Hindi, asked by anmol8914, 11 months ago

essay of guru hargobind ji in hindi​

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Answered by jahanvi4926
3

Answer:

गुरु हरगोबिंद साहिब सिक्खों के छ्ठे गुरु थे। इनका जन्म 19 जून 1595 को हुआ और इनकी मृत्यु सन् 1644 में हुई। गुरु हरगोबिंद साहिब गुरु अरजन सिंह की इकलौती सन्तान थे। सिख समुदाय को एक सेना के रूप में संगठित करने का श्रेय गुरु हरगोबिंद जी को ही जाता है। इन्होंने सिख कौम को योद्धा-चरित्र प्रदान किया था।

ग़ुरु हरगोबिंद साहिब (Guru Hargobind Sahib Ji)

सन् 1606 में 11 साल की उम्र में ही गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अपने पिता से गुरु की उपाधि पा ली थी। गुरु अरजन साहिब की शहादत के बाद सिखों के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण पल था जब सिखों ने मुगल साम्राज्य की मनमानी को रोकने के लिए पहली बार गंभीरता से विचार किया था।

गुरु हरगोबिंद साहिब के कार्य (Works of Guru Hargobind Sahib)

गुरु हरगोबिंद साहिब ने शांति और ध्यान में लीन रहने वाली इस कौम को राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों तरीकों से चलाने का फैसला किया। गुरु हरगोबिंद सिंह ने दो तलवारें पहननी शुरू की, एक आध्यात्मिक शक्ति के लिए (पिरी) और एक सैन्य शक्ति के लिए (मिरी)। अब सिखों की भूमिका बढ़कर संत सैनिकों की बन चुकी थी।

गुरु हरगोबिंद जी स्वयं एक शक्तिशाली योद्धा थे और उन्होंने दूसरे सिखों को भी लड़ने का प्रशिक्षण दिया। इस बात को अपना मूल सिद्धान्त बनाया कि एक सिख योद्धा केवल बचाव के लिए तलवार उठाएगा ना कि हमले के लिए। गुरु हरगोबिंद जी ने ही अकाल तख्त का निर्माण भी करवाया। गुरु हरगोबिंद जी ने अपने जीवनकाल में बुनियादी मानव अधिकारों के लिए कई लड़ाइयां लड़ीं।

सिख धर्म गुरू

गुरू नानक जीगुरु अमरदास जी गुरु अर्जन देव जीगुरू हर राय जीगुरू अंगद देवगुरू राम दास जीगुरू हरगोबिन्द जीगुरू हर किशन साहिब जीगुरु गोबिन्द सिंहगुरु तेग बहादुर



Answered by harnoor92
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भूमिका: श्री गुरु हरिगोबिंद जी सिक्खो के छठे गुरु थे।उनके महान कार्यों को हम आज पढेगे ।

जनम: आप जी का जनम 14 जुन सन 1595 को हुआ ।गाँव गुरु की व्डाली जिला अमृत्सर पंजाब मे हुआ।

गुरुगधी : 30 मई सन 1606 से 3 मार्च 1644 तक।

मिरि और पिरि का सिधआन्त : गुरु जी ने भगती और शक्ती को प्रगट करने के लिये मोरी और पिरि नामक दो तलवारे धारण की।ऐसा करके उन्होने राजनिती को धरम के अधीन किया जिस कारन कोई राजसी शक्ती आम जन्ता पर जुलम ना कर सके।

श्री अकाल तक्थ की स्थापना :राजनिती की शिक्षा के साथ साथ उन्होने सीखो को धार्मिक शिक्षा देनए के लिये 1609 मे अकाल तक्थ की स्थापना की ।यह हरमन्दर साहिब के एकदम सामने है।

इमारते: अमृतसर सअहिब मे लोहगड किला बनवाया।गुरुद्वारा डेहरा साहिब बनवाया।कोल्सर विवेकसर सरोवर बनवाये।

जुलम का टाकरा : आम जन्ता पर मुगलो के द्वारा हो रहे जुल्मो को मिटाने के लिये धरम की रक्षा के लिये 4 युध लड़े और जीते भी।

जोति जोत समाए : 3 मार्च 1644 को किरत्पुर मे गुरु जी जोई जोत स्मा गये।।

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