essay on Basant ritu
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वसंत ऋतु पर निबंध / Essay on Spring Season in Hindi!
वसंत शीत के बाद आती है । भारत मे फरवरी और मार्च मे इस ऋतु का आगमन होता है । बहुत सुहावनी ऋतु है यह । इस ऋतु में सम जलवायु रहती है अर्थात् सर्दी और गर्मी की अधिकता नहीं होती है । इस ऋतु में प्रकृति में कई प्रकार से सुखद बदलाव दृष्टिगोचर होते हैं । इसलिए इसे ऋतुओं का राजा या ऋतुराज कहा जाता है ।
वसंत ऋतु मनमोहक ऋतु होती है । इस ऋतु में गुलाब, गेंदा, सूरजमुखी, सरसों आदि के फूल बहुतायत में फूलते हैं । हवा में इन फूलों की सुगंध और मादकता का
प्रवेश होने लगता है । रंग-बिरंगे फूलों को देखकर आँखें तृप्त हो जाती हैं । पेडों की पुरानी पत्तियाँ झड़ती हैं और उनमें नई कोमल पत्तियों उग आती हैं । उधर टेसू के फूल और इधर आम की मंजरियाँ । नवकिसलयदल पेड़ों की शोभा में चार चाँद लगा देते हैं । खेतों में सरसों के पीले फूलों से तो समूचा परिदृश्य बदल जाता है ।
वसंत वनस्पति जगत ही नहीं, प्राणी जगत को भी प्रभावित करता है । समस्त जीवजगत एक नई स्कूर्ति से युक्त दिखाई देता है । मानव समुदाय रजाई-चादर और ऊनी वस्त्रों के आवरण से निकल कर स्वस्थ अंगड़ाई लेने लगता है । वसंत में वृद्धों और बीमारों में भी नवजीवन के संकेत दिखाई देने लगते हैं । जनसमूह नए उल्लास से भर जाता है । इसी उल्लास का प्रतीक है-वसंत पंचमी और होली का त्योहार । ललनाएँ वसंत पंचमी में प्रकृति से सामंजस्य बिठाते हुए पीली साड़ी पहनती हैं । किसान होली के गीत गाते हैं । लोकगीतों की धुन पर सब नाच उठते हैं ।
मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी भी बहुत खुश हैं । तितलियाँ फूलों पर मँडरा रही हैं, आम की मंजरियों से मुग्ध होकर कोयल ‘ कुहू-कुहू ‘ का रट लगा रही है । भौंरे क्यों चुप रहें, वे गुन-गुन करते हुए बागों में डोल रहे हैं । पिंजड़ा से ही सही तोतों का स्वर सुनाई पड़ ही जाता है । समशीतोष्ण ऋतु का सब आनंद उठा रहे हैं ।
कामदेव को वसंत का दूत माना जाता है । कामदैव उल्लास और उमंग के प्रतीक हैं । वे जीवन में उत्साह भरते हैं । इसी उत्साह से जीवन के सभी क्रियाकलाप संचालित होते हैं । इसी से श्रम करके जीने की चाह उत्पन्न होती है । वसंत ऋतु की इन्हीं खूबियों के कारण गीता में भगवान कृष्ण ने कहा था-ऋतुओं में मैं बसंत हूँ । इस ऋतु में वे ब्रजधाम में गोपियों के साथ नाचते रहे होंगे । इस ऋतु में राधा शृंगार करते हुए कृष्ण के साथ रास करती होंगी ।
आज की शहरी संस्कृति में वसंत पुराने समय जैसा उत्साह लेकर नहीं आता । एक तो प्राकृतिक वनस्पति का अभाव तो दूसरी तरफ यहाँ का प्रदूषित वातावरण । ऊपर से काम की आपाधापी, लोग वसंत की शोभा देखने की फुर्सत कम ही निकाल पाते हैं । वसंत कब आता है, कब चला जाता है, कुछ पता ही नहीं चलता । पेड़ों के पत्ते कब झड़े, कब नए पत्ते उगे, कब कलियों ने अपना जादू चलाया, कब तितलियों और भौंरों ने इनका रसास्वादन किया, कुछ ज्ञात नहीं । प्रकृति से दूर होता जा रहा मनुष्य अपनी मिट्टी की खुशबू नहीं पहचान पाता है । फिर भी वसंत अपनी छटा तो बिखेरता ही है । भले उसकी कोई कद्र करे या न करे ।
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