ESSAY OF 300 WORDS ON AADHUNIK BHARAT IN HINDI
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पराधीनता के काल में भारतवासियों को अपनी उन्नति करने का कोई अधिकार नहीं था । उस समय के विद्यार्थी अंग्रेजी सरकार की इच्छा के अनुसार ही नौकरी पाते थे; मगर स्वतंत्र भारत में परिस्थितियाँ बदल गई हैं ।
अत: विद्यार्थियों का दायित्व भी बदल गया है । किसी भी देश का भविष्य उस देश के विद्यार्थियों पर निर्भर करता है । वर्तमान समय में भारत का नवनिर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है । इम कार्य में विद्यार्थियों का योग आवश्यक है और महत्त्वपूर्ण भी ।
वर्तमान युग विज्ञान और अर्थ का युग है । भारत के लिए वैज्ञानिक तथा आर्थिक उन्नति परमावश्यक है । किसी विद्वान् का यह कथन सत्य है कि भारत धनी देश है, जहाँ गरीब रहते हैं । इसका अर्थ है कि यहाँ प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है, मगर उन साधनों का उपयोग नहीं हो पाया है । इनका समुचित उपयोग करने पर भारतवासी संपन्न हो सकते हैं ।
स्वतंत्र भारत में उक्त साधनों के उपयोग का कार्य प्रारंभ हो गया है, जिसकी अंतिम सफलता विद्यार्थियों के सहयोग पर निर्भर है । कृषि सुधार, उद्योग, यातायात, वैज्ञानिक अनुसंधान-कार्य हो रहे हैं; कारखाने बन रहे हैं; विद्युत्-शक्ति का उत्पादन बढ़ रहा है ।
परमाणु शक्ति के लिए प्रयोगशालाएँ बन रही हैं; सुरक्षा के साधन जुटाए जा रहे हैं; विदेशों से मैत्री-संबंध मजबूत करने का प्रयास चल रहा है । जब विद्यार्थी उक्त कार्यों में लगन और निष्ठा से लग जाएँगे तभी देश का कल्याण होगा ।
इसी तरह सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में भी परिवर्तन की आवश्यकता है । सामाजिक बुराइयों के सुधार में अंधानुकरण न करके भारतीय धर्म और संस्कृति की मूल विशेषताओं की रक्षा करनी होगी । सच बात यह है कि सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में विद्यार्थी ही परिवर्तन ला सकते हैं ।
आज राजनीतिक मान्यताएँ भी द्रुत गति से बदलती जा रही हैं । एक विचार-धारा प्रजातांत्रिक भावनाओं का समर्थन कर रही है, जिसमें व्यक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है । दूसरी विचारधारा व्यक्ति से अधिक समाज को महत्त्व देती है । इसे ‘साम्यवाद’ कहते हैं । यह वर्ग-विहीन समाज की कल्पना करता है ।
दोनों में अधिनायकवाद की बुराई भी छुपी हुई है । आज के विद्यार्थी के सामने अनेक समस्याएँ हैं । अत: विवेक से परखकर, सोच-समझकर अपने युग के लिए अनुकूल विचारों को अगर अपनाया नहीं जाएगा तो भावुकता और उगवेशवश विद्यार्थी पथभ्रष्ट हो जाएँगे; लाभ के बदले हानि ही उठाएँगे ।
असली भारत ग्रामों में बसा है । अत: विद्यार्थियों के हृदय में गाँवों के प्रति प्रेम और सद्भावना होनी चाहिए । वहाँ की समस्याएँ समझने के लिए उन्हें ग्रामीणों के बीच रहना है, उनमें परस्पर सद्भावना और सहकारिता बढ़ानी है । सरकारी योजनाओं के गुण-दोषों को समझते हुए उन्हें अमल में भी लाने का प्रयत्न करना है । विद्यार्थी सेवापरायण, सत्यप्रिय, कर्तव्यपरायण हों, साथ ही बहुश्रुत, बहुविषयों में रुचि के विषय का गहन अध्ययन करनेवाले हों । तभी वे देश के आम जन को सही नेतृत्व दे सकेंगे ।
अध्ययनशील विद्यार्थी जिस क्षेत्र में भी कार्यरत होगा, उसमें गहरी प्रवीणता प्राप्त करना चाहेगा । किसान, कारीगर, इंजीनियर अथवा सरकारी कर्मचारी-जो भी बनेगा, वह उस क्षेत्र का उत्कृष्ट निर्माता बनेगा, निष्पक्ष सेवक होगा और अपनी पूर्व तथा वर्तमान परंपरा का सुंदर समन्वय करेगा । प्रबुद्ध विद्यार्थी वर्ग के समग्र सहयोग के बिना किसी भी राष्ट्र का निर्माण संपन्न नहीं हो सकता है ।
विद्यार्थी की अपनी प्रतिभा तथा निस्स्वार्थ सेवा-लगन से ही राष्ट्र का नवनिर्माण संभव हो सकता है । निष्कर्ष यह है कि पहले विद्यार्थी को चाहिए कि अपने देश की समस्याओं का गहन अध्ययन करे और फिर उनके निराकरण में अपनी योग्यता व अनुभव का भरपूर उपयोग करे ।
आज मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकी में बहुत विकास कर लिया है। अब तकनीकी के बिना रह पाना नामुमकिन हो गया है। इसने हमारे जीवन को सरल, आसान और सुविधाजनक बना दिया है। यदि हम विज्ञान में प्रगति नही करते तो आज भी हमारा जीवन पहले की तरह दुष्कर और कठिन होता। नवीन आविष्कारो ने हमे बहुत लाभ पहुँचाया है। नई तरह की दवाइयां, चिकित्सा उपकरणों की सहायता से अब जटिल लोगो का इलाज भी सम्भव हो गया है। इस तरह से हम आधुनिक तकनीकी के बिना जीवित नही रह सकते है।
आशा करता हूं कि यह उत्तर आपकी सहायता करेगा।
धन्यवाद।