Hindi, asked by Jghuggy6314, 11 months ago

Essay on enviromental pollution and the way to save it in hindi

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Answered by pradyumn78
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Explanation:

प्रदूषण एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में बच्चे भी जानते हैं। यह इतना आम हो गया है कि लगभग सभी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। 'प्रदूषण' शब्द का अर्थ है किसी चीज में किसी भी अवांछित विदेशी पदार्थ का प्रकट होना। जब हम पृथ्वी पर प्रदूषण के बारे में बात करते हैं, तो हम विभिन्न प्रदूषणों के कारण प्राकृतिक संसाधनों के दूषित होने का उल्लेख करते हैं । यह सब मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण होता है जो पर्यावरण को एक से अधिक तरीकों से नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए, इस समस्या से सीधे निपटने के लिए एक तत्काल आवश्यकता उत्पन्न हुई है। यह कहना है, प्रदूषण हमारी पृथ्वी को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहा है और हमें इसके प्रभावों को महसूस करने और इस क्षति को रोकने की आवश्यकता है। प्रदूषण पर इस निबंध में, हम देखेंगे कि प्रदूषण के प्रभाव क्या हैं और इसे कैसे कम किया जाए।

Answered by Dolphin16
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Answer:

तपती धरती बढ़ते संकट, खत्म होते जंगल और हवा में घुलते प्रदूषण के जहर से शिकायत तो सभी को है पर पर्यावरण के बिगड़ते हालातों के प्रति जिम्मेदारी का अहसास सरकारी अमले में ही नहीं आमजन में भी कम ही दिखता है, जबकि पर्यावरण का मुद्दा समग्र समुदाय से जुड़ा मुद्दा है। उचित योजनाओं के साथ-साथ धरती पर उपलब्ध संसाधनों का संयमित उपभोग और सही जीवनशैली ही इस व्यापक विषय को प्रभावी रूप से सम्बोधित कर सकती है। यहाँ तक कि पर्यावरण संरक्षण की सरकारी या गैर सरकारी पहल भी तभी कारगर हो सकती है जब आम लोगों में समझ और संवेदनशीलता आए। क्योंकि पर्यावरण को बिगाड़ने और आबोहवा को इस हद तक जहरीली बनाने के लिए आज के दौर की जीवनचर्या भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। इसे दिखावे की संस्कृति कहें या आरामतलबी जुनून। अब जरूरतों पर इच्छाएँ भारी पड़ रही हैं। बिना जरूरत के वाहन खरीदने और कदम भर भी पैदल न चलने की जीवनशैली हमारे भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रही है। घर में हर जरूरी-गैर-जरूरी सुविधा को जुटाना अब महानगरों में ही नहीं गाँवों कस्बों में भी आम है। गौर करने वाली बात है कि ऐसी सुख-सुविधाओं के आदी हो चले लोग पहले इन चीजों के बिना भी सहज जीवन जीया करते थे। आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी ऐसे  तमाम आदमी धरती पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाने वाले तो हैं ही, पर्यावरण को भी काफी हद दर्जे तक नुकसान पहुँचा रहे हैं। दरअसल, भोगवादी संस्कृति वाली इंसानी आदतों में भी कुदरत को कुपित किया है। असीमित मानवीय जरूरतों और गतिविधियों ने धरती, जल और वायु सभी को प्रदूषित कर दिया है। जहाँ पेड़-पौधों के पूजन की परम्परा रही है वहाँ पहाड़ से लेकर रेगिस्तान तक, देश के हर हिस्से में प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन हो रहा है। जबकि पर्यावरण सहेजने के लिए जागरूकता और जिम्मेदारी का भाव रोजमर्रा की आदतों का हिस्सा भी जरूरी है। इस जिम्मेदारी का सबसे पहला पड़ाव पर्यावरण के दोहन को रोकने का ही है।

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