essay on autobiography of a school in hindi
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हाँ मैं विद्यालय हूँ. दुनिया के छोटे बड़े हर देश में देखने को मिलता हूँ. देश के हर गाँव में विद्यालय बने होते है शहरों की तो बात ही क्या हर गली मोहल्ले में एक प्राथमिक और उच्च शिक्षा के विद्यालय बने होते हैं. स्कूल में नन्हे बालक विद्या अर्जन के लिए आते हैं मुझे विद्या के मन्दिर के रूप में भी जाना जाता हैं. समाज तथा देश के भविष्य का निर्धारण विद्यालय की स्थिति एवं गुणवत्ता पर ही निर्भर करती हैं.
दुनियां की जितनी बड़ी हस्तियाँ, महापुरुष अथवा वैज्ञानिक कोई भी क्यों न हो वे विद्यालयों से ही निकले है बच्चें परिवार के बाद स्कूल से ही जीवन जीने की आवश्यक शिक्षा प्राप्त करते हैं. बच्चों यदि आप अध्यापक, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर अथवा कुछ भी बनना चाहते है तो मैं विद्यालय आपकों अपने लक्ष्य की प्राप्ति में बड़ी मदद कर सकता हूँ.
सवेरे नियत समय पर बच्चें सजधजकर स्कूल आते हैं. स्कूल अपने निर्धारित घंटों तक खुला रहता है जहाँ विद्वान् शिक्षक अपने शिष्यों को पढ़ाते हैं. वे विद्यालय भवन के कक्षाकक्ष में बैठकर अपने दिन में बढ़ते हैं. मेरे क्लासरूम की व्यवस्था बहुत अच्छी हैं. अच्छे हवादार कमरे है जिसमें बैठने के लिए अच्छी कुर्सी व टेबल हैं. हमारे गुरूजी के लिए स्टेज पर कुर्सी बनी होती है तथा सम्मुख में श्यामपट बना होता हैं.
प्रत्येक विद्यार्थी विद्यालय में आकर स्वयं को खुश महसूस करता है. दोपहर के समय बच्चों के लिए मध्यांतर में विश्राम व खाने का अवकाश होता हैं. सभी स्टूडेंट्स और अध्यापक नित्य अपने कर्तव्यों का भलीभांति निर्वहन करते हैं. तथा छुट्टी के समय सभी अच्छी यादों तथा ज्ञान रुपी धन को लेकर घरों की ओर प्रस्थान करते हैं.
देश के कई राज्यों में आज भी मेरी समयानुकूल आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सका हैं. कहीं बच्चों को पढ़ाने वाले अध्यापकों की कमी रहती है तो कही भवन तथा अन्य संसाधनों के अभाव में विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा हैं. मैं चाहूँगा प्रशासन स्कूलों के कार्यशैली तथा व्यवस्थाओं पर अपनी नजर बनाए रखे जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधारा लाया जा सके.