Essay on Groundwater the lifeline of the nation | भूजल-राष्ट्र की जीवनी शक्ति | bhoojal rastra ki Jeevan shakti
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जल ही जीवन है और अन्य ग्रहों की तुलना में पृथ्वी पर सबसे ज्यादा जल उपलब्ध है|जल का अस्तित्व भूमि के ऊपर और नीचे दोनों जगह है| सभ्यता का विकास भी नदियों के किनारे पर ही हुआ था| वर्तमान में भूजल का दोहन एक विकराल समस्या बन चुका है| भूजल का बेहताशा इस्तेमाल किया जा रहा है| भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है| अब भारत विकसित देशों की श्रेणी में आ गया है| यहाँ उद्योगों का तेजी से विकास हो रहा है| तीव्र गति से इमारतें बन रही है| वन नष्ट किये जा रहे है| जल की आवश्यकता विनिर्माण प्रक्रिया में होती ही है| अत: हैंडपंप, बोरिंग, ट्यूबवेळ अदि की मदद से भूजल का अंधाधुंध उपयोग या कहना चाहिए दुरूपयोग हो रहा है|
भूजल को राष्ट्र की जीवनी शक्ति माना गया है पर हम निश्चेतन होकर इसके अंत पर उतारू है जिसका परिणाम भावी में अत्यंत दुखद होगा| पहले हम चर्चा करेंगे कि पृथ्वी पर उपलब्ध जल के स्थान पर भूजल को इतना महत्व क्यों दिया जाता है| प्रमुख कारण है कि ये जल दूषित नहीं होता है| इससे रोगों की सम्भावना नगण्य होती है| ये वाष्पीकरण से मुक्त होता है अत: सुरक्षित है| इसका तापमान बिल्कुल संतुलित होता है| सर्दी में गर्म और गर्मी में शीतल| सरकार द्वारा ठोस नियम व प्रतिबन्ध न होने के कारण थोड़े से खर्च पर उपलब्ध हो जाता है| इसलिए लोग सिचाई में, उद्योगों में ,घरेलू प्रयोग में इसे बर्बाद करते है|
ये प्रकृति का नियम है कि यदि हम सिर्फ लेंगे और बदले में कुछ नहीं देंगे तो विनाश लाजिमी है| अब हम उन उपायों पर दृष्टि डालेंगे जिनसे भूजल का सुरक्षित रहना संभव है| सर्वप्रथम हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम यथासम्भव जल बचायेंगे| जल बर्बाद नहीं करेंगे| वृक्षारोपण करेंगे| पृथ्वी के ऊपर जो जल उपलब्ध है उसे दूषित नहीं करेंगे| उसी का अधिकाधिक प्रयोग करेंगे| ऐसे संयंत्रो का प्रयोग करेंगे जो जल को शुद्ध करे| वर्षा जल संग्रहण करेंगे और उसका समुचित प्रयोग करेंगे| प्रदूषण की रोकथाम करेंगे ताकि वर्षा समुचित मात्रा में हो और सूखे की स्थिति न आये| विश्वव्यापी तापक्रम वृद्धि से भूजल का पुनर्भरण नहीं हो पा रहा है| अत: इसके प्रतिरोध के उपाय अपनाएंगे| सरकार को भी भूजल दोहन के विरूद्ध सख्त नियम बनाने चाहिए| जो लोग स्वार्थवश अपनी सुविधा के लिए इसका दोहन करते है और प्रकृति का संतुलन बिगाड़ते है उनके विरुद्ध कठोर कदम उठाने चाहिए|
Explanation:
पानी को लेकर पूरी दुनिया में बढ़ने वाली मुश्किलों के चलते बेहतर है कि बारिश की एक-एक बूँद को बचाया जाए और हर नागरिक को अपनी इस जिम्मेदारी का अहसास कराया जाए। सदियों से हमारे पूर्वज इस दिशा में काम करते रहे हैं। हाल-फिलहाल में भी इस दिशा में तेजी से काम हुआ है। मात्र पिछले दो महीनों में जलशक्ति अभियान के तहत जल-संरक्षण हेतु 5 लाख से अधिक बुनियादी ढाँचे बनाए गए हैं। केरल में कुट्टुमपेरूर नदी को मनरेगा के तहत मात्र 70 दिनों में पुनर्जीवित किया गया।
2018 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में करीब 60 करोड़ लोगों को पानी की परेशानी का सामना करना पड़ता है। देश के करीब 75 फीसदी घरों में आजादी के सात दशक बाद भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। जबकि ग्रामीण इलाकों के हालात तो और बदतर हैं, जहाँ 84 फीसदी घरों में अभी भी जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं, देश में 70 फीसदी पानी दूषित है। तभी तो जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत दुनिया की 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर है। जल सूचकांक रैकिंग के मामले में देश में गुजरात पहले पायदान पर है तो मध्यप्रदेश दूसरे जबकि आन्ध्रप्रदेश तीसरे नम्बर पर है। बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और झारखण्ड सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल हैं।
“मेरा पहला अनुरोध है, जैसे देशवासियों ने स्वच्छता को एक जन-आन्दोलन का रूप दे दिया। आइए, वैसे ही जल-संरक्षण के लिए एक जन-आन्दोलन की शुरुआत करें।” ये शब्द भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हैं। प्रधानमंत्री ने 30 जून, 2019 को अपने दूसरे कार्यकाल में पहली बार ‘मन की बात’ कार्यक्रम में ये उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने लोगों से जल-संरक्षण के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि जल-संरक्षण के लिए इस्तेमाल होने वाले पारम्परिक तौर-तरीकों को साझा करने की जरूरत है। 2014 से 2018 के बीच मनरेगा बजट से इतर केवल जल-प्रबन्धन पर ही सालाना 32 हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। 2017-18 में 64 हजार करोड़ रुपए के कुल खर्चे की 55 प्रतिशत राशि यानी करीब 35 हजार करोड़ रुपए जल-संरक्षण जैसे कामों पर ही खर्च की गई। सरकार के इन प्रयासों के चलते ही तब तीन सालों में करीब 150 लाख हेक्टेयर जमीन को इससे फायदी मिला था। प्रधानमंत्री ने पानी की एक-एक बूँद को बचाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि आने वाले वक्त में पानी को लेकर पूरी दुनिया में बढ़ने वाली मुश्किलों के चलते बेहतर है कि बारिश की एक-एक बूँद को बचाना हर किसी की जिम्मेदारी हो। सदियों से हमारे पूर्वज इस दिशा में काम करते रहे हैं। मनारकोविल, चिरान महादेवी, कोविलपट्टी या पुदुकोट्टई के साथ-साथ तमिलनाडु के मन्दिरों में जल-प्रबन्धन के बारे में शिलालेख मौजूद हैं। गुजरात में अडालज और पाटन की रानी की बावड़ी के साथ ही राजस्थान में जोधपुर में चाँद बावड़ी जल संरक्षण के प्राचीन प्रमाण हैं। पिछले 3-4 वर्षों में इस दिशा में काम भी हो रहा है। केरल में कुट्टुमपेरूर नदी को मनरेगा के तहत काम करके 70 दिनों में पुनर्जीवित किया गया। साथ ही, फतेहपुर जिले में ससुर और खदेरी नामक दो छोटी नदियों को भी पुनर्जीवित किया गया।
केन्द्र सरकार ने जल-संसाधन और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालयों को मिलाकर एक एकीकृत मंत्रालय का गठन किया है, जिसे ‘जलशक्ति मंत्रालय’ नाम दिया गया है। इस महत्त्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी गजेन्द्र सिंह शेखावत को दी गई है। रतनलाल कटारिया राज्यमंत्री है। प्रधानमंत्री की जल-संरक्षण की अपील के अगले ही दिन केन्द्र सरकार ने जल-संरक्षण अभियान शुरू कर दिया। केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री ने 1 जुलाई, 2019 को जल-संरक्षण अभियान की शुरुआत की। इसके तहत देश के 256 जिलों के ज्यादा प्रभावित 1592 ब्लॉकों को प्राथमिकता के आधार पर चुना गया। इस अभियान को दो चरणों में चलाना तय किया गया है। पहला चरण 1 जुलाई, 2019 से शुरू होकर 15 सितम्बर, 2019 तक, तो दूसरा चरण एक अक्टूबर, 2019 से शुरू होकर 30 नवम्बर, 2019 तक। इस अभियान का फोकस पानी के कम दबाव वाले जिलों और ब्लॉकों पर होगा। दरअसल इस अभियान का मकसद जल-संरक्षण के फायदों को लेकर लोगों के बीच जागरुकता पैदा करना है ताकि देश के हर घर में नल का पानी उपलब्ध कराने में सहभागिता और जागरुकता का लाभ मिल सके। जलशक्ति अभियान पेयजल और स्वच्छता विभाग की पहल पर कई मंत्रालयों के साथ-साथ राज्य सरकारों का एक मिला-जुला प्रयास है। केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि जिला प्रशासन के साथ मिलकर जल संरक्षण को लेकर मंत्रालय द्वारा तय किए गए पाँच बिन्दुओं पर काम करेंगे ताकि मंत्रालय तय समय में अपना लक्ष्य हासिल कर सके। जलशक्ति मंत्रालय का लक्ष्य साल 2024 तक देश के हर घर में पीने का साफ पानी मुहैया कराना है। इसी को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपना पहला बजट पेश करते वक्त ही साफ कर दिया था कि अगले 5 साल में देश के हर नागरिक को पीने का साफ पानी मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता है। इसीलिए जल-संरक्षण को मिशन के तौर पर लागू किया गया है, ताकि वर्षाजल संरक्षण, जल-संरक्षण और जल प्रबंधन को बढ़ावा मिल सके। जलशक्ति मंत्रालय ने अपनी प्राथमिकताएँ तय की हैं। इनमें प्रमुख हैं-गंगा संरक्षण, नदियों को आपस में जोड़ना, बाढ़ प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, बाँध पुनर्वास, क्षमता निर्माण, राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना, नमामि गंगे, राष्ट्रीय जल मिशन कार्यान्वयन, नदी बेसिन प्रबन्धन, भूजल प्रबंधन और बुनियादी ढाँचे का विकास।