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। इसके लिए कानूनी कार्यवाही के आदेश हैं। अब हर क्लिनिक हॉस्पिटल में ये साफ-साफ लिखा होता है कि, भ्रूण की लिंग की जांच कराना कानूनन जुर्म होता है। इन सब प्रयासों से बहुत सकारात्मक परिणाम आए हैं। लोगों की सोच भी बहुत हद तक बदली है|

उपसंहार  :-

लड़कियों के साथ शोषण होने के पीछे मुख्य कारण अशिक्षा भी है। अगर हम पढ़े-लिखे शिक्षित होते हैं तो हमें सही-गलत का ज्ञान होता है। जब बेटियाँ अपने पैर पर खड़ी होंगी तो कोई भी उन्हें बोझ नहीं समझेगा।

इसीलिए ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम’ के माध्यम से बेटियों को अधिक से अधिक शिक्षित बनाने पर जोर दिया जा रहा है। शिक्षित लोगों के साथ कुछ भी गलत करना आसान नहीं होता। लड़की पढ़ी-लिखी होगी तो न अपने साथ कुछ गलत होने देगी और न ही किसी और के साथ होते देखेगी। इसीलिए लड़की का शिक्षित होना अत्यंत आवश्यक है।

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