Hindi, asked by harjeetk1382, 10 months ago

essay on friendship in Hindi

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Answered by mayank52206
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जैसा आप खुद हैं, बिना किसी अतिशयोक्ति, चापलूसी और जाती भेदभाव के, यह आपको महसूस करता है कि आप ‘वांछित’ हैं और आप ‘किसी’ और भीड़ में एक अलग व्यक्ति नहीं हैं। एक सच्चा मित्र हमेशा आपके साथ खड़ा होता है। सच्ची दोस्ती जाति, पंथ, वंश और लिंग की सीमाओं के बारे में नहीं जानता।

मित्रता अच्छा और आवश्यक दोनों होता है। मनुष्य इस लम्बे जीवन में अकेले नहीं रह सकता वह एक सामाजिक अस्तित्व है उसकी खुशी और दुखों को बांटने के लिए एक सहरा की आवश्यकता पड़ती है जो एक दोस्त से पूरी होती है और विवाह के बाद एक पति-या पत्नी से।

आम तौर पर, यह केवल वही उम्र, चरित्र और पृष्ठभूमि, मानसिकता आदि के लोग हैं, जो एक दुसरे को समझ सकते हैं और अपनी समस्याओं को एक दुसरे के साथ साँझा कर करके सुलझा सकते हैं। दोस्ती एक अमृत है जो एक सुखी जीवन के लिए ज़रूरी होता है।

दुनिया में कई दोस्त होते हैं जो हमेशा समृद्धि के समय ही साथ रहते हैं, लेकिन केवल सच्चे, ईमानदार और वफादार दोस्त ही होते हैं जो हमें कभी भी हमारे ख़राब समय, कठिनाई और मुश्किल के समय अकेले नहीं होने देते।

Answered by nivabora539
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Answer:

दोस्ती पर निबंध

परिचय

व्यक्ति को प्रत्येक रिश्ता अपने जन्म से ही प्राप्त होता है, अन्य शब्दों में कहें तो ईश्वर पहले से बना के देता है, पर दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसका चुनाव व्यक्ति स्वयं करता है। सच्ची मित्रता रंग-रूप नहीं देखता, जात-पात नहीं देखता, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी तथा इसी प्रकार के किसी भी भेद-भाव का खंडन करती है। आमतौर पर यह समझा जाता है, मित्रता हम-उम्र के मध्य होती है पर यह गलत है मित्रता किसी भी उर्म में और किसी के साथ भी हो सकती है।

व्यक्ति के जीवन में मित्रता (दोस्ती) का महत्व

व्यक्ति के जन्म के बाद से वह अपनों के मध्य रहता हैं, खेलता हैं, उनसें सीखता हैं पर हर बात व्यक्ति हर किसी से साझा नहीं कर सकता। व्यक्ति का सच्चा मित्र ही उसके प्रत्येक राज़ को जानता है। पुस्तक ज्ञान की कुंजी है, तो एक सच्चा मित्र पूरा पुस्तकालय, जो हमें समय-समय पर जीवन के कठिनाईयों से लड़ने में सहायता प्रदान करते है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में दोस्तों की मुख्य भुमिका होती है। ऐसा कहा जाता है की व्यक्ति स्वयं जैसा होता है वह अपने जीवन में दोस्त भी वैसा ही चुनता है। और व्यक्ति से कुछ गलत होता है तो समाज उसके दोस्तों को भी समान रूप से उस गलती का भागीदार समझते हैं।

मित्रता सोच-समझ कर करें

जहां लोग आपसे बात भी अपने स्वार्थ सिद्धि के मनुकामना से करते हैं ऐसे में सच्ची मित्रता भी बहुत कम लोगों को प्राप्त हो पाती है। प्रचीन समय से ही लोग अपनी इच्छाओं व अकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दोस्ती करते हैं तथा अपना कार्य हो जाने पर अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं। इसलिए व्यक्ति को दोस्ती का हाथ हमेशा सोच समझ कर अन्य की ओर बढ़ाना चाहिए।

निष्कर्ष

व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण उसके द्वारा बनाए गए मित्र होते हैं, व्यक्ति को सदैव अपने मित्रों का चुनाव सोच-समझ कर करना चाहिए। जीवन में “सच्ची मित्रता” तथा “मतलब की मित्रता” में भेद कर पाना असल में एक चुनौती है तथा व्यक्ति को व्यक्ति की परख कर मित्रों का चुनाव करना चाहिए।

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