essay on bharat ke krushi and udyog mein pragati
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वास्तव में उद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें महत्त्वपूर्ण उत्पादन व्यवस्था में क्रमिक परिवर्तन होते रहते हैं। यह उन आधारभूत परिवर्तनों को शामिल करता है जिनसे कृषि संगठन के यंत्रीकरण, नए उद्योग के निर्माण, नए बाजार के उत्पन्न होने और नए क्षेत्र के उद्योगीकरण ने उच्च उत्पादन क्षमता उत्पन्न की है।
उद्योगीकरण कृषि परिवहन और संचार के विकास में भी सहायक हो रहा है। देशी-विदेशी व्यापार का विकास बहुत हद तक उद्योगीकरण पर निर्भर है।
जब तक हमारे वैज्ञानिक कृषि को औद्योगिक स्वरूप नहीं दे पाए थे देश में प्रतिवर्ष औसतन 60 लाख टन खाद्यान्नों का आयात होता था। परन्तु आज भारत न केवल 88 करोड़ जनसंख्या के लिये खाद्यान्न आपूर्ति में आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है बल्कि खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य कृषिगत उत्पादों का निर्यात करके बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर रहा है।
विज्ञान की जैव प्रौद्योगिकी शाखा से फसलों की किस्मों व उनकी उत्पादन क्षमता में उत्साहवर्धक सुधार हुए हैं। फसलों को रोगरोधी और कीटरोधी बनाने तथा अनुवांशिक रोगों से छुटकारा दिलाने में नित नूतन सफलताएँ हासिल की गयी हैं।
ज्यों-ज्यों विज्ञान पर आधारित कृषि औद्योगिक स्वरूप ग्रहण कर रही है त्यों-त्यों कृषि उत्पादन में वृद्धि का दौर चल रहा है। खाद्यान्नों व कपास की पैदावार 1950-51 की तुलना में 1992-93 में 2.5 से 3 गुनी तक बढ़ चुकी है। सकल सिंचित क्षेत्रफल जो 1950-51 में 2.26 करोड़ हेक्टेयर था, 1993-94 में 7.95 करोड़ हेक्टेयर हो गया। इसी आधार पर रासायनिक उर्वरकों का उपयोग जो 1950-51 में 66 हजार टन था वह 1993-94 में 147 लाख टन तक पहुँच गया।
कृषि यंत्र उद्योग:
कृषि के उद्योगीकरण की ही देनदारी है कि कृषि यंत्रीकरण की गहनता निरन्तर बढ़ रही है। जहाँ 1950 में विद्युत संचालित पम्प सेटों की संख्या 4700 थी वहाँ 1993-94 में वह बढ़कर 1 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। देश में 1960-61 में ट्रैक्टरों की संख्या 25,000 थी। वह फिलहाल लगभग 6 लाख होने का अनुमान है। यंत्रों द्वारा बड़े-बड़े फार्मों को जोतना-बोना, निकाई-गुड़ाई करना, समय पर खाद देना, सिंचाई करना, कीटनाशी दवायें छिड़कने का काम हो रहा है। अब एक उपकरण जो इस काम में शामिल हुआ है वह है- कम्प्यूटर। कम्प्यूटर न केवल इन बताए गए कार्यों में सहायता करता है बल्कि वह कृषि उत्पादों को डिब्बाबंद करने, मंडियों का चयन करने, मूल्य निर्धारण और यहाँ तक कि माल को ढोने के लिये मार्ग तय करने का कार्य भी करने लगा है। विज्ञान ने कृषि कार्यों में कम्प्यूटर का उपयोग करके उद्योगीकरण का नया आयाम जोड़ दिया है। कृषि यंत्रीकरण की बदौलत ही आज लगभग 400 हेक्टेयर भू-भाग में बहुफसलीकरण कार्यक्रम सफलता-पूर्वक संचालित किए जा रहे हैं जबकि 1965-66 के पूर्व इन कार्यक्रमों की प्रगति नगण्य थी।
हरित क्रांति के सफल प्रयासों से जहाँ एक दौर भारतीय कृषकों द्वारा अधिक उपज देने वाली फसलों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशी दवाइयों, आधुनिक उपकरणों एवं सिंचाई के नवीनतम साधनों को उपलब्ध कराया गया वहीं दूसरी ओर कृषिगत माल के भण्डारण, प्रसंस्करण एवं नियमन कार्यक्रमों का विस्तार करने के कार्यक्रम चल रहे हैं। इसके लिये वित्तीय संस्थानों की स्थापना औद्योगिक क्षेत्र की ही तरह जोड़ पकड़ने लगी है। एक ओर तो कृषि क्षेत्र उद्योगों के लिये कच्चा माल उपलब्ध कर रहा है तो दूसरी ओर उद्योग में से आगम प्राप्त कर रहा है।
उद्योगीकरण कृषि परिवहन और संचार के विकास में भी सहायक हो रहा है। देशी-विदेशी व्यापार का विकास बहुत हद तक उद्योगीकरण पर निर्भर है।
जब तक हमारे वैज्ञानिक कृषि को औद्योगिक स्वरूप नहीं दे पाए थे देश में प्रतिवर्ष औसतन 60 लाख टन खाद्यान्नों का आयात होता था। परन्तु आज भारत न केवल 88 करोड़ जनसंख्या के लिये खाद्यान्न आपूर्ति में आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रहा है बल्कि खाद्यान्न के अतिरिक्त अन्य कृषिगत उत्पादों का निर्यात करके बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर रहा है।
विज्ञान की जैव प्रौद्योगिकी शाखा से फसलों की किस्मों व उनकी उत्पादन क्षमता में उत्साहवर्धक सुधार हुए हैं। फसलों को रोगरोधी और कीटरोधी बनाने तथा अनुवांशिक रोगों से छुटकारा दिलाने में नित नूतन सफलताएँ हासिल की गयी हैं।
ज्यों-ज्यों विज्ञान पर आधारित कृषि औद्योगिक स्वरूप ग्रहण कर रही है त्यों-त्यों कृषि उत्पादन में वृद्धि का दौर चल रहा है। खाद्यान्नों व कपास की पैदावार 1950-51 की तुलना में 1992-93 में 2.5 से 3 गुनी तक बढ़ चुकी है। सकल सिंचित क्षेत्रफल जो 1950-51 में 2.26 करोड़ हेक्टेयर था, 1993-94 में 7.95 करोड़ हेक्टेयर हो गया। इसी आधार पर रासायनिक उर्वरकों का उपयोग जो 1950-51 में 66 हजार टन था वह 1993-94 में 147 लाख टन तक पहुँच गया।
कृषि यंत्र उद्योग:
कृषि के उद्योगीकरण की ही देनदारी है कि कृषि यंत्रीकरण की गहनता निरन्तर बढ़ रही है। जहाँ 1950 में विद्युत संचालित पम्प सेटों की संख्या 4700 थी वहाँ 1993-94 में वह बढ़कर 1 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। देश में 1960-61 में ट्रैक्टरों की संख्या 25,000 थी। वह फिलहाल लगभग 6 लाख होने का अनुमान है। यंत्रों द्वारा बड़े-बड़े फार्मों को जोतना-बोना, निकाई-गुड़ाई करना, समय पर खाद देना, सिंचाई करना, कीटनाशी दवायें छिड़कने का काम हो रहा है। अब एक उपकरण जो इस काम में शामिल हुआ है वह है- कम्प्यूटर। कम्प्यूटर न केवल इन बताए गए कार्यों में सहायता करता है बल्कि वह कृषि उत्पादों को डिब्बाबंद करने, मंडियों का चयन करने, मूल्य निर्धारण और यहाँ तक कि माल को ढोने के लिये मार्ग तय करने का कार्य भी करने लगा है। विज्ञान ने कृषि कार्यों में कम्प्यूटर का उपयोग करके उद्योगीकरण का नया आयाम जोड़ दिया है। कृषि यंत्रीकरण की बदौलत ही आज लगभग 400 हेक्टेयर भू-भाग में बहुफसलीकरण कार्यक्रम सफलता-पूर्वक संचालित किए जा रहे हैं जबकि 1965-66 के पूर्व इन कार्यक्रमों की प्रगति नगण्य थी।
हरित क्रांति के सफल प्रयासों से जहाँ एक दौर भारतीय कृषकों द्वारा अधिक उपज देने वाली फसलों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशी दवाइयों, आधुनिक उपकरणों एवं सिंचाई के नवीनतम साधनों को उपलब्ध कराया गया वहीं दूसरी ओर कृषिगत माल के भण्डारण, प्रसंस्करण एवं नियमन कार्यक्रमों का विस्तार करने के कार्यक्रम चल रहे हैं। इसके लिये वित्तीय संस्थानों की स्थापना औद्योगिक क्षेत्र की ही तरह जोड़ पकड़ने लगी है। एक ओर तो कृषि क्षेत्र उद्योगों के लिये कच्चा माल उपलब्ध कर रहा है तो दूसरी ओर उद्योग में से आगम प्राप्त कर रहा है।
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