Hindi, asked by greeshmakonatham2010, 1 month ago

essay on bharat ki vegyanic pragati

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Answered by singh639
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Answer:

भारत की वैज्ञानिक प्रगति पर निबंध हमारा भारत देश तेजी से विकास करने वाला देश है हमारे भारत देश में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। देश तेजी से बदलावों के साथ नई उपलब्धियों को हासिल कर रहा है। ... कृषि के क्षेत्र में नई नई वैज्ञानिक प्रगति की वजह से किसानों की उपज अच्छी दिख जा सकती है यह सब वैज्ञानिक प्रगति की वजह से ही है।

Explanation:

ज्ञान-विज्ञान की अनवरत प्रगतियों वाले आज के विश्व में किसी भी देश की प्रगति का मानदंड उन्नत वैज्ञानिक संसाधन ही माने जाते हैं। 15 अगस्त 1947 में जब भारत विभाजन होकर स्वतंत्र हुआ था, तब देश की आवश्यकतांए पूर्ण करने के लिए सामान्य सुई औश्र ऑलपिन तक का आयोजन किया जाता था। इसके विपरीत आज भारत प्राय: उस सब-कुछ का निर्यात करने लगा या कर पाने में सक्षम होता रहा है कि जो आधुनिक जीवन में व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक के लिए आवश्यक है। परिणामस्वरूप एशिया और यूरोप के भी अनेक देश आज अनेक प्रकार के आधुनिक उपकरणों के लिए भारत के मुखापेक्षी बन चुके हैं। भारत में विनिर्मित घड़ी आज घडिय़ों के घर और जन्मस्थान स्वीट्जरलैंड में अन्य देशों को निर्यात करने के लिए आयात की जाती है। छोटी-बड़ी मशीनें, कल, पुर्ज आदि तो भारत निर्यात करता ही है, अपना तकनीकी ज्ञान भी निर्यात करता है, ताकि अन्य विकासशील देश उसका सस्ते में लाभ उठा सकें। आज भारत जल-थल और आकाश में युद्ध अथवा शांति के समय में काम आने वाला सभी कुछ अपने यहां उच्च मानक का बना रहा है। इससे सहज ही अनुमान हो जाना चाहिए कि भारत ने कितनी और कहां तक वैज्ञानिक प्रगति कर ली है।

पर आज जिसे वास्तविक वैज्ञानिक प्रगति कहा जाता है, उसके लिए इतना सब बना लेना और बता देना ही काफी नहीं है। कुछ और अधिक करने तथा बताने की आवश्यकता हुआ करती है। उस दृष्टि से भी ीाारत ने कम महत्वपूर्ण काम नहीं किया है, सन-1965 और 1972 के युद्धों में भारत ने अमेरिका के पैटन टैंकों की स्वनिर्मित टैंक-भेदी अस्त्रों से जो दुर्गति की थी , वह किसी से छिपी नहीं है। अन्य अनेक युद्धक सामग्रियों के क्षेत्र में भी भारत आज अपने पांवों पर खड़ा हो चुका है। परमाणु रिएक्टरों और धमन भट्टियों से आवश्यक ऊर्जा का भी अब यहां उत्पादन होने लगा है। यहां तक कि सन 1974 में भारत ने अपना पहला ही भूमिगत परमाणु-परिक्षण सफलता के साथ करके परमाणु-शक्ति-प्राप्त राष्ट्रों को चौंका दिया था वह भी इस दिशा में पीछे नहीं बल्कि आगे ही हैं। टैंक, युद्धक यान-वायुयान, प्रक्षेपास्त्र, पनडुब्बियां आदि भी आज भारत में बनने लगी हैं। सैंकड़ों-हजारों मीलों दूर तक मार करने में समर्थ मिसाइलों की परीक्षण-उत्पादन कर भारत ने अमेरिका तक को दहशतजदा कर दिया है। आज भारत ने इलेक्ट्रिॉनिक क्षेत्र में अदभुत क्षमता एंव प्रगति प्राप्त कर ली है कि वह अन्य कई देशों की आवश्यकता-पूर्ति भी कर सकता एंव करने लगा है।

वैज्ञानिक प्रगतियों के इतिहास की दृष्टि से अब धरती का नहीं अंतरिक्ष का युग आरंभ हो चुका है। यह ठीक है कि बहुत से समृद्ध यूरापीय देश भी अभी तक इस दिशा में कुछ विशेष नहीं कर पाए पर भारत? उसने तो इस क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा और गतिशीलता की धाक सारे विश्व  के मन पर बैठा दी है। अंतरिक्ष में भारत का प्रवेश सन 1975 में प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट के सफल प्रक्षेपण से ही हो गया था। उसके बाद ‘भास्कर’ नाम उपग्रह छोड़ा गया और तब से यह क्रम और कदम निरंतर आगे-ही-आगे बढ़ता जा रहा है। एप्पल, इंसेट-1 ए., भास्कर द्वितीय, रोहिणी और उस श्रंखला के कई और उपग्रह अभी तक छोडक़र भारत अंतरिक्ष के हृदय में अपनी सफलता के झंडे गाड़ चुका है। हर बार यद्यपि इच्छित सफलता तो हाथ नहीं लगी, पर कदम पीछे भी निश्चय ही नहीं हटे हैं। फिर अब तो भारत का एक सपूत स्क्वॉर्डन लीडर राकेश शर्मा सोबियत-सहयोग से अंतरिक्ष की सफल एंव लाभदायक यात्रा भी कर आया है। भविष्य में भारत पूर्णतया स्वदेशी तकनीक से विनिर्मित समानव उपग्रह अपनी ही भूमि से छोडऩे की तेयारियां कर रहा है। इस प्रकार वह दिन दूर नहीं, जब भारत की गणना वैज्ञानिक प्रगति के चरम शिखरों पर खड़े चंद प्रमुख देशों में होने लगेगी। अब भी वह गिने-चुने वैज्ञानिक प्रगति वाले राष्ट्रों में एक प्रमुख राष्ट्र माना जाने लगा है।

आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के और भी जितने क्षेत्र हैं, भारत के कदम उन सब में भी निरंतर बढ़ रहे हैं। दो-तीन बार इस देश के वैज्ञानिक दल बर्फ से जमे धु्रव प्रदेश की याद्धा कर आए हैं। वहा की जमा देने वाली विषम परिस्थितियों और वातावरण में अपनी वैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित करने में सफल हो चुके हैं। अभी कुछ लोग वहां कार्य कर रहे हैं और कुछ साहसी वैज्ञानिक अगली यात्रा की तैयारी में जुटे हैं। इस प्रकार हम पूर्ण गर्व के साथ कह सकते हैं कि अपने सीमित साधनों और क्षमताओं के रहते हुए भी भारत वैज्ञानिनक क्षेत्र में किसी देश से कम और पीछे नहीं है। हां, धन एंव साधनों का अभाव यहां कई बार अवश्य आड़े आ जाया करता है। पर इरादा पक्का और नेक हो, तो इस प्रकार के अभाव भारत के बढ़ते हुए कदमों को रोक नहीं सकते, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है। हर वर्ष भारत कोई नया कदम उठाकर हमारे इस विश्वास को स्वरूपाकार देता रहता है। अत: वैज्ञानिक प्रणालियों के क्षेत्र में एक ओर उज्वल भविष्य की कामना की जा सकती है।

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