Essay on Atithi Dev Bhav in Hindi
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भूमिका- अतिथि देवो भवः एक बहुत ही प्राचीन प्रचलित कहावत है जिसका अर्थ है कि अतिथि यानि कि मेहमान देवता के समान होते है। प्राचीन काल से ही भारत देश में अतिथियों को भगवान की तरह सम्मान दिया जाता है और उनका आदर सत्कार किया जाता है। अतिथि के हम खान पान का ध्यान रखते हैं और उनके रहने की उचित व्यवस्था करते हैं। भारतीय संस्कृति में अतिथी का दर्जा पूजनीय है और वह देवों के समान है।
अतिथी के प्रकार- घर पर आने वाले अतिथि कोई भी हो सकते हैं। वह हमारे कुछ रिश्तेदार भी हो सकते हैं या फिर हमारे दोस्त भी हो सकते हैं। आज के समय में परिवार के लोग भी अतिथि के रूप में ही एक दुसरे के यहाँ जाने लगे हैं। कुछ अतिथी थोड़े समय के लिए आते हैं और कुछ अतिथि कुछ महीनों के लिए आते हैं लेकिन कोई भी हमेशा के लिए नहीं आता है और हमैं इनका हर संभव सत्कार करना चाहिए।
अतिथी आगमन- अतिथी का आगमन व्यक्ति को उतनी ही खुशी देता है जितनी खुशी देवों का सत्कार करने से मिलती है। अतिथि हमारे घर में किसी न किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आते हैं। वह हमारे लिए खुशखबरी लाते हैं और तोहफे और मिठाईयों के रूप में खुशियाँ बाँट जाते हैं। अतिथि के आने जाने से संबंधो में गहराई बनी रहती है और उनका ध्यान रखना और उनके लिए उचित व्यवस्था करना हमारा कर्तव्य है।
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aayege aayege Bokaro bhi aayege Corona Chale jaaye bas phir SB jagah ghmume ge