essay on dukh manane ke liye bhi sahuliyat chahiye
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सुख दुःख दो पहिए जीवन चक्र में ऊपर नीचे आते जाते रहते हैं। इस दुनिया में जन्में हैं तो सुख दुःख का अनुभव अनिवार्य बन जाता है। परन्तु क्या सुख दुःख के मनाने का अधिकार सबको एक समान मिलता है? समाज की विषमताओं ने इन निजी अनुभवों को भी छीन लिया है। अब सुख दुःख का अधिकार भी दूसरों पर निर्भर है। अमीर सुख से अधिक दुःख मनाने का हक रखता है। पर गरीब अपनी लाचारी व निर्धनता वश सख्त से सख्त श़ोक भी मनाने में असमर्थ हो जाता है। पैसा और सेवक हो तो छोटे से दुःख को भी पहाड़ बनाकर हाहाकार में बदल दिया जाता है। दुःख मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए वर्ना संपत्ति और संबंधों के अभाव में दुःख का आभास निरर्थक बन जाए। किसी गरीब की मृत्यु से उसके परिवार में क्या कम दुःख होगा? हाँ पर दुःख मनाने के लिए ना ही उसके पास समय है और ना ही सहूलियत। गरीबी की कठोर अवस्था में अपने परिवार के बाकी सदस्यों का पेट भरण करेगा या बिस्तर पर लेटे घंटों दुःख का प्रदर्शन करेगा? सुविधाएं केवल सुख शांति के लिए नहीं दुःख की अभिव्यक्ति के लिए भी सुविधाओं का होना आवश्यक है। तभी लोक अपनी सहानुभूति व्यक्त करेगा। सहूलियत हो तो वेदना और पीड़ा सार्थक लगतीं हैं। राई का पहाड़ बनाकर साधारण से साधारण दुःख को अन्याय व शोषण का नाम देते है। दुःख का एहसास दुःख की पहचान दुःख का अनुभव सहूलियतो पर निर्भर है इसमें कोई संदेह नही।