Essay on Basanti hawa
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बसंती हवा का कोई घर नही, प्रेमी नहीं और न कोई दुश्मन है। वह घूमते घूमते शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर में चली जाती है। वह महुआ के पेड़ पर चढ़ती है, उस पर से नीचे गिरती है और फिर आम के पेड़ पर चढ़कर बच्चों की तरह उसके कानों में 'कू' आवाज़ करके भाग जाती है।
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बसंत रितु गर्मियों के बाद ओर सर्दियों के पहले आती है। इस रितु में फुल खिलते हैं।इस रितु में मकर सक्रांति मनै जती है कयी क्षेत्रों में बानत रितु में लड़कियां पेड़ों पर झुल्ला तंग्ते हैं और बसंत रितु के गीत गाते हैं।बसंत रितु की हवाएं न ही ज़्यादा गरम होती हैं और न ही ज़्यदा ठंडी।बसंत रितु की हवाएं जब मुंह को शती हैं तो बहुत अच्छा मह्सूस होता है।मुझे सबसे अच्छी बसंत रितु की हवाएं लगती हैं।