essay on aarkshan kitna uchit kitna anuchit
Answers
Answered by
1
भारतीय संविधान ने जो आरक्षण की व्यव्यस्था उत्पत्ति काल में दी थी उसका
एक मात्र उद्देश्य कमजोर और दबे कुचले लोगों के जीवन स्तर की ऊपर उठाना
था और स्पष्ट रूप से इसकी सीमा रेखा २५ वर्षों के लिए थी| लेकिन धर्म के
आधार पर एक विभाजन करवा चुके इन राजनेताओं की सोच अंग्रेजों की सोच से भी
ज्यादा गन्दी निकली| आरक्षण का समय समाप्त होने के बाद अपनी व्यक्तिगत
कुंठा को तृप्त करने के लिए वी.पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें न
सिर्फ अपनी मर्जी से करवाई बल्कि उन्हें लागू भी किया| उस समय तमाम सारे
सवर्ण छात्रों ने विधान-सभा और संसद के सामने आत्मदाह किये थे| नैनी जेल
में न जाने कितने ही छात्रों को कैद करके यातनाएं दी गई थी इसका कोई अता-
पता ही नहीं चला| याद नहीं आता कि किसी भी परिवेश में उन्नति के नाम पर
भी अंग्रेजों ने इस प्रकार भारतीयों का दमन किया हो| तब से लेकर आज तक एक
ऐसी व्यवस्था कायम कर दी गई कि ऊंची जातियों के कमजोर हों या मेधावी सभी
विद्यार्थी और नवयुवक इसे ढोने के लिए विवश हैं| अगर आरक्षण की वास्तविक
स्थिति को देखा जाय तो जो पात्र हैं उन्हें भी इसका फायदा नहीं मिल रहा
है| दीगर बात ये है कि जिस देश का संविधान अपने आपको धर्म-निरपेक्ष, पंथ-
निरपेक्ष और जाति-निरपेक्ष होने का दावा करता है उस देश में जातिगत और
धर्म पर आधारित आरक्षण क्या संविधान की आत्मा पर ही कुठाराघात नहीं है|
एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र में आरक्षण का सिर्फ एक आधार हो सकता है वो है
आर्थिक आधार लेकिन दुर्भाग्य वश ऐसा नहीं है| यहाँ तो एक भेंड-चाल है कि
जो बहुसंख्यक (हिन्दू) के विरुद्ध सांप्रदायिक आग उगले उसे धर्म-निरपेक्ष
कहा जाता है, जो जाति और वर्ग के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था देता है उसे
जाती-निरपेक्ष कहा जाता है|
अब सवाल ये उठता है कि
१. क्या तथाकथित ऊंची जातियों में गरीब और शोषित लोग नहीं है?
२. आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति हो तो क्या हानि होगी?
३. शिक्षा में आरक्षण पाकर जब सामान शिक्षा हासिल कर ली फिर नौकरियों और
प्रोन्नति में आरक्षण क् औचित्य क्या है?
४. वर्ण-व्यवस्था से तथाकथित नीची जातियां भी विरत नहीं फिर भी कुछ को
सवर्ण कहकर समाज को टुकड़ों में बांटने के पीछे कौन सी मंशा काम कर रही
है?
५. अंग्रेजो के दमन को मुट्ठी भर युवाओं ने नाकों चने चबवा दिए फिर आज का
युवा इतना अकर्मण्य क्यों है?
६. क्या हम गन्दी राजनीति के आगे घुटने टेक चुके हैं?
७. क्या आज सत्य को सत्य और झूठ को झूठ कहने वाले लोगों का चरित्र दोगला
हो चला है कि आप से एक हुंकार भी नहीं भरी ज़ाती?
जागो ! विचार करो ! सत्य को जिस संसाधन से व्यक्त कर सकते हो करो वर्ना
आने वाली नस्लें तुमसे भी ज्यादा कायर पैदा हुईं तो इन काले अंग्रेजों के
रहमो-करम पर
एक मात्र उद्देश्य कमजोर और दबे कुचले लोगों के जीवन स्तर की ऊपर उठाना
था और स्पष्ट रूप से इसकी सीमा रेखा २५ वर्षों के लिए थी| लेकिन धर्म के
आधार पर एक विभाजन करवा चुके इन राजनेताओं की सोच अंग्रेजों की सोच से भी
ज्यादा गन्दी निकली| आरक्षण का समय समाप्त होने के बाद अपनी व्यक्तिगत
कुंठा को तृप्त करने के लिए वी.पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें न
सिर्फ अपनी मर्जी से करवाई बल्कि उन्हें लागू भी किया| उस समय तमाम सारे
सवर्ण छात्रों ने विधान-सभा और संसद के सामने आत्मदाह किये थे| नैनी जेल
में न जाने कितने ही छात्रों को कैद करके यातनाएं दी गई थी इसका कोई अता-
पता ही नहीं चला| याद नहीं आता कि किसी भी परिवेश में उन्नति के नाम पर
भी अंग्रेजों ने इस प्रकार भारतीयों का दमन किया हो| तब से लेकर आज तक एक
ऐसी व्यवस्था कायम कर दी गई कि ऊंची जातियों के कमजोर हों या मेधावी सभी
विद्यार्थी और नवयुवक इसे ढोने के लिए विवश हैं| अगर आरक्षण की वास्तविक
स्थिति को देखा जाय तो जो पात्र हैं उन्हें भी इसका फायदा नहीं मिल रहा
है| दीगर बात ये है कि जिस देश का संविधान अपने आपको धर्म-निरपेक्ष, पंथ-
निरपेक्ष और जाति-निरपेक्ष होने का दावा करता है उस देश में जातिगत और
धर्म पर आधारित आरक्षण क्या संविधान की आत्मा पर ही कुठाराघात नहीं है|
एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र में आरक्षण का सिर्फ एक आधार हो सकता है वो है
आर्थिक आधार लेकिन दुर्भाग्य वश ऐसा नहीं है| यहाँ तो एक भेंड-चाल है कि
जो बहुसंख्यक (हिन्दू) के विरुद्ध सांप्रदायिक आग उगले उसे धर्म-निरपेक्ष
कहा जाता है, जो जाति और वर्ग के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था देता है उसे
जाती-निरपेक्ष कहा जाता है|
अब सवाल ये उठता है कि
१. क्या तथाकथित ऊंची जातियों में गरीब और शोषित लोग नहीं है?
२. आरक्षण का आधार आर्थिक स्थिति हो तो क्या हानि होगी?
३. शिक्षा में आरक्षण पाकर जब सामान शिक्षा हासिल कर ली फिर नौकरियों और
प्रोन्नति में आरक्षण क् औचित्य क्या है?
४. वर्ण-व्यवस्था से तथाकथित नीची जातियां भी विरत नहीं फिर भी कुछ को
सवर्ण कहकर समाज को टुकड़ों में बांटने के पीछे कौन सी मंशा काम कर रही
है?
५. अंग्रेजो के दमन को मुट्ठी भर युवाओं ने नाकों चने चबवा दिए फिर आज का
युवा इतना अकर्मण्य क्यों है?
६. क्या हम गन्दी राजनीति के आगे घुटने टेक चुके हैं?
७. क्या आज सत्य को सत्य और झूठ को झूठ कहने वाले लोगों का चरित्र दोगला
हो चला है कि आप से एक हुंकार भी नहीं भरी ज़ाती?
जागो ! विचार करो ! सत्य को जिस संसाधन से व्यक्त कर सकते हो करो वर्ना
आने वाली नस्लें तुमसे भी ज्यादा कायर पैदा हुईं तो इन काले अंग्रेजों के
रहमो-करम पर
Similar questions
India Languages,
8 months ago
Science,
8 months ago
Math,
1 year ago
Math,
1 year ago
Math,
1 year ago