Hindi, asked by omprakash4041, 9 months ago

Essay on atamnirbhar Bharat 200 words

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Answered by sanart00
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Answered by Anonymous
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प्रस्तावना- स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता दोनों का ही अर्थ है- हमें अपने सहारे रहने अर्थात् स्वयं पर निर्भर रहना। ये दोनों ही शब्द हमें स्वयं परिश्रम करने, सभी प्रकार के दुःख एवं कष्टों को सहकर भी अपने पैरों पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देते हैं। यह हमारी जीत की प्रथम सीढ़ी है। इस पर चढ़कर ही हम ऊंचाई पर पहुंच पाते हैं। इसे अपनाकर सृष्टि के कण-कण को वश में किया जा सकता है।

स्वावलम्बन की विशेषता-गाँधी जी के अनुसार-‘जो व्यक्ति आत्मनिर्भर न होकर दूसरों पर निर्भर रहता है, वह सबसे अधिक दुःखी व्यक्ति होता है।

स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यक्ति ही सही अर्थों में जान पाता है कि संसार मे दुःख-दर्द क्या है, मान-सम्मान किसे कहते हैं, अपमान की पीड़ा क्या होती है, सुख-सुविधा का क्या मूल्य एवं महत्व होता है?

एक स्वतन्त्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्त भाव से सोच-विचार करके उचित कदम उठाता है। स्वावलम्बी मानव ही जीवन रूपी नौका की पतवार है। यह ही हमारा प्रदर्शक है।

स्ववालम्बन की आवश्यकता- विश्व में अनेक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होनें स्वावलम्बन पर आत्मनिर्भरता से ही संसार की बुलंदियों को छुआ है। स्वावलम्बन से ही अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। मैक्डानल एक श्रमिक थे लेकिन स्वावलम्बन के बल पर वे एक दिन इंग्लैड के प्रधानमन्त्री बने। भारतीय इतिहास में भी धीरूभाई अम्बानी, लक्ष्मी मितल, राष्ट्रपिता गाँधी जी, अमिताभ बच्चन, लाल बहादुर शास्त्री, शंकराचार्य, एकलव्य आदि अनेक महापुरूषों ने स्वावलम्बन शक्ति के उदाहरण प्रस्तुत किये।

स्वावलम्बन के शत्रु- अत्यधिक लाड़-प्यार, धन-मोह, आलस्य, अन्धविश्वास, भाग्यवाद आदि स्वावलम्बन के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। इनके अतिरिक्त बच्चों का उत्साह कम करना, या उन्हें किसी काम को करने से रोकना बच्चों में स्वावलम्बन की कमी पैदा करता है। वास्तव मंे ये सभी स्वावलम्बन के शत्रु हैं। स्वावलम्बन की महिमा अपरम्पार है। स्वावलम्बन के द्वारा परिश्रमी व्यक्ति सुखद फल प्राप्त करता है।

उपसंहार- युग में अनेक व्यक्ति दूसरों को लूट-खसोट कर अधिक-से-अधिक धन तथा सुख प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें अपने परिश्रम और स्वंय पर अधिक विश्वास नहीं होता जिस कारण वे स्वतन्त्र होकर भी दुःखी और परतन्त्र रहते हैं।

अतः स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता द्वारा हम ऐसी स्थितियों से छुटकारा पा सकते हैं।

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