Essay on farmers during lock down in Hindi
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कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लगे लॉकडाउन ने किसानों की कमर झुका दी है। खेत से लेकर मंडी तक किसान पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। फसल कटाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। अगर किसी तरह फसल कट गई तो उसे मंडी तक ले जाने का इंतजाम नहीं है।
दोगुने दामों में कोई किसान मंडी तक जाने का जुगाड़ कर भी लेता है तो वहां खुले आसमान तले फसल रखकर खुद ही उसकी रखवाली करनी पड़ती है। आंधी बरसात आ जाए तो सब खत्म। लॉकडाउन में जब मजदूर नहीं है तो मशीन से गेहूं कटाना पड़ रहा है। मतलब, पशुओं के लिए चारा नहीं मिलेगा। टाई में देर हो रही है तो बुआई का सीजन भी गड़बड़ा जाएगा।
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मजदूर दो दिन में करते थे, उस काम को करने में लग रहे दस दिन
लॉकडाउन के चलते किसान को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। छोटे किसान, मंझोले और बड़े किसान, सभी की तकरीबन एक जैसी समस्याएं हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य अविक साहा पश्चिम बंगाल, बिहार, असम व उड़ीसा जैसे राज्यों में किसानों के हितों की लड़ाई लड़ते हैं।
वे बताते हैं कि इन राज्यों के करीब अस्सी फीसदी हिस्से में हाथ से काम होता है। ऐसा नहीं है कि आसपास मजदूर नहीं हैं। वे हैं, मगर काम पर नहीं आ रहे। उन्हें डर है कि सोशल डिस्टेंसिंग खत्म हो जाएगी। उनका ध्यान सरकार या दूसरे संगठनों द्वारा दिए जा रहे राशन पर भी है। अब ऐसी स्थिति में किसान का परिवार खेत में उतर रहा है।
मजदूर, जो काम दो दिन में कर देते थे, इन्हें दस दिन लग रहे हैं। सब्जी, फल और गेहूं की फसल खराब हो रही है। यहां सर्दी वाला धान अभी तैयार नहीं हो सका है। वजह, मजदूर नहीं हैं। उसे काटकर, झाड़कर और हांडी में उबालकर तैयार करना पड़ता है। अब, ये सब नहीं हो रहा है तो आगे का फसल चक्र बिगड़ गया है। हाट या मंडी तक जाने के लिए ट्रांसपोर्ट नहीं है।