Essay on Aeroplane journey in Hindi
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प्रस्तावना:
वायुयान यात्रा आधुनिक युग की अनुपम देन है । आज बहुत-से देशों में यात्रियों तथा माल लाने-ले जाने के लिए नियमित वायुयान सेवायें चलाई जाती हैं । भारत में भी वायु-यात्रा का बड़ा विस्तार हुआ है । अब देश के अधिकांश महत्त्वपूर्ण शहर वायु-सेवा से जुडे हुए हैं । लेकिन वायु-यात्रा का किराया बहुत अधिक है ।
वायु यात्रा का अवसर:
कुछ वर्ष पूर्व मुझे हवाई यात्रा का सुअवसर मिला । मेरे चाचा इलाहाबाद में रहते है; वे व्यापारी है और बड़े धनी है । एक बार गरमियो की छुट्टियों के दौरान वे हमारे घर दिल्ली आये । यहां आकर एक दिन उन्हें इलाहाबाद जल्दी पहुंचने का टेलीफोन मिला ।
किसी मुकदमें के सिलसिले में अगले दिन दोपहर तक उन्हें इलाहाबाद पहुंचना था । ट्रेन से ऐसा सम्भव नहीं था अत: उन्होंने वायुयान द्वारा इलाहाबाद जाने का फैसला किया । मेरे अनुरोध पर वे अपने साथ मुझे भी हवाई जहाज से ले जाने को तैयार हो गए ।
यात्रा की तैयारी:
उनकी स्वीकृति पाकर मैं बड़ा हर्षित हुआ । वायु-यात्रा के विचार से ही मैं रोमांचित हो उठता था । मैं लोहे के एक ट्रक मैं अपना सामान लगाने की तैयारी करने लगा । चाचा ऐसा करते देख हँस पड़े और उन्होंने बताया कि वायु-यात्रा में भारी सामान नहीं ले जा सकते ।
अत: मैंने एक वी.आई.पी. अटैची में अपने कपड़े रख लिये । ठीक नौ बजे हमे हवाई अड्डे पर रिपोर्ट करना था । हमारा वायुयान 10 बजे उड़ना था ।
हवाई-अड्डे का दृश्य:
हम समय से पूर्व पालम हवाई अड्डे पर पहुच गए । यहाँ एक बहुत लम्बा-चौड़ा हाल था । हाल के अन्दर घुसते ही हमें ठंडी हवा के झोंके लगे । पूरा हवाई अड्डा एयर कडीशन था । यही रंग-बिरंगी आरामदेह कुसिया लगी थीं । चारों तरफ काच की पारदर्शी दीवारें दिख रही थीं । वहाँ बैंक, डाकघर व चाय-पानी के स्टाल भी थे ।
हवाई-अड्डे के भीतर कई काउन्टर लगे हुए थे । एक काउंटर पर हमारी यात्रा का नम्बर लिखा था । मेरे चाचा टिकट हाथ में लेकर उसी लाइन में खड़े हो गए । जब उनका नम्बर आया, तो उन्होंने टिकट दिखाये और अपनी दो अटैचियाँ काउटर क्लर्क को दे दी ।
उसने उनका वजन किया तथा उन पर नम्बर टांगे और दो पर्चियों चाचा को पकड़ा दी और साथ ही वायुयान में बैठने का आदेश भी दे दिया, जिसमें हमारे सीट नम्बर लिखे थे ।
सुरक्षा जांच और वायुयान पर चढ़ना:
अब हॉल में घोषणा होने लगी कि हमारे वायुयान से यात्रा करने वाले यात्री सुरक्षा जाच के लिए आगे बढ़े । सुरक्षा जांच के दौरान एक-एक करके व्यक्ति दरवाजे के भीतर जाते और वहाँ उनकी तलाशी ली जाती कि कहीं किसी ने । कोई हथियार तो नहीं छिपा रखा है ।
हाथ के शैलों की भी पूरी जाच करके बोर्डिंग टिकट पर मोहर लगा दी गई । हम लोग अपनी जांच कराकर दूसरे हाल में आ गए । यहां भी बैठने की व्यवस्था थी । अब हम लोग अगली घोषणा की प्रतीक्षा में थे । थोड़ी ही देर मे हमे वायुयान की ओर बढने का आदेश मिला । हाल का दरवाजा खोल दिया गया और एक कर्मचारी हमारा मार्ग-दर्शन करने लगा और हम लोग वही से निकल कर जहाज की ओर चल पड़े ।
वायु-यात्रा का प्रारम्भ:
जहाज के पास एक चौडी सीढ़ी लगी हुई थी । उसके द्वारा हम जहाज पर चढ़ गए और अपनी निर्धारित सीटों पर बैठ गए । जहाज का दृश्य रेल के एक बड़े उच्च श्रेणी के डिब्बे जैसा ही लग रहा था । यहाँ की सीटे बड़ी आरामदेह थीं । हमने हाथ के झोली को सीटों के ऊपर वाले स्थान पर रख दिया ।
कुछ देर बाद वायुयान उडने की घोषणा हुई । सभी यात्रियों से बीड़ी-सिगरेट बन्द कर देने का अनुरोध किया गया और सभी से अपनी-अपनी कमर को सीट की एक पेटी से बांध लेने का आदेश दिया गया । सीढ़ी हटा दी गई और जहाज का दरवाजा बन्द कर दिया गया ।
अब जहाज धीरे-धीरे चलने लगा । कुछ दूर जाकर उसने रफ्तार पकड़ ली और धीरे-धीरे जमीन छोड़कर ऊपर उठने लगा । थोडा ऊपर आते ही उसके पहिये अन्दर चले गए और जहाज अपने गंतव्य की ओर बढ़ चला ।
वायुयान यात्रा आधुनिक युग की अनुपम देन है । आज बहुत-से देशों में यात्रियों तथा माल लाने-ले जाने के लिए नियमित वायुयान सेवायें चलाई जाती हैं । भारत में भी वायु-यात्रा का बड़ा विस्तार हुआ है । अब देश के अधिकांश महत्त्वपूर्ण शहर वायु-सेवा से जुडे हुए हैं । लेकिन वायु-यात्रा का किराया बहुत अधिक है ।
वायु यात्रा का अवसर:
कुछ वर्ष पूर्व मुझे हवाई यात्रा का सुअवसर मिला । मेरे चाचा इलाहाबाद में रहते है; वे व्यापारी है और बड़े धनी है । एक बार गरमियो की छुट्टियों के दौरान वे हमारे घर दिल्ली आये । यहां आकर एक दिन उन्हें इलाहाबाद जल्दी पहुंचने का टेलीफोन मिला ।
किसी मुकदमें के सिलसिले में अगले दिन दोपहर तक उन्हें इलाहाबाद पहुंचना था । ट्रेन से ऐसा सम्भव नहीं था अत: उन्होंने वायुयान द्वारा इलाहाबाद जाने का फैसला किया । मेरे अनुरोध पर वे अपने साथ मुझे भी हवाई जहाज से ले जाने को तैयार हो गए ।
यात्रा की तैयारी:
उनकी स्वीकृति पाकर मैं बड़ा हर्षित हुआ । वायु-यात्रा के विचार से ही मैं रोमांचित हो उठता था । मैं लोहे के एक ट्रक मैं अपना सामान लगाने की तैयारी करने लगा । चाचा ऐसा करते देख हँस पड़े और उन्होंने बताया कि वायु-यात्रा में भारी सामान नहीं ले जा सकते ।
अत: मैंने एक वी.आई.पी. अटैची में अपने कपड़े रख लिये । ठीक नौ बजे हमे हवाई अड्डे पर रिपोर्ट करना था । हमारा वायुयान 10 बजे उड़ना था ।
हवाई-अड्डे का दृश्य:
हम समय से पूर्व पालम हवाई अड्डे पर पहुच गए । यहाँ एक बहुत लम्बा-चौड़ा हाल था । हाल के अन्दर घुसते ही हमें ठंडी हवा के झोंके लगे । पूरा हवाई अड्डा एयर कडीशन था । यही रंग-बिरंगी आरामदेह कुसिया लगी थीं । चारों तरफ काच की पारदर्शी दीवारें दिख रही थीं । वहाँ बैंक, डाकघर व चाय-पानी के स्टाल भी थे ।
हवाई-अड्डे के भीतर कई काउन्टर लगे हुए थे । एक काउंटर पर हमारी यात्रा का नम्बर लिखा था । मेरे चाचा टिकट हाथ में लेकर उसी लाइन में खड़े हो गए । जब उनका नम्बर आया, तो उन्होंने टिकट दिखाये और अपनी दो अटैचियाँ काउटर क्लर्क को दे दी ।
उसने उनका वजन किया तथा उन पर नम्बर टांगे और दो पर्चियों चाचा को पकड़ा दी और साथ ही वायुयान में बैठने का आदेश भी दे दिया, जिसमें हमारे सीट नम्बर लिखे थे ।
सुरक्षा जांच और वायुयान पर चढ़ना:
अब हॉल में घोषणा होने लगी कि हमारे वायुयान से यात्रा करने वाले यात्री सुरक्षा जाच के लिए आगे बढ़े । सुरक्षा जांच के दौरान एक-एक करके व्यक्ति दरवाजे के भीतर जाते और वहाँ उनकी तलाशी ली जाती कि कहीं किसी ने । कोई हथियार तो नहीं छिपा रखा है ।
हाथ के शैलों की भी पूरी जाच करके बोर्डिंग टिकट पर मोहर लगा दी गई । हम लोग अपनी जांच कराकर दूसरे हाल में आ गए । यहां भी बैठने की व्यवस्था थी । अब हम लोग अगली घोषणा की प्रतीक्षा में थे । थोड़ी ही देर मे हमे वायुयान की ओर बढने का आदेश मिला । हाल का दरवाजा खोल दिया गया और एक कर्मचारी हमारा मार्ग-दर्शन करने लगा और हम लोग वही से निकल कर जहाज की ओर चल पड़े ।
वायु-यात्रा का प्रारम्भ:
जहाज के पास एक चौडी सीढ़ी लगी हुई थी । उसके द्वारा हम जहाज पर चढ़ गए और अपनी निर्धारित सीटों पर बैठ गए । जहाज का दृश्य रेल के एक बड़े उच्च श्रेणी के डिब्बे जैसा ही लग रहा था । यहाँ की सीटे बड़ी आरामदेह थीं । हमने हाथ के झोली को सीटों के ऊपर वाले स्थान पर रख दिया ।
कुछ देर बाद वायुयान उडने की घोषणा हुई । सभी यात्रियों से बीड़ी-सिगरेट बन्द कर देने का अनुरोध किया गया और सभी से अपनी-अपनी कमर को सीट की एक पेटी से बांध लेने का आदेश दिया गया । सीढ़ी हटा दी गई और जहाज का दरवाजा बन्द कर दिया गया ।
अब जहाज धीरे-धीरे चलने लगा । कुछ दूर जाकर उसने रफ्तार पकड़ ली और धीरे-धीरे जमीन छोड़कर ऊपर उठने लगा । थोडा ऊपर आते ही उसके पहिये अन्दर चले गए और जहाज अपने गंतव्य की ओर बढ़ चला ।
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