Hindi, asked by sushilrawat6464, 8 months ago

Essay on doklam in Hindi

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Answered by udaygoyal125
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भूटान शायद दुनिया का इकलौता ऐसा मुल्क है जहां ट्रैफ़िक सिग्नल नहीं है.

हां, ट्रैफ़िक पुलिस के जवान हाथ के इशारे से सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही तों की फौजी गतिविधियां शुरू होती हैं, बेचैनी बढ़ जाती है.

भारत और चीन के बीच ये विवाद रणनीतिक रूप से उस पठारी इलाके को लेकर है जिसे दुनिया डोकलाम के नाम से जानती है.

भारत-चीनइमेज कॉपीरइटAFP

डोकलाम का मुद्दा

डोकलाम की स्थिति भारत, भूटान और चीन के ट्राई-ज़ंक्शन जैसी है. डोकलाम एक विवादित पहाड़ी इलाका है जिस पर चीन और भूटान दोनों ही अपना दावा जताते हैं.

डोकलाम पर भूटान के दावे का भारत समर्थन करता है. जून, 2017 में जब चीन ने यहां सड़क निर्माण का काम शुरू किया तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया था.

यहीं से दोनों पक्षों के बीच डोकलाम को लेकर विवाद शुरू हुआ. भारत की दलील है कि चीन जिस सड़का का निर्माण करना चाहता है, उससे सुरक्षा समीकरण बदल सकते हैं.

भारत को ये डर है कि अगर भविष्य में संघर्ष की कोई सूरत बनी तो चीनी सैनिक डोकलाम का इस्तेमाल भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर कब्ज़े के लिए कर सकते हैं.

सिलिगुड़ी कॉरिडोर भारत के नक़्शे में मुर्गी के गर्दन जैसा इलाका है और ये पूर्वोत्तर भारत को बाक़ी भारत से जोड़ता है. कुछ विशेषज्ञ ये कहते हैं कि ये डर काल्पनिक है.

नैमगे ज़ाम

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नैमगे ज़ाम कहती हैं कि ज़्यादातर लोगों को ये भी नहीं पता कि डोकलाम कहां पर है

भारत-चीन विवाद

ऐसा नहीं है कि भूटान के सभी लोगों को डोकलाम की अहमियत मालूम है. कई ऐसे भी हैं जिन्हें इसका अंदाजा नहीं है.

थिम्पू में पेशे से पत्रकार नैमगे ज़ाम कहती हैं, "कुछ महीने पहले इस मुद्दे के विवादास्पद बनने तक डोकलाम की कोई अहमियत नहीं थी."

"ज़्यादातर भूटानियों को तो ये तक नहीं मालूम नहीं है कि डोकलाम आख़िर है कहां. चीन और भारत के बीच इस मुद्दे पर विवाद छिड़ने के बाद ही लोगों के बीच चर्चा शुरू हुई."

चीन और भारत के बीच कुछ महीनों पहले डोकलाम को लेकर जैसे हालात बन गए थे, उससे कई भूटानियों को ये लगने लगा था कि दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ सकता है.

चीन ने नाराज़ होकर भारत को धमकाया और इसे 'डोकलाम में भारतीय सैनिकों की घुसपैठ करार' दिया.

हफ़्तों तक चली कूटनीतिक कसरतों के बाद 73 दिनों से चला आ रहा विवाद आखिरकार सुलझ गया. भारतीय सैनिक वापस बुला लिए गए.

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भूटान पर भारत का असर

हालांकि भूटान की सरकार ने डोकलाम पर किसी बहस में सार्वजनिक रूप से शामिल होने से इनकार कर दिया.

भूटान की तरफ़ जारी बयान में डोकलाम पर भारत और चीन के बीच सहमति का स्वागत करते हुए कहा गया कि दोनों ही पक्षों ने अपने सैनिक हटाने पर रजामंदी दी है.

भूटान में बहुत से ऐसे लोग मिल जाते हैं जो इस घटना को ख़तरे की घंटी के तौर पर देखते हैं.

भूटान के सोशल मीडिया पर भी इसकी धमक सुनाई देती है. भूटानी लोग ये पूछ रहे हैं कि चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए क्या ये सही समय है.

बात इस दिशा में भी हो रही है कि क्या भूटान को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपनानी चाहिए.

भूटान को भारत के असर से बाहर निकलना चाहिए, ऐसी दलील देने वाले लोग भी मिल जाते हैं.

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भारत से आर्थिक मदद

पचास के दशक में तिब्बत पर चीन के कब्ज़े के बाद भूटान का झुकाव तुरंत ही भारत की तरफ़ हो गया था. इसकी दो वजहें थीं, दोस्ती और सुरक्षा.

इसके बाद से ही भूटान भारत के प्रभाव में रहा है. भारत भूटान को आर्थिक, सैनिक और तकनीकी मदद मुहैया कराता है.

भारत की तरफ़ से दूसरे देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभ भूटान को ही मिलता है.

पिछली पंच वर्षीय योजना में भारत ने भूटान को 80 करोड़ डॉलर की मदद दी थी. भूटान में सैंकड़ों भारतीय सैनिक तैनात हैं.

अधिकारियों का कहना है कि ये भूटानी सैनिकों को ट्रेनिंग दे रहे हैं. भूटान का सैनिक हेडक्वॉर्टर 'हा' शहर में है जो डोकलाम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

एक तरफ, दशकों से भूटान को मिल रही भारतीय मदद के लिए लोग शुक्रिया अदा करने वाले लोग मिल जाते हैं तो दूसरी तरफ़ नई पीढ़ी ये चाहती है कि भूटान अपनी किस्मत खुद तय करे.

भूटान

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भूटान की आबादी तकरीबन आठ लाख के करीब है

राजनीतिक भविष्य

भूटान की विदेश नीति में भारत की सुरक्षा चिंताओं का ख्याल रखा गया है. और इसकी वजह है साल 1949 का भारत-भूटान समझौता.

इस समझौते को साल 2007 में संशोधित किया गया. इसके तहत भूटान को विदेश नीति और सैन्य खरीद में ज़्यादा आज़ादी मिली.

थिम्पू में कुछ लोग ये महसूस भी करते हैं कि उनके देश पर भारत अपने प्रभाव के कारण मनमानी करता है.

लेखक और राजनीतिक विश्लेषक गोपीलाल आचार्य कहते हैं, "एक लोकतंत्र के तौर पर हम जैसे-जैसे परिपक्व होंगे, हम भारत के साये से बाहर निकल पाएंगे."

"भारत को ये भी नहीं सोचना चाहिए कि भूटान उनके अधीन देश है. भूटान को अपना राजनीतिक भविष्य तय करने दिया जाए."

गोपीलाल

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