Hindi, asked by ishika679, 1 year ago

essay on apj abdul kalam in hindi in 500 words​

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Answered by sahilwwe9305
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Ans--डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एक महान भारतीय वैज्ञानिक थे जिसने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रुप में वर्ष 2002 से 2007 तक देश की सेवा की। वो भारत के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे क्योंकि एक वैज्ञानिक और राष्ट्रपति के रुप में देश के लिये उन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया था। ‘इसरो’ के लिये दिया गया उनका योगदान अविस्मरणीय है। बहुत सारे प्रोजेक्ट को उनके द्वारा नेतृत्व किया गया जैसे रोहिणी-1 का लाँच, प्रोजेक्ट डेविल और प्रोजेक्ट वैलिएंट, मिसाइलों का विकास (अग्नि और पृथ्वी) आदि। भारत की परमाणु शक्ति को सुधारने में उनके महान योगदान के लिये उन्हें “भारत का मिसाइल मैन” कहा जाता है। अपने समर्पित कार्यों के लिये उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया। भारत के राष्ट्रपति के रुप में अपने कार्यकाल के पूरा होने के उपरान्त, डॉ कलाम ने विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एक अतिथि प्रोफेसर के रुप में देश की सेवा की।


ishika679: in 500 words
ishika679: ok
Answered by sriharini04
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तमिलनाडु के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेने वाले एक बालक का यह सपना था कि वह एक दिन पाइलट बनकर आसमान की अनन्त ऊँचाइयों को नापे । अपने इस सपने को साकार करने के लिए उसने अखबार तक बेचे, मुफलिसी में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और आखिरकार आर्थिक तंगियों से संघर्ष करते हुए बह बालक उच्च शिक्षा हासिल कर पाइलट के लिए होने वाली भर्ती परीक्षा में सम्मिलित हुआ ।

उस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद भी उसका चयन नहीं हो सका, क्योंकि उस परीक्षा के द्वारा केवल आठ पाइलटों का चयन होना था और सफल अभ्यर्थियों की सूची में उस बालक का स्थान नौवाँ था । इस घटना से उसे थोड़ी निराशा हुई, पर उसने हार नहीं मानी ।

उसके दृढ़ निश्चय का ही कमाल था कि एक दिन उसने सफलता की ऐसी बुलन्दियाँ हासिल कीं, जिनके सामने सामान्य पाइलटों की उड़ाने अत्यन्त तुच्छ नजर आती हैं । उस व्यक्ति ने भारत को अनेक मिसाइलें प्रदान कर इसे सामरिक दृष्टि से इतना सम्पन्न कर दिया कि पूरी दुनिया उसे ‘मिसाइल मैन’ के नाम से जानने लगी तो कल्पना भी नहीं कर सकते थे ।

 

इसके बाद एक दिन ऐसा भी आया जब बह व्यक्ति भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन हुआ ।  चमत्कारी प्रतिभा का धनी वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति रह चुके डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम है, जिनकी जीवनगाथा किसी रोचक उपन्यास की कथा से कम नहीं है ।

डॉ. एपीजे अकुल कलाम, जिनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम है, का जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य में स्थित रामेश्वरम् के धनुषकोडी नामक स्थान में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था ।

वे अपने पिता के साथ मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हुए रास्ते में पड़ने वाले शिव मन्दिर में भी माथा नवाते । इसी गंगा-जमुनी संस्कृति के बीच कलाम ने धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा । उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने एवं घर के खर्चे में योगदान के लिए अखबार बेचने पड़ते थे ।

इसी तरह, संघर्ष करते हुए प्रारम्भिक शिक्षा रामेश्वरम् के प्राथमिक स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्होंने रामनाथपुरम् के श्वार्ट्ज हाईस्कूल से मैट्रिकुलेशन किया । इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए तिरुचिरापल्ली चले गए ।

वहाँ के सेंट जोसेफ कॉलेज से उन्होंने बीएससी की उपाधि प्राप्त की । वर्ष 1957 में एमआईटी से वैमानिकी इंजीनियरी में डिप्लोमा प्राप्त किया । अन्तिम वर्ष में उन्हें एक परियोजना दी गई, जिसमें उन्हें 30 दिनों के अन्दर विमान का एक डिजाइन तैयार करना था, अन्यथा उनकी छात्रवृत्ति रुक जाती ।  कलाम ने इसे निर्धारित अवधि में पूरा किया ।

उन्होंने तमिल पत्रिका ‘आनन्द विकटन’ में ‘अपना विमान स्वयं बनाएँ’ शीर्षक से एक लेख लिखा, जिसे प्रथम स्थान मिला । बीएससी के बाद वर्ष 1958 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्‌यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की । अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. कलाम ने हावरक्राफ्ट परियोजना एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया ।

इसके बाद वर्ष 1962 में बे भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन में आए, जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।  यहाँ रहकर उन्होंने थुम्बा में रॉकेट इंजीनियरी डिविजन की स्थापना की ।

उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें ‘नासा’ में प्रशिक्षण हेतु भेजा गया । नासा से लौटने के पश्चात् वर्ष 1963 में उनके निर्देशन में भारत का पहला रॉकेट ‘नाइक अपाची’ छोड़ा गया ।  20 नवम्बर, 1967 को ‘रोहिणी-75’ रॉकेट का सफल प्रक्षेपण उन्हीं के निर्देशन में हुआ । परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलबी-3 के निर्माण में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

इसी प्रक्षेपण यान से जुलाई, 1980 में रोहिणी उपग्रह का अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया । वर्ष 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन में वापस निदेशक के तौर पर आए तथा अपना सारा ध्यान गाइडेड मिसाइल के विकास पर केन्द्रित किया ।





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