Hindi, asked by rakshaop, 1 year ago

Essay on budhi hi bal hai

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Answered by anukarsh91
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बुद्धि के बल को ही सबसे श्रेष्ठ क्यों माना गया है? इस सवाल के जवाब में पहले हमें उन बातों पर विचार करना होगा, जिनके मुताबिक अगर किसी कारणवश बुद्धि भ्रष्ट हो जाए, तो इंसान अपना भला- बुरा नहीं सोच पाता है और इस वजह से उसका पतन हो जाता है। गीता में कहा गया है, 'विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्यों की उन्हीं विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघन् पड़ने पर क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, यानी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। बुद्धि भ्रष्ट होने से स्मरण-विलुप्त हो जाता है, अर्थात् ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि अथवा स्मृति के विनाश होने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है।' महाभारत के उद्योग पर्व में यह सवाल उठाया गया है कि जब सर्वशक्तिमान ईश्वर किसी की रक्षा करना चाहता है या उसे नष्ट करना चाहता है, तो वह क्या करता है? इसके प्रत्युत्तर में कहा गया है कि इसके लिए ईश्वर किसी को विष नहीं देता या कोई तेज धार वाले शस्त्र का प्रयोग नहीं करता। न ही ईश्वर अपने किसी प्रतिनिधि को ऐसा करने के लिए भेजता है। ईश्वर जिसकी रक्षा करना चाहता है, उसे संकट के समय उत्तम बुद्धि देता है। जिसे नष्ट करना होता है, उस मनुष्य की बुद्धि का हरण कर लेता है, यानी बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, ताकि वह व्यक्ति स्वयं ही कुमार्ग पर अग्रसर होकर अपना सर्वस्व नष्ट कर ले। भ्रष्ट बुद्धि वाला व्यक्ति अपना सर्वनाश स्वयं कर लेता है। जब बुद्धि का हरण हो जाता है, तो परिणामस्वरूप उसकी दृष्टि कुकर्मों की ओर झुक जाती है। बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण ही कौरवों का विनाश हुआ था। बुद्धि किस तरह ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ वरदान है? वैदिक विचारधारा कहती है कि बुद्धि ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ वरदान है। बुद्धि के द्वारा व्यक्ति अपना, समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकता है। कल्याणकारी कर्मों से व्यक्ति लौकिक संपदा का स्वामी तो बनता ही है, साथ ही, वह ईश्वर के अपार आनन्द का उत्तराधिकारी भी बन जाता है। मेधा प्राप्त व्यक्ति कठिन और सूक्ष्म विषयों को सरलता से समझ पाता है। ऐसे व्यक्ति का ज्ञान निश्चयात्मक होता है। उसके मन में किसी प्रकार का संदेह या दुविधा नहीं रहती। विद्या-अविद्या, धर्म- अधर्म, सत्य-असत्य के मर्म को जानने की क्षमता उसमें रहती है। इसी कारण सभी समझदार व्यक्ति बुद्धि की याचना करते हैं। बुद्धि की तीव्रता व सूक्ष्मता को पुरुषार्थ से बढ़ाया जा सकता है। आखिर सद्बुद्धि किस प्रकार हासिल हो सकती है? ईश्वर उपासना सद्बुद्धि की प्राप्ति का सवोर्त्तम साधन है। ईश्वर ज्ञान स्वरूप है, उसके ज्ञान की कोई सीमा नहीं। हमारे पास जो ज्ञान है, उसका मूल स्त्रोत वह सर्वव्यापक ईश्वर ही है। जब हम श्रद्धा से मन को एकाग्र कर प्रतिदिन ईश्वर की सात्विक भाव से उपासना करेंगे, तो हमारे भीतर ज्ञान का प्रकाश बढ़ेगा। ईश्वर के ध्यान से हमारी बुद्धि पवित्र बनेगी और उससे विवेक जागृत होगा। विवेकवान होने पर हम कभी कोई गलत काम नहीं कर सकते। विवेक ही हमें सच और झूठ का अंतर बताता है? उससे यह भी पता चलता है कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है? इस बारे में चाणक्य का कहना है कि जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहां? क्या मंत्रों के उच्चारण भी बुद्धि बढ़ती है? सभी महान संतों व महात्माओं ने गायत्री मंत्र को पवित्र मेधा (बुद्धि) प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन बताया है। गायत्री मंत्र एक वैदिक छंद है, जिसमें ईश्वर-आराधना की तीनों अवस्थाएं अर्थात् स्तुति, प्रार्थना और उपासना सम्मिलित हैं। गायत्री मंत्र का नियमित जप, ध्यान और मनन करने से संकट के समय में धैर्य और विवेक के साथ आत्मबल का भी संचार होता है। इसके साथ ही, आधुनिक जीवन की चुनौतियों पर जीत हासिल करने के लिए मेधा-शक्ति को जागृत करता है। गायत्री मंत्र में सुखस्वरूप ईश्वर से हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना की गई है। इस मंत्र के द्वारा हम सृष्टिपालक परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हमारी बुद्धि और मन को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाए और उत्तम कार्यों में लगाए। नियमित रूप से गायत्री मंत्र के जप से आक्रोश, आत्मग्लानि पर विजय प्राप्त की जा सकती है और बुद्धि को स्थिर रखा जा सकता है। यह सच है कि मानव की विशेषता उसकी बुद्धि से है। आज जिस स्तर पर भी हम जीवन जी रहे हैं, उसका मुख्य कारण हमारी बुद्धि है। यह जितनी सात्विक होगी, व्यक्ति का जीवन उतना ही पवित्र होगा।

Answered by tushargupta0691
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Answer:

बुद्धि का अर्थ है किसी चीज की समझ जैसे तथ्य, सूचना, विवरण और कौशल। यह मनुष्य के लिए शक्ति का स्रोत है और यह उसे ब्रह्मांड के अन्य प्राणियों से अलग करता है। यद्यपि मनुष्य शारीरिक रूप से बहुत से जानवरों से कमजोर है, क्योंकि वह एक उकाब के समान दूर तक नहीं देख सकता, और न ही कुछ जानवरों की तरह भारी भार उठा सकता है। फिर भी वह पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली प्राणी है। यह शक्ति उसे मूल रूप से ज्ञान से आती है न कि शारीरिक शक्ति से। 'बुद्धि ही शक्ति है' का अर्थ है कि बुद्धि की शक्ति का उपयोग करके मनुष्य के पास शिक्षा और अपने जीवन पर पूर्ण नियंत्रण है।

बुद्धि प्राप्त करने, संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ी को देने की क्षमता मनुष्य को शक्तिशाली बनाती है। यह उसे प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करने और अपने लाभ के लिए उनका उपयोग करने में सक्षम बनाता है।बुद्धि की यह शक्ति, यदि बुद्धिमानी से उपयोग की जाए तो मानव जाति के लिए खुशी ला सकती है। ज्ञान से ज्ञान, सम्मान और फलस्वरूप शक्ति प्राप्त होती है।

बुद्धि हमेशा शक्ति के साथ नहीं आता है।बुद्धि किसी चीज के बारे में विशिष्ट जानकारी के बारे में जागरूकता या समझ और सीखने की स्थिति है और इसे अनुभव या अध्ययन से प्राप्त किया जाता है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति के पास अपने विचारों को गतिशील रूप से व्यक्त करने और अपनी रोजमर्रा की स्थितियों, जागरूकता और समझ के आधार पर बुद्धिमान निर्णय लेने के लिए संसाधन हैं।

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