essay on fear of online exam in hindi
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अक्सर आपने यह कहावत सुनी होगी कि डर के आगे जीत है, इसे अन्य शब्दो में कहे तो मनुष्य को जीत के लिए डर अथवा भय पर काबू पाना आवश्यक हैं. यह मन का नकारात्मक भाव है. यह बेहद अप्रिय भावना भी कही जाती हैं. अमूमन खतरे उपस्थिति अथवा अकेलेपन के कारण भी डर का जन्म होता हैं.
एग्जाम के दिनों में बच्चों में भय का होना बहुत स्वाभाविक हैं लगभग प्रत्येक स्टूडेंट्स इस भय से होकर गुजरता हैं. यह डर का सकारात्मक पहलू है जो और अच्छा करने के लिए प्रेरित करता हैं. वाकई यदि जीवन में किसी तरह का डर न हो तो आदमी निर्भय बनकर लापरवाही करने लगता हैं.
यदि हम परीक्षा के भय के बात करे तो वर्ष भर में बच्चें अपने पाठ्यक्रम की 40 से 50 प्रतिशत की तैयारी ही कर पाते हैं. मगर परीक्षा के डर के कारण ही वे पूरे पाठ्यक्रम को पढ़ पाते हैं. इस तरह उनके ज्ञान में वृद्धि तो होती ही है साथ ही उनमें आत्म विश्वास भी जगता हैं.
डर का आम फोबिया सभी के मन में किसी न किसी तरह छाया रहता हैं. यह विभिन्न प्रकारों में तथा स्थतियों में सामने आता हैं. उदाहरण के लिए किसी को गरीबी का भय तो किसी को लोगों की आलोचनाओं का डर रहता हैं. कुछ लोग स्वास्थ्य को लेकर भयभीत होते है तो कोई प्रेम में बिछड़ने के कारण भय में जीते हैं. 40 वर्ष की आयु के बाद लोग वृद्धावस्था तथा मृत्यु के डर से त्रस्त रहते हैं.
डर मनुष्य की एक मानसिक दशा का नाम है जो अभ्यास के द्वारा नियंत्रित भी किया जा सकता है तथा उसे एक सही दिशा भी दी जा सकती हैं. व्यक्ति के कार्य करने के लिए किसी तरह के संवेग या विचारों का होना जरुरी हैं. चाहे वह एच्छिक हो या अनैच्छिक.
व्यक्ति के जीवन में डर का महत्वपूर्ण स्थान है यदि कुछ लोग गरीब तथा कुछ अमीर बनते है तो इसमें भी भय की अहम भूमिका होती हैं. किसी क्षेत्र विशेष में व्यक्ति की उपलब्धी की सम्भावनाओं को समाप्त करने के लिए भय को अहम माना गया हैं.
मानव को तर्क एवं विवेक सम्मत प्राणी माना गया हैं. डर इन्सान की तर्क करने की शक्ति को निष्प्रभावी बना देता हैं साथ ही उसकी रचनात्मकता तथा कल्पना करने की शक्ति को भी समाप्त कर देता हैं. पहले कदम उठाने तथा कार्य का जिम्मा उठाने से भी रोकता हैं तथा उसके उद्देश्यों को अनिश्चित बना देता हैं.
डर सेल्फ कंट्रोल को समाप्त कर जाता है तथा किसी व्यक्तित्व के प्रति जगे आकर्षण के भावों को भी मिटा देता हैं. स्पष्ट चिन्तन की सम्भावनाओं को खत्म कर देता है तथा विल को भी समाप्त करता है. व्यक्ति की यादाश्त तथा महत्वकांक्षा भी शून्य हो जाती हैं.
यदि हम किसी से सवाल करे कि आपकों सबसे अधिक डर किससे लगता है तो अधिकतर लोगों का यही जवाब होगा कि किसी से भी नहीं. मगर यह जवाब सरासर लगता हैं. किसी भी व्यक्ति की जीवन की सच्चाईयों से मेल खाता हुआ नहीं होता हैं. हर कोई किसी न किसी तरह के शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक बंधन में जकड़े रहते हैं.
हर कोई व्यक्ति किसी डर की उपस्थिति के चलते कई मुशिबतों का सामना कर रहा होता है, जिसके चलते उन्हें जीवन में असफलता तथा निराशा भी हाथ लगी होती हैं. जीवन में डर का भाव इतना गहरा एवं सूक्ष्म होता है कि व्यक्ति इसकी उपस्थिति की पहचान भी नहीं कर पाता हैं.
कई सारे लोग जीवन में आलोचना से बचने से लेकर भयभीत रहते हैं. उन्हें जरा सी आलोचना भी असहज लगती है तथा वे इससे निराश व हताश हो जाते हैं. लोगों की आलोचना के डर के कारण वे अपनी पहल को विराम लगा देते है इससे उनकी कल्पना की शक्ति तथा सोच का दायरा सिमित होने के साथ ही उनमें आत्मविश्वास भी समाप्त होने लगता हैं.