Essay on anushasanhinta
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अनुशासनहीनता की समस्या और समाधान पर निबंध
प्रस्तावना:- मनुष्य को विधाता की सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। सवाल ये उठता है कि समस्त प्राणी – जगत ही सर्वश्रेष्ठ क्यों है ? इस सवाल का सरल और सीधा उत्तर यही है, कि मनुष्य अपनी कुछ विशेषताओ के कारण मनुष्योतर प्राणियों से भिन्न है। चरित्रबल, विवेकशीलता तथा अनुशासन आदि ही मनुष्य की वे विशेषताएं हैं। जिससे रहित होने पर मनुष्य तथा सिंग-पूछ से युक्त पशुओं में कोई अंतर नहीँ रह जाता। आहार निद्रा, भय तथा मैथुन आदि प्रवर्तिया तो पशुओं ओर मनुष्यों दोनों में ही समान रूप में पायी जाती है। लेकिन मनुष्य अपनि विवेक,अनुशासन तथा चरित्र आदि विशेषताओं के कारण पशु-जगत से भिन्न हो जाता है। मनुष्य की सभी विशेषताओं में अनुशासन का प्रमुख महत्व है। इसके अभाव में मनुष्य पशु से भी निम्नकोटि का हो जाता है।
प्रकृति में अनुशासन:- संसार मे सभी ओर किसी न किसी प्रकार का अनुशासन देखने मे आता है। लघुतम चींटियों को पंक्तिबद्ध चलता देखकर अनुशासन का ही ध्यान आ जाता है पक्षिगण नीले आकाश में मलकर रूप में विहार करते है। सूर्य चन्द्र नक्षत्र आदि का उदयास्त भी अनुशासन के महत्व को ही सिद्ध करता है। इसी बात को प्रसाद जी ने इस प्रकार शब्द- बद्ध किया है।
“सिर नीचा कर जिसकी सत्ता सब करते स्वीकार यहाँ।
मोन भाव से प्रवचन करते,जिसका वह अस्तित्व कहां।“
कहने का अभिप्राय यह है कि यह सम्पूर्ण द्रश्यमान जगत किसी न किसी अनुशासन में बंधा हुआ चल रहा है। जब कभी अनुशासन भंग होता है तभी समस्याओं का आरम्भ हो जाता है। अनुशासन का अर्थ ही शासन के पीछे चलने से ही व्यवस्था उत्पन्न होती है। अतः व्यवस्था बनाये रखने के लिए अनुशासन का होना आवश्यक है।
आधार:- यो तो अनुशासन की प्रथम पाठशाला घर ही होता है, लेकिन सामाजिक अनुशासन का पाठ तत्वा शिक्षा -संस्था में ही पढ़ता है। विद्यार्थी जीवन ही समस्त जीवन की आधारशिला है। प्राचीन व्यवस्था में विधार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम की संज्ञा दी गई है। प्राचीन व्यवस्था में शिष्य गुरुकुलो में रहकर अनुशासित जीवन व्यतीत करता हुआ ज्ञान प्राप्त करता था। छात्र चाहे राज परिवार का हो, चाहे किसी साधारण परिवार का सभी को गुरुकुल का अनुशासन समान रूप से स्वीकार करना पड़ता था। विद्या अध्ध्यन के उपरांत छात्र एक गुण सम्पन्न अनुशासित नागरिक बनकर समाज मे प्रवेश करता था।
समस्या:- वर्तमान युग मे अनुशासनहीनता एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। भारतवर्ष में तो आजादी के 35 वर्षों में यह समस्या इतना भयंकर रूप धारण कर गई है कि माता पिता तथा राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में अनुशासन व्याप्त हो गया है। देश के कर्णधार चुनाव जीतकर एक-एक दिन में कई-कई बार दल बदलते है। व्यापारी मनचाहा मुनाफा कमाता है। कैसा अनुशासन और किसका अनुशासन? जिसे देखो वह एक ही स्वर में अनुशासनहीनता का सारा दोष आज छात्रों के माथे मढ़ने पर तुला हुआ है। कोई इनकी समस्याओं में झांकने को तैयार नहीं है।
कारण:- इनमें कोई संदेह नही है कि आज का हाल अध्यन से विरत है। लेकिन इस विरक्ति के कारण भी होने चाहिए । यदि हम ध्यानपूर्वक देखे तो पता चलेगा कि ऐसे अनेक कारण है जिनसे की हमारा छात्र वर्ग पढ़ाई छोड़कर अनुशासनहीनता की ओर बढ़ रहा है। इन कारणों में से कुछ इस प्रकार है:-
(1) आधुनिक शिक्षा पद्धति
छात्रों में अनुशासनहीनता का एक प्रमुख कारण है । पुस्तकीय ज्ञान पर आधारित आधुनिक शिक्षा पद्धति छात्र को बेकारों की भिड़ में ले जाकर खड़ा कर देती है। जब उसे नोकरी नही मिलती है, तो वह हर प्रकार के अनुशासन को तोड़कर तोड़-फोड़ जैसे कार्यो में प्रव्रत हो जाती है।
(2) शिक्षा संस्थाओं में उपयुक्त वातावरण का अभाव
छात्रों में व्याप्त अनुशासनहीनता का एक करण ये भी है की आजकल शिक्षा संस्थाये राजनीति के अखाड़े बन गई है। वहाँ निष्ठावान ओर चरित्रवान शिक्षको की कमी रहती है। प्रबंध समिति के अयोग्य रिश्तेदारों को प्रायः शिक्षक जैसे जिम्मेदार पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। ये शिक्षक स्वयं किसी अनुशासन को स्वीकार नही करते फिर उनके द्वारा पढ़ाए गये शिष्य ही किसी अनुशासन को कैसे स्वीकार कर सकते है?
(3) चलचित्र ओर फैशन
चलचित्र ओर फैशन ने भी विद्यर्थियों में अनुशासनहीनता फैलाने में कमी नही छोड़ी है। चलचित्र की भोंडी ओर विषैली दृश्यावलियों ने हमारे छात्रों की मानसिकता को छीन बना दिया है। फैशन ने अनुशासनहीनता के बढ़ाने में “आग में घी” वाला काम किया है। आज का छात्र फैशन में इतना फंस गया है कि अपने मुख्य लक्ष्य ज्ञानर्जन को भी भूल गया है।
राजनीतिक दल:- राजनीतिक दल भी अनुशासनहीनता को बढावा देने वाले मुख्य स्रोत है। इन दलों के नेता कोमल मन वाले छात्रों को भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते है। जब ये नेता कुर्सी पर होते है, तो कहते है कि छात्रों को राजनीति से दूर रहकर अनुशासित जीवन व्यतीत करना चाहिए ,लेकिन जब कुर्सी से अलग होते है। तो उन्हें राजनीति के दलदल में फंसने की सलाह देते है।
निक कलाविद, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ होंगे। वे ही देश को प्रगति की राह पर आगे बढायँगे अतः उन्हें अनुशासन के महत्व को स्वीकार करते हुए अपने ओर देश के भविष्य के निर्माण की ओर प्रव्रत होना चाहिए और प्रतेक वक्त आगे बढ़ने के बारे में निरंतर गतिशील होना चाहिए।