India Languages, asked by kunj2307, 1 year ago

essay on '''A mind all logic is like a knife all blade. It makes the hand bleed that uses it.' - Rabindranath Tagore' HINDI language me 750 words please

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Answered by abhi178
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रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा था - सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है ।

वैसे तो इसे समझना काफ़ी कठिन है , लेकिन कुछ सूक्ष्म बातों को ध्यान में रखे तो रविंद्र जी के अनुसार , तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह होता है जिसमे सिर्फ ब्लेड है यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है अर्थात केवल दिमाग की सुनने वाला व्यक्ति खुद को हानि पहुंचाता है ।

तर्क के आधार पर जीवन जीना खुद को समाज व् परिवार से अलग करना नही तो और क्या है । तर्क से विज्ञानं के वृतान्त गुथियों को हल किया जा सकता है , तर्क से नए चीजो का आविष्कार हो सकता है । तर्कता प्रगति का कारण बनती है। और तो और तर्क हमें विषम परिस्थियों से उभार सकता है।
लेकिन ये हमें वह समाज से अलग कर देता है । एक व्यक्ति जो दिमाग दोनों की सुनता है , अर्थात केवल तर्क का उपयोग करता है , वह अपने बेटे के साथ शतरंज खेल रहा है। चूँकि वह दिल की एक न सुनता है उसे केवल जीत की भूख होगी , क्योंकि तर्क तो यही कहता है जीत हमेशा सक्षम की होती है । और वह अपने बेटे हो हराने में ही सुख खोजता है , जिसके कारण उसकी बेटे से दुरी बढ़ती जाती है । परिणाम यह होता है कि वह बेटे से खुद को अलग कर लेता है । यह केवल बेटे के साथ ही नही वह पूरे समाज से खुद को अलग कर लेता है । अन्ततः वह तालाब के वह मछली समान छटपटाता रह जाता है जिसे तालाब से निकाल दिया गया हो ।

तर्क करना गलत नही है, लेकिन किसी भी पहलू के केवल तर्क के आधार पर हल प्रस्तुत करना गलत है । आए दिन अपराध बढ़ गयी है , अपराध को कम करने के लिए रक्षा व्यवस्था एवं कानून बनायीं गई है लेकिन क्या सभी को उचित इन्साफ मिलता है ? नहीं न !
असल में कानून व्यवस्था भी तर्क के आधार पर चलती है , सबूत के आधार पर सज़ा कभी निर्दोष को दे देती है , जो बिडम्बना है । वैसे करे भी तो क्या ? दिल से किसी को अपराधी मनाना कहा तक युक्तिसंगत है । फिर भी दिल से कभी हद तक काम को सरल किया जा सकता है । लेकिन ऐसा संयोग ही है जो दिल और दिमाग दोनों को आधार मानकर चलते है। वैसे व्यक्ति समाज ही नही अपितु खुद में भी ख़ुशी का कारन बनते है ।

duragpalsingh: Awesome bro
abhi178: thanks durag :)
Answered by Anonymous
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Hamare jeevan main dil aur dimaag
dono ka hi bohot mehatv hai.Dil se sochne wale vyakti,bhavnatmak aur samvedanatmak hote hain.
Per Dimag. se sochne wale log practical jaane jaate hain.Zindagi up haalatoon. ke hisaab we jeena chahiye.Jeevan me her mod per kathod hoker nhi rehne chahiye.Ķahin kahin doosron ko bhavnatmak Sahare ki ummeed hoti hai.Yadi hum doosron ko Sahara nhi dengue aur sada kathor banker rahenge to log humein bhavnaheen jayenge.Kewal tarkk karna wale vyakti kko koi bhi pasand nhi karta.

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