essay on ekagrata in hindi in 200 word
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किसी भी कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है, कि वो कार्य कितनी कुशलता से किया गया है। कुशलता से हम कोई कार्य तभी कर सकते हैं, जब हमारी एकाग्रता हमारे साथ हो। बिना एकाग्रता की शक्ति के हमारा मन इधर-उधर भटकता रहता है। और हम किसी भी कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाते। इस बात को साबित किया महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकट रमन ( C. V. Raman ) ने। एक छोटी सी घटना ने उनको ऐसा बदला कि उन्होंने अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा दिया।
एकाग्रता की शक्ति
बचपन में चन्द्रशेखर वेंकटरमन ( C. V. Raman ) हर काम बड़े जोश और उत्साह से करते थे। वो काम शुरू तो कर लेते लेकिन बहुत जल्दी ही उनका मन भटकने लगता और उस काम में उनका मन न लगता। काम चाहे कोई भी हो। अगर किताब भी पढ़ते तो आधी-अधूरी पढ़ कर छोड़ देते। इसी कारण उन्हें कुछ याद भी न रहता। चाहे वो चीज उन्होंने कई बार पढ़ी हो। उनकी इस आदत से उनके पिताजी बहुत परेशान थे। वे किसी तरह चन्द्रशेखर वेंकटरमन ( C. V. Raman ) को सुधारना चाहते थे। अगर समय रहते ऐसा न किया जाता तो ना जाने वो किस रास्ते पर चल पड़ते और न जाने किस मंजील पर पहुँचते।
उनके पिता ने उन्हें सुधारने कि एक तरकीब सोची। एक बार जब वो अख़बार पढ़ रहे थे। तब उनके पिता जी ने उनको आवाज लगायी,
“रमन बेटा, यहाँ आओ मैं तुम्हें एक ऐसा जादू दिखता हूँ जो तुमने आज तक नहीं देखा होगा।”
रमन इतना सुनते ही दौड़े-दौड़े अपने पिता के पास गए। उन्होंने देखा की उनके पिता के हाथ में एक आतिशी शीशा ( Magnifier Glass ) है। उनके पिता ने अख़बार मेज पर रख कर उस आतिशी शीशे ( Magnifier Glass ) को उसके ऊपर घुमाया और रमन से बोले,
“ये देखो क्या हो रहा है?”
⇒यह भी पढ़े- अख़बार – खबर वही डेट नयी | अख़बार पर एक हिंदी कविता
रमन अपने पिता के पास खड़ा कुछ देर ये सब देखता रहा फिर बोला,
“पिता जी मुझे तो इसमें कुछ ख़ास दिख नहीं रहा। आप मेरा समय व्यर्थ कर रहे हैं।”
“अच्छा! अब देखना जादू। जो तुमने कभी नहीं देखा होगा।”
रमन उत्सुकतावश देखने लगा। रमन के पिता जी ने उस आतिशी शीशे ( Magnifier Glass ) को अख़बार पर एक जगह टिकाया और सूरज से आने वाली बिखरी हुयी किरणें इकट्ठी होकर एक बिंदु के रूप में दिखने लगी। धीरे-धीरे व जगह जहाँ वो बिंदु दिख रहा था, भूरी होने लग गयी। अचानक उसमे बदबू आने लगी और वो जगह जलने लगी। वहा से हल्का-हल्का धुआं भी निकलने लगा। अंततः अख़बार में एक छेद हो गया।
रमन ये सब बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसके पिताजी ने अख़बार से वो आतिशी शीशा ( Magnifier Glass ) हटाया और रमन से बोले,
“देखा तुमने कैसे इसने अपनी एकाग्रता की शक्ति से एक अख़बार को जला कर अपनी ताकत दिखा दी। लेकिन जब मैं तुम्हारे सामने इसे इधर-उधर घुमा रहा था। तब इसने कोई असर नहीं दिखाया या यूँ कहो कि ये अपनी ताकत दखाने में असमर्थ था। जैसे ही इसने एकाग्रता बनायीं और सूरज की किरणों को इकठ्ठा कर उसकी शक्ति को बढाया, और एक जगह पर पहुंचाया। इसके कारण इस अख़बार में छेद हो पाया।
इसी तरह हम भी अपने जीवन में सफलता तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब हम अपनी एकग्रता को बढ़ा पाएँगे। जब हम अपना ध्यान अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित करेंगे। तभी हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। यदि हमारा मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। “
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एकाग्रता की शक्ति
बचपन में चन्द्रशेखर वेंकटरमन ( C. V. Raman ) हर काम बड़े जोश और उत्साह से करते थे। वो काम शुरू तो कर लेते लेकिन बहुत जल्दी ही उनका मन भटकने लगता और उस काम में उनका मन न लगता। काम चाहे कोई भी हो। अगर किताब भी पढ़ते तो आधी-अधूरी पढ़ कर छोड़ देते। इसी कारण उन्हें कुछ याद भी न रहता। चाहे वो चीज उन्होंने कई बार पढ़ी हो। उनकी इस आदत से उनके पिताजी बहुत परेशान थे। वे किसी तरह चन्द्रशेखर वेंकटरमन ( C. V. Raman ) को सुधारना चाहते थे। अगर समय रहते ऐसा न किया जाता तो ना जाने वो किस रास्ते पर चल पड़ते और न जाने किस मंजील पर पहुँचते।
उनके पिता ने उन्हें सुधारने कि एक तरकीब सोची। एक बार जब वो अख़बार पढ़ रहे थे। तब उनके पिता जी ने उनको आवाज लगायी,
“रमन बेटा, यहाँ आओ मैं तुम्हें एक ऐसा जादू दिखता हूँ जो तुमने आज तक नहीं देखा होगा।”
रमन इतना सुनते ही दौड़े-दौड़े अपने पिता के पास गए। उन्होंने देखा की उनके पिता के हाथ में एक आतिशी शीशा ( Magnifier Glass ) है। उनके पिता ने अख़बार मेज पर रख कर उस आतिशी शीशे ( Magnifier Glass ) को उसके ऊपर घुमाया और रमन से बोले,
“ये देखो क्या हो रहा है?”
⇒यह भी पढ़े- अख़बार – खबर वही डेट नयी | अख़बार पर एक हिंदी कविता
रमन अपने पिता के पास खड़ा कुछ देर ये सब देखता रहा फिर बोला,
“पिता जी मुझे तो इसमें कुछ ख़ास दिख नहीं रहा। आप मेरा समय व्यर्थ कर रहे हैं।”
“अच्छा! अब देखना जादू। जो तुमने कभी नहीं देखा होगा।”
रमन उत्सुकतावश देखने लगा। रमन के पिता जी ने उस आतिशी शीशे ( Magnifier Glass ) को अख़बार पर एक जगह टिकाया और सूरज से आने वाली बिखरी हुयी किरणें इकट्ठी होकर एक बिंदु के रूप में दिखने लगी। धीरे-धीरे व जगह जहाँ वो बिंदु दिख रहा था, भूरी होने लग गयी। अचानक उसमे बदबू आने लगी और वो जगह जलने लगी। वहा से हल्का-हल्का धुआं भी निकलने लगा। अंततः अख़बार में एक छेद हो गया।
रमन ये सब बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसके पिताजी ने अख़बार से वो आतिशी शीशा ( Magnifier Glass ) हटाया और रमन से बोले,
“देखा तुमने कैसे इसने अपनी एकाग्रता की शक्ति से एक अख़बार को जला कर अपनी ताकत दिखा दी। लेकिन जब मैं तुम्हारे सामने इसे इधर-उधर घुमा रहा था। तब इसने कोई असर नहीं दिखाया या यूँ कहो कि ये अपनी ताकत दखाने में असमर्थ था। जैसे ही इसने एकाग्रता बनायीं और सूरज की किरणों को इकठ्ठा कर उसकी शक्ति को बढाया, और एक जगह पर पहुंचाया। इसके कारण इस अख़बार में छेद हो पाया।
इसी तरह हम भी अपने जीवन में सफलता तभी प्राप्त कर सकते हैं, जब हम अपनी एकग्रता को बढ़ा पाएँगे। जब हम अपना ध्यान अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित करेंगे। तभी हम उसे प्राप्त कर सकते हैं। यदि हमारा मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। “
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