essay on guru ka mahatva at least 500 words in hindi
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वास्तव में गुरु की महिमा का पूरा वर्णन कोई नहीं कर सकता। गुरु की महिमा तो भगवान् से भी कहीं अधिक है-
गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।शास्त्रों में गुरु का महत्त्व बहुत ऊँचा है। गुरु की कृपा के बिना भगवान् की प्राप्ति असंभव है। गुरु के मन में सदैव ही यह विचार होता है कि उसका शिष्य सर्वश्रेष्ठ हो और उसके गुणों की सर्वसमाज में पूजा हो। जीवन में गुरू के महत्व का वर्णन कबीर दास जी ने अपने दोहों में पूरी आत्मीयता से किया है-गुरू गोविन्द दोऊ खड़े का के लागु पाँव,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
आज के आधुनिक युग में भी गुरु की महत्ता में जरा भी कमी नहीं आयी है। एक बेहतर भविष्य के निर्माण हेतु आज भी गुरु का विशेष योगदान आवश्यक होता है। गुरु के प्रति श्रद्धा व समर्पण दर्शित करने हेतु 'गुरु पूर्णिमा' का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गुरुका पूजन करने से गुरु की दीक्षा का पूरा फल उनके शिष्यों को मिलता है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरुओं का सम्मान किया जाता है। इस अवसर पर आश्रमों में पूजा-पाठ का विशेष आयोजन किया जाता है।
हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। माता -पिता हमारे प्रथम शिक्षक होते है। गुरु का दर्जा माता -पिता से भी बढकर होता है। गुरु जलती हुयी उस मोमबत्ती के समान होता है जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन से अँधेरे को मिटाता है। गुरु हमे अंधकारमय जीवन से प्रकाश की ओर ले जाते है।
मनुष्य के लिए गुरु सर्वोपरि है। गुरु हमे सही मार्ग का चयन करने में सहायता करते है। गुरु कुम्हार की भाँति होता है, जो शिष्य को एक मिट्टी के घड़े की तरह सही आकार देता है, खासकर विद्यार्थी जीवन में गुरु का महत्व अहम है। गुरु अपने शिष्य को हर प्रकार के विषयो का ज्ञान देता है और शिष्य को जीवन में अलग अलग पड़ाव आने वाली मुश्किलों से लड़ना सीखाते है।
गुरु की भूमिका सभी जीवन में होती है। हर व्यक्ति गुरु के प्रति आस्था, विश्वास और सम्मान रखता है और अपने जीवन में कठिन से कठिन फैसले लेने से पूर्व अपने गुरु से विचार विमर्श करना चाहता है।
हमारे ग्रंथों में गुरु को ईश्वर से भी अधिक पूज्य कहा गया है। शास्त्र कहते हैं-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
अर्थात गुरु साक्षात परमात्मा है। क्योंकि परमात्मा की ही तरह गुरु के पास भी शिष्य का जीवन सँवारने या नष्ट करने का अवसर होता है।
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