essay on dharm eta a sadhan hai in vipaksh hgindi
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पूरी दुनिया में सभ्यता के विकास के साथ ही विभिन्न धर्मों की स्थापना हुई और हरेक धर्म मनुष्य जीवन को नैतिकता, इमानदारी एवं सच्चाई का साथ देते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। विश्व के लगभग सभी धर्म हमें दूसरों की भलाई करना एवं एक संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही, हर धर्म की पूजा पद्धति भी अलग-अलग होती है लेकिन वे सभी अलग-अलग तरीकों से लोगों को एक साथ जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। अर्थात् सभी धर्मों के मूल में कौमी एकता को प्रोत्साहित करने की भावना का समावेश होता है। दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो हर धर्म की स्थापना के पीछे एकमात्र उद्देश्य पारस्परिक एकता को बढ़ाना है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर धर्म लोगों को एक साथ मिलकर समाज को बेहतरी के रास्ते पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
मुख्यतः विश्व में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं पारसी आदि प्रमुख धर्म हैं और इन सभी धर्मों का विकास लोगों को एकजुट रखने के लिए ही हुआ है। यह भी सर्वविदित है कि एक धर्म के लोगों के वर्चस्व से जनमत भी तैयार होता है। यही कारण है कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों के धर्म प्रचारक भी हैं जो अपने धर्म के प्रचार में लगे रहते हैं। खुलकर तो लोग धर्म परिवर्तन आदि के मद्दों पर बात नहीं करते लेकिन कहीं न कहीं ज्यादा से ज्यादा लोगों का धर्मंतरण कराना और किसी एक धर्म के लोगों की संख्या बढ़ाना भी इन धर्म प्रचारकों का उद्देश्य होता है। ऐसा मानना है कि एक धर्म के लोगों के बीच एक समान विचारधारा पनपती है और फिर इस समान विचारधारा का प्रयोग राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए किया जाता है। इस एक समान विचारधारा के पीछे भी एकता की भावना ही है। जब एक धर्म विशेष के लोग एक जगह पर इकट्ठा होते हैं तो उनके बीच में वैचारिक एकता सीधे तौर पर परिलक्षित होती है।
मूलतः धर्मों का प्रादूर्भाव एकता की भावना को बढ़ाने के लिए ही हुआ है। लोगों के बीच अगर एकता एवं सामंजस्य न हो तो धर्म की परिकल्पना ही बेमानी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर हिंदू धर्म में समय-समय पर कई उपवर्गों का निर्माण होता रहा है। विश्व के चार प्रमुख धर्मों – हिंदू, बौद्ध, जैन तथा सिक्ख की जन्मस्थली के रूप में भारत को जाना जाता है। इन सभी धर्मों की स्थापना का एकमात्र उद्देश्य एक प्रकार की जीवनशैली, वैचारिक सामंजस्य, साझा जीवन पद्धति का विकास एवं सामूहिक एकता के बल पर विकासोन्मुख समाज की स्थापना करना था। उदाहरण के तौर पर जीव हत्या को पूरी तरह से खत्म करने के उद्देश्य से भगवान महावीर ने जैन धर्म की स्थापना की। जैन धर्म के सभी लोग इस विचारधारा से समरसता रखते हैं। इसी प्रकार अन्य धर्म जैसे बौद्ध एवं सिक्ख धर्मों का भी प्रादूर्भाव हुआ लेकिन इन सभी धर्मों के केंद्र में एकता की ही भावना समाहित है।
जहां हिंदू धर्म “सर्वधर्म समभाव” एवं “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना से प्रेरित है वहीं इस्लाम, “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” का संदेश देता है। भारत विश्व में धार्मिक विविधता के बावजूद कौमी एकता का अनूठा उदाहरण पेश करता है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और यहां कि कुल जनसंख्या विभिन्न धर्मों के लोगों से मिलकर बनी है। इसके बावजूद यहां राष्ट्रधर्म ही सर्वोपरि है और भारत के संविधान में सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्मों से संबंधित पद्धतियों के पालन की स्वतंत्रता है और संकट की स्थिति में राष्ट्रहित में सभी धर्मों के लोग यहां एकजुट हो जाते हैं। विश्व के धर्म प्रधान देशों, जिनमें से कुछ देशों में तो धार्मिक कट्टरवाद अपने चरम पर पहुंच चुका है, को भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उन्हें भारत से इस बात की प्रेरणा लेनी चाहिए की किस तरह यहां विभिन्न धर्मों के लोग राष्ट्रधर्म की भावना के साथ एकता के सूत्र में बंध कर एक साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं और पूरे विश्व को कौमी एकता का संदेश देते हैं।