Hindi, asked by reymenmansieuanshy, 1 year ago

essay on dahej pratha




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Answered by JOGENDRA2712004
6
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दहेज प्रथा पर निबंध व भाषण Hindi में (Essay On Dowry System In Hindi)

APRIL 15, 2018 BY ADMIN 58 COMMENTS

क्या आप दहेज प्रथा के बारे में जानते हें? क्या आप दहेज प्रथा के दुष्परिणाम से मुक्ति पाना चाहते हें? क्या आप दहेज प्रथा पर निबंध लिखना चाहते हें ? 

अगर हाँ, तो आइए जानते हें  दहेज प्रथा क्या है ?

जानिए इस आर्टिकल से दहेज प्रथा के कारण, और दहेज प्रथा को रोकने के उपाय|

इस आर्टिकल से आप बच्चों के स्कूल में दिए जाते दहेज प्रथा पर निबंध भी लिख सकते हें|

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दहेज प्रथा पर निबंध in Hindi (Dahej Pratha Ek Kalank Essay in Hindi PDF)जानिए दहेज प्रथा क्या है : What is dowry system in Hindi?

दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप है जो की समाज के आदर्शवादी होने पर सवाल्या निशाँ लगा देता है| दहेज लेने या देने को दहेज प्रथा कहा जाता है|

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लड़की की शादी के समय लड़की के परिवार वालों के द्वारा लड़के या उसके परिवार वालों को नगद या किसी भी प्रकार की किमती चीज़ बिना मूल्य में देने को दहेज़ कहा जाता है| जिसका अर्थ लड़के की परिवार वालों के द्वारा लड़के की मूल्य भी समझा जा सकता है| दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या है| दहेज प्रथा गैर कानूनी होने के बावजूद भी ये हमारे समाज में खुली तौर पर राज़ करती है|

जानिए दहेज प्रथा को विस्तार से: Detailed Introduction to Dowry System:

दहेज प्रथा एक सामाजिक बीमारी है जो की आज कल समाज में काफी रफ़्तार पकडे गति कर रहा है| ये हमारे जीवन के मकसद को छोटा कर देने वाला प्रथा है| ये प्रथा पूरी तरह इस सोच पर आधारित है, की समाज के सर्व श्रेष्ठ व्यक्ति पुरुष ही हें और नारी की हमारे समाज में कोई महत्व भी नहीं है|

इस तरह की नीच सोच और समझ ही हमारे देश की भविष्य पर बड़ी रुकावट साधे बैठे हें|

दहेज प्रथा को भी हमारे समाज में लगभग हर श्रेणी की स्वीकृति मिल गयी है जो की आगे चल के एक बड़ी समस्या का रूप भी ले सकती है |

महात्मा गाँधी ने दहेज प्रथा के बारे में कहा था की

जो भी व्यक्ति दहेज को शादी की जरुरी सर्त बना देता है , वह अपने शिक्षा और अपने देश की बदनाम करता है, और साथ ही पूरी महिला जात का भी अपमान करता है | 

ये बात महात्मा गाँधी ने देश की आजादी से पहले कही थी| लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी दहेज प्रथा को निभायी जाती है|

हम सभी ऊँचे विचारों और आदर्श समाज की बातें करते हें, रोज़ दहेज जैसी अपराध के खिलाफ चर्चे करते हें, लेकिन असल जिंदगी में दहेज प्रथा जैसी जघन्य अपराध को अपने आस पास देख के भी हम लोग अनदेखा कर देते हें| ये बड़ी ही शर्म की बात है|



दहेज प्रथा को निभाने वालों से ज्यादा दोषी इस प्रथा को आगे बढ़ते हुए देख समाज में कोई ठोस कदम नहीं उठाने वाले है|

 दहेज प्रथा एक गंभीर समस्या : Dowry System- A Serious Concern:

दहेज प्रथा सदियों से चलती आई एक विधि है जो की बदलते वक़्त के साथ और भी गहरा होने लगा है| ये प्रथा पहले के जमाने में केवल राजा महाराजाओं के वंशों तक ही सिमित था| लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुजरता गया, इसकी जड़ें धीरे धीरे समाज के हर वर्ग में फैलने लगा| आज के दिन हमारे देश के प्रयात: परिवार में दहेज प्रथा की विधि को निभाया जाता है|

दहेज प्रथा लालच का नया उग्र-रूप है जो की एक दुल्हन की जिंदगी की वैवाहिक, सामाजिक, निजी, शारीरिक, और मानसिक क्षेत्रों पर बुरा प्रभाव डालता है, जो की कभी कभी बड़े ही भयंकर परिणाम लाता है|

दहेज प्रथा का बुरा परिणाम के बारे में सोच कर हर किसी का रूह काँपने लगता है, क्यूंकि इतिहास ने दहेज प्रथा से तड़पती दुल्हनों की एक बड़ी लिस्ट बना रखी है| ये प्रथा एक लड़की की सारी सपनो और अरमानो को चूर चूर कर देता है जो की बड़ी ही दर्दनाक परिणाम लाता है |

लगभग देश की हर कोने में ये प्रथा को आज भी बड़े ही बेजिजक निभाया जाता है|

ये प्रथा केवल अमीरों तक ही सिमित नहीं है, बल्कि ये अब मध्य बर्गियों और गरीबों का भी सरदर्द बन बैठा है|

सोचने की बात है की देश में बढती तरक्की दहेज प्रथा को निगलने में कहाँ चूक जाती है? ऊँच शिक्षा और सामाजिक कार्यकर्मों के बावजूद दहेज प्रथा अपना नंगा नाच आज भी पूरी देश में कर रही है| ये प्रथा हर भारतीयों के लिए सच में एक गंभीर चर्चा बन गयी है जो की हमारे बहु बेटियों पर एक बड़ी ही मुसीबत बन गयी है|

Answered by dewangNASA
7
hi
भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के समय दाय भाग के रूप में धन-सम्पत्ति, गउवें आदि कन्या को देकर वर को समर्पित करे ।

यह भाग कितना होना चाहिए, इस बारे में मनु ने उल्लेख नहीं किया । समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं ।

अखबारों में अब विज्ञापन निकलते है कि लड़के या लडकी की योग्यता इस प्रकार हैं । उनकी मासिक आय इतनी है और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत सम्माननीय है । ये सब बातें पढ़कर कन्यापक्ष का कोई व्यक्ति यदि वरपक्ष के यहा जाता है तो असली चेहरा सामने आता है । वरपक्ष के लोग घुमा-फिराकर ऐसी कहानी शुरू करते हैं जिसका आशय निश्चित रूप से दहेज होता है ।

दहेज मांगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोजगार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्यापक्ष की मजबूरी का नाजायज फायदा क्यों उठाया जाता है?

शायद इसलिए कि समाज में अच्छे वरों की कमी है तथा योग्य लड़के बड़ी मुश्किल से तलाशने पर मिलते हैं । हिन्दुस्तान में ऐसी कुछ जातियां भी हैं जो वर को नहीं, अपितु कन्या को दहेज देकर ब्याह कर लेते हैं; लेकिन ऐसा कम ही होता है । अब तो ज्यादातर जाति वर के लिए ही दहेज लेती हैं ।

दहेज अब एक लिप्सा हो गई है, जो कभी शान्त नहीं होती । वर के लोभी माता-पिता यह चाह करते हैं कि लड़की अपने मायके वालों से सदा कुछ-न-कुछ लाती ही रहे और उनका घर भरती रहे । वे अपने लड़के को पैसा पैदा करने की मशीन समझते हैं और बेचारी बहू को मुरगी, जो रोज उन्हें सोने का अडा देती रहे । माता- पिता अपनी बेटी की मांग कब तक पूरी कर सकते हैं । फिर वे भी यह जानते हैं कि बेटी जो कुछ कर रही है, वह उनकी बेटी नहीं वरन् ससुराल वालों के दबाव के कारण कह रही है ।

यदि फरमाइश पूरी न की गई तो हो सकता है कि उनकी लाड़ली बिटिया प्रताड़ित की जाए, उसे यातनाएं दी जाएं और यह भी असंभव नहीं है कि उसे मार दिया जाए । ऐसी न जाने कितनी तरुणियों को जला देने, मार डालने की खबरें अखबारों में छपती रहती हैं ।

दहेज-दानव को रोकने के लिए सरकार द्वारा सख्त कानून बनाया गया है । इस कानून के अनुसार दहेज लेना और दहेज देना दोनों अपराध माने गए हैं । अपराध प्रमाणित होने पर सजा और जुर्माना दोनों भरना पड़ता है । यह कानून कालान्तर में संशोधित करके अधिक कठोर बना दिया गया है ।

किन्तु ऐसा लगता है कि कहीं-न-कहीं कोई कमी इसमें अवश्य रह गई है; क्योंकि न तो दहेज लेने में कोई अंतर आया है और न नवयुवतियों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं अथवा उनकी हत्याओं में ही कोई कमी आई है । दहेज संबंधी कानून से बचने के लिए दहेज लेने और दहेज देने के तरीके बदल गए हैं ।

वरपक्ष के लोग शादी से पहले ही एक मोटी रकम कन्यापक्ष वालों से ऐंठ लेते हैं । जहां तक सामान का सवाल है रंगीन टीवी, सोफा सेट, अलमारी, डायनिंग टेबल, घड़ी, अंगूठियां-ये सब चीजें पहले ही वर पक्ष की शोभा बढ़ाने के लिए भेज दी जाती हैं या शादी के समय दी जाती है । बाकी बचती हैं ज्योनार उसमें खा-पीकर लोग चले जाते हैं ।

शुरू-शुरू में वर एवं कन्यापक्ष दोनों में मेलभाव होता है, अतएव दोनों से पूरी सतर्कता बरती जाती है । यदि सब कुछ खुशी-खुशी चलता रहा, तब तो सब गुप्त रहता है अन्यथा कोई दुर्घटना हो जाने पर सब रहस्य खुल जाते हैं । कन्या अथवा कन्यापक्ष के लोगों में यह हिम्मत नहीं होती कि वे लोग ये सुनिश्चित कर लें कि शादी होगी तो बिना दहेज अन्यथा शादी ही नहीं होगी ।

दहेज के कलंक और दहेज रूपी सामाजिक बुराई को केवल कानून के भरोसे नहीं रोका जा सकता । इसके रोकने के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाना चाहिए । विवाह अपनी-अपनी जाति में करने की जो परम्परा है उसे तोड़ना होगा तथा अन्तर्राज्यीय विवाहों को प्रोत्साहन देना होगा; तभी दहेज लेने के मौके घटेंगे और विवाह का क्षेत्र व्यापक बनेगा ।

अन्तर्राज्यीय, अन्तर्प्रान्तीय और अन्तर्राष्ट्रीय विवाहों का प्रचलन शुरू हो गया है, यदि कभी इसमें और लोकप्रियता आई और सामाजिक प्रोत्साहन मिलता रहा, तो ऐसी आशा की जा सकती है कि दहेज लेने की प्रथा में कमी जरूर आएगी । सरकार चाहे तो इस प्रथा को समूल नहीं तो आंशिक रूप से जरूर खत्म किया जा सकता है । सरकार उन दम्पतियों को रोजगार देने अथवा धंधों में ऋण देने की व्यवस्था करे, जो अन्तर्राज्यीय अथवा बिना दहेज के विवाह करना चाहते हों या किया हो ।

पिछले दिनों बिहार के किसी सवर्ण युवक ने हरिजन कन्या से शादी की थी, तो उसे किस प्रकार सरकार तथा समाज का कोपभाजन बनना पड़ा था, इसे सभी जानते हैं, ज्यादा पुरानी घटना नहीं है । अत: आवश्यकता है कि सरकार अपने कर्तव्य का पालन करे और सामाजिक जागृति आए, तो दहेज का कलंक दूर हो सकता है ।

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है । आजकल यह प्रथा व्यवसाय का रूप लेने लगी है । मां-बाप चाहते हैं कि बच्चे को पढ़ाने-लिखाने और उसे लायक बनाने के लिए उन्होंने जो कुछ खर्च किया है, वह लड़के का विवाह करके वसूल कर लेना चाहिए । इंजीनियर, डॉक्टर अथवा आई.ए.एस. लड़कों का दहेज पचास लाख से एक करोड़ रुपये तक पहुंच गया है । बताइए एक सामान्य गृहस्थ इस प्रकार का खर्च कैसे उठा सकता है ।

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