Hindi, asked by biswajit7964, 1 year ago

essay on ek deshpremi ki appbiti in hindi

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Answered by nitinahlawat135
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भूमिका-  प्रेम के अनेकानेक रूपों में श्रेष्ठतम और औलोकिक है देश-प्रेम। श्रीराम ने रामायण में कहा-'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।' जननी और जन्मभूमि की महिमा स्वर्ग से भी  महान है। जिस धराकी गोद में पलकर हम बड़े होतें है। जिसके हवा-पानी, अन्न-फल ग्रहण कर हम शक्तिशाली बनते है, जो धरती हमारी सारी आवश्यकताएं पूरी करती है ऐसे मृत्भूमि के ऋण से हम कैसे उऋण हो सकते है ? अपनी धरती से प्रेम होना ही स्वाभाविक और पावनहै जितना अपनी माँ से हमें होता है। 

विस्तार-  जन्मभूमि से प्रेम की महानता हम तब जान पातेन हैं जब या तो हम इससे बिछुड़ जाएँ या उसकी स्वतंत्रता पर कोई आँच आ जाए। विषुवत रेखा के निकट क्षेत्र में रहने वाला गर्मी का संताप सहता है, ध्रुव प्रदेश का निवासी तीखी ठंड में ठिठुरता है किन्तु अपनी मातृभूमि नहीं त्यागना चाहता। प्रेम यदि हमें अधिकार देता है तो उसके प्रति कर्तव्य पालन भी जुड़ा होता है। अमिरिक के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने प्रथम भाषण में जो शब्द कहे थे वे स्वर्णिम अक्षरों में लिखने योग्य हैं तथा देश-प्रेमियों के लिए प्रेरणा श्रोत है।  उन्होंने देशवासियो को संबोधित करते हुए कहा -"अपने देश से यह मत पूछो की उसने तुम्हारे लिए क्या किया है बल्कि अपने आप से पूछो की तुम अपने देश के लिए क्या करते हो। " 
देश प्रेम की सात्विक और उच्च भावना से प्रेरित होकर देशवासी अपना सर्वस्व समर्पित करने को तत्पर रहते हैं। हमारा इतिहास ऐसे देशभक्तों की वीर गाथायों से भरा है जिन्होंने अपनी सुख-सुविधाएँ त्याग कर देश की गौरव की रक्षा की। महाराणाप्रताब , शिवजी, गुरुगोबिंद सिंह, छत्रसाल, महाराजा रंजीत सिंह जैसे देश प्रेमियों पर  गर्व है। अंग्रेजी साम्राज्य की बेडियां तोरकर भारत-माता को मुक्त करने में राजाराम मोहन राय, लोकमान्य, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपतराय, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, भगत सिंह, राजगुरु, जवाहरलाल नेहरू जैसे अगणित वीर देशभक्तों ने हँसते-हँसते लाठियो के पहर सहे, जेलों में सड़े, हँसते-हँसते फँसी के फंदे पर झूल गए। ऐसे देशप्रेमियों के लिए हमारी भावनाओं को माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प के माध्यम से व्यक्त किया है--मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक,मातृभूमि पर शीश चढ़ने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक। \

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