Essay on athidi devo bhava in Telugu fast please!!!!
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SORRY I DON'T KNOW ABOUT TELGU
हमारी भारतीय संस्कृति की यह परम्परा रही है कि हम अपने अतिथियों को देवतुल्य मानते हैं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनके स्वागत सत्कार और अभ्यर्थना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते । अतिथियों के साथ सज्जनता से व्यवहार करना, उनकी आवश्यक्ताओं को समझ कर उनको पूरा करने के लिये प्रयत्नशील रहना, उनके मान सम्मान और उनकी सुख सुविधा का ध्यान रखना और उनके लिये यथा सम्भव एक सुखद और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराना ही अब तक हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता रही है और आज भी होनी चाहिये । यही संस्कार बचपन से हमें हमारे माता पिता देते आये हैं और स्कूलों में भी यही शिक्षा अब तक हमें अपंने गुरुजनों से मिली है ।
हमारी भारतीय संस्कृति की यह परम्परा रही है कि हम अपने अतिथियों को देवतुल्य मानते हैं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनके स्वागत सत्कार और अभ्यर्थना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते । अतिथियों के साथ सज्जनता से व्यवहार करना, उनकी आवश्यक्ताओं को समझ कर उनको पूरा करने के लिये प्रयत्नशील रहना, उनके मान सम्मान और उनकी सुख सुविधा का ध्यान रखना और उनके लिये यथा सम्भव एक सुखद और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराना ही अब तक हमारी सर्वोपरि प्राथमिकता रही है और आज भी होनी चाहिये । यही संस्कार बचपन से हमें हमारे माता पिता देते आये हैं और स्कूलों में भी यही शिक्षा अब तक हमें अपंने गुरुजनों से मिली है ।
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