essay on अविस्मरणीय घटना
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हमारा जीवन एक नदी के समान हैं. इसमें उतार चढ़ाव आते रहते हैं. हमारे जीवन में घटित घटनाएं होती रहती हैं. कई घटनाएं ऐसी होती हैं. जो हमारे मानस पटल पर छायी रहती हैं. और जो भुलाएँ नहीं भूलती हैं. यहाँ एक ऐसी ही आँखों देखी घटना का वर्णन किया जा रहा हैं. जिसकों मैं कभी भूला नहीं पाउगा.
यात्रा का उद्देश्य व कार्यक्रम- दीपावली की छुट्टियों में मैं अपने मामा के घर अजमेर गया. सभी से मिला, प्रसन्नता हुई. आस पडोस और मामाजी के बच्चों के साथ खेलते हुए दिन कब बीत जाता है, इसका पता ही नहीं चलता हैं. एक दिन हम सभी ने पुष्कर नहाने की योजना बनाई. मामाजी से आज्ञा लेकर हम पांच जने बस द्वारा पुष्कर नहाने के लिए गये.
मनोरम प्रसंग- पुष्कर पहुचकर देखा कि वहां अपार भीड़ थी. ग्रामीण रंग बिरंगी पोशाके पहने आनन्द ले रहे थे. सरोवर घाट पर बच्चे, आदमी, औरतें सभी स्नान कर रहे थे. मैं भी अपने साथियों के साथ नहाने के लिए जल में घुसा, उसी समय मैंने देखा कि एक महिला ने पहले स्नान किया, फिर वह लगभग आठ वर्ष के अपने बालक को नहलाने लगी. बालक अपनी चंचलता के कारण अपनी माँ के हाथों से छूट गया और गहरे पानी की ओर चला गया. बालक पानी के अंदर डूबने लगा, यह देखकर माँ रोने और चिल्लाने लगी.
घटित घटना और अविस्मरणीय दृश्य- माँ के रोने और चीखने की आवाज को सुनकर लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. सभी डूबते बालक पर नजरे लगाए हुए थे. जब वह पानी के उपर नहीं आया तो गोताखोरों ने बालक की तलाश की लेकिन उन्हें भी उस डूबे बालक का शव नहीं मिला.
इतने में ही सरोवर के बीच में कुछ काली सी वस्तु दिखाई दी. आशा की लहर जगी. मल्लाह लोग और तैराक उस वस्तु की ओर गये. उन्हें थोड़ी दूर पर बालक का हाथ दिखाई दिया. और दुसरे ही क्षण दिखाई दिया कि एक बालक को मुहं में दबाएँ उपर आया और एकदम दूर चला गया. मगर के जबड़े में बालक का कटा हुआ पंजा पानी में सूखे पत्ते की तरह तैर रहा था.
इस भयानक दृश्य को देखकर खड़ी भीड़ के कलेजे की धड़कने बढने लगी. चारों ओर सन्नाटा छा गया. यह देखकर बालक की माँ रोते रोते बेहोश हो गई. मैं इस दृश्य को देखने में असमर्थ था और दुखी मन से अपने साथियों के साथ वापिस आ गया.
उपसंहार- मैंने जीवन में अनेक घटनाएं देखी, परन्तु ऐसी करूण घटना जीवन में अभी तक एक ही बार देखी. उसे बार बार भूलने का प्रयत्न करने पर भी वह दृश्य मेरी आँखों के सामने आ जाता हैं. और मैं शोक विहल हो जाता हूँ. मेरे जीवन के लिए तो यह एक अविस्मरणीय घटना हैं. इसे मैं कभी नहीं भूल सकूगा.
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पिछले महिने में दिल्ली गया। भारत की राजधानी दिल्ली एक बहुत बड़ा शहर है जो भारत का सबसे बढ़िया शहर हैं और मुझे खुशी हुई क्योंकि दिल्ली वर्षों से ज्यादा अच्छा तैथा आधुनिक है। हालाँकि वर्धा एक शांत और खूबसूरत नगर हैं, फिर भी वह छोटा है और सुविधाओं तथा खेलने के स्थानों की कमी है। यहाँ कुछ दिन ठहरने के बाद हम बोर हो गये, इसलिए दिल्ली जाने का मौका मिलते ही मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने हवाई जहाज से दिल्ली जाने का फैसला लिया। मैं यहाँ एक बात सुनाना चाहता हूँ कि हवाई अड्डे जाने के लिए मैंने एक ट्रैक्सी बुक कर ली, लेकिन टैक्सी ड्राइवर बड़ी देर से आया। इससे मुझे याद दिलाया गया कि भारत में ज्यादातर लोग धीरे धीरे काम करते हैं। उदास होकर मैंने कुछ नहीं किया। दो घंटे की उड़ान के बाद में सुरक्षित दिल्ली पहुंचा। आदेश के मुताबिक पहले में चीनी दूतवास गया। शिक्षा कार्यालय के अध्यापक से मिलकर मैंने उन्हें हमारी आजकल की हालत बता दी और हमारे कागजों उन्हें दिये। उन्होंने मुझे कई निर्देश दिये, जैसे, भारतीय विश्वविद्यालय के नियमों का पालन करें, सुरक्षा पर ध्यान रखें तीन महीने के बाद फिर दिल्ला आकर छात्रवृत्ति ले इत्यादि। इस के बाद मैंने मुंबई में चीन के कांसुलैट के अध्यापक से मिलकर दूतवास में शाम का खाना खाया। बड़ी खुशी की बात यह थी कि चीन से बाहर आने के बाद पहली बार बहुत चीनी भोजून, खाया। बाकी दिनों में में दिल्ली के एक सहपाठी के यहाँ ठहूरा और दिल्ली में घूमा। दिल्ली यात्रा मेरे लिए
एक अविस्मरणीय अनुभव है!
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