Essay on hamara charitr hi hamari Pehchaan hain
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Author. Jaiswal601
शेर की गर्जना सदियों पहले जैसी बनी हुई है। भैंसा आज भी हजार वर्ष पहले जैसा है। गुस्सा आता है तो वह किसी को भी मार डालता है। सांप पहले जैसे फुफकारता और डंसता था, आज भी उसी तरह करता है। इन सबके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। केवल मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो अपने व्यवहार में परिवर्तन कर सकता है। मनुष्य भटका हुआ देवता है। यदि उसे सही राह पर चलाने के लिए कोई कुशल गाइड मिल जाए तो वह अपनी असाधारण ऊंचाई और सामर्थ्य से हर किसी को चमत्कृत कर सकता है। लेकिन अक्सर हम अपने सुखों और छोटे स्वार्थों की दौड़ में विचलित हो जाते हैं। जीवन के सबसे महत्वपूर्ण कार्य, अपने आचरण यानी चरित्र निर्माण को भुला बैठते हैं।
राम का स्मरण करते ही मर्यादा मूर्तिमान हो जाती है। सीता और हनुमान का नाम आते ही पवित्रता और भक्ति की अनुभूति होने लगती है। दान का प्रसंग छिड़ते ही कर्ण की छवि उभरती है। क्या हमने भी अपनी कोई ऐसी पहचान बनाई है? प्राचीन काल जैसी सत्य-निष्ठा आज हममें नहीं है। पहले इंसान घबराता था कि उस से कोई बुरा काम न हो जाए, कहीं उसे झूठ न बोलना पड़े। आज यह निष्ठा समाप्त हो गई है। आज जो झूठ बोल सकता है, बात को छिपा सकता है, वही अधिक कुशल और व्यवहारिक माना जाता है। इस प्रवृत्ति ने हमारी संपूर्ण आस्था को आंदोलित कर दिया है।
आदमी का भरोसा कहीं जम नहीं पा रहा है, क्योंकि हम अपने जीवन मूल्यों को आचरण में लाना भूलते गए हैं। हमारे जीने का तरीका ही हमारी सबसे बड़ी पहचान है। हमारी संपदा है- हमारा चरित्र। यही आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है। हम एक ओर तो शांति के लिए आकाश में कबूतर उड़ाते हैं और दूसरी तरफ इंसान के विनाश के लिए घातक शस्त्रों का निर्माण करते रहते हैं।
यही वजह है कि हम ऊपरी तौर पर विकास के नए-नए कार्तिमान तो बनाते रहते हैं, लेकिन हमारा और हमारे समाज का नैतिक मूल्यों का ग्राफ पतन की निचली सतह तक पहुंचता जा रहा है। जानकारियों के बीच खड़े मानव के पास समझ के मीठे जल का एक लोटा भी नहीं है। इसका परिणाम गंभीर मनोरोगों से लेकर कलह, अशांति और गहन विषाद के रूप में सामने आ रहा है। जीवन में अराजकता फैल गई है। मन पर व्याकुलता छा गई है। सुख के समय अनीति के मार्ग पर दौड़ते रह कर, दुख के समय में जीवन समाप्त करने वाले कायरों की संख्या हर रोज बढ़ रही है। कहीं ऐसा न हो कि जिस मनुष्य की प्रगति के लिए हम बड़े-बड़े मॉल, सड़कें और आधुनिक सुविधाओं से युक्त भवन बना रहे हैं, आचरण के अभाव में उनमें रहने वाला मनुष्य ही पीछे छूट जाए।
शेर की गर्जना सदियों पहले जैसी बनी हुई है। भैंसा आज भी हजार वर्ष पहले जैसा है। गुस्सा आता है तो वह किसी को भी मार डालता है। सांप पहले जैसे फुफकारता और डंसता था, आज भी उसी तरह करता है। इन सबके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। केवल मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो अपने व्यवहार में परिवर्तन कर सकता है। मनुष्य भटका हुआ देवता है। यदि उसे सही राह पर चलाने के लिए कोई कुशल गाइड मिल जाए तो वह अपनी असाधारण ऊंचाई और सामर्थ्य से हर किसी को चमत्कृत कर सकता है। लेकिन अक्सर हम अपने सुखों और छोटे स्वार्थों की दौड़ में विचलित हो जाते हैं। जीवन के सबसे महत्वपूर्ण कार्य, अपने आचरण यानी चरित्र निर्माण को भुला बैठते हैं।
राम का स्मरण करते ही मर्यादा मूर्तिमान हो जाती है। सीता और हनुमान का नाम आते ही पवित्रता और भक्ति की अनुभूति होने लगती है। दान का प्रसंग छिड़ते ही कर्ण की छवि उभरती है। क्या हमने भी अपनी कोई ऐसी पहचान बनाई है? प्राचीन काल जैसी सत्य-निष्ठा आज हममें नहीं है। पहले इंसान घबराता था कि उस से कोई बुरा काम न हो जाए, कहीं उसे झूठ न बोलना पड़े। आज यह निष्ठा समाप्त हो गई है। आज जो झूठ बोल सकता है, बात को छिपा सकता है, वही अधिक कुशल और व्यवहारिक माना जाता है। इस प्रवृत्ति ने हमारी संपूर्ण आस्था को आंदोलित कर दिया है।
आदमी का भरोसा कहीं जम नहीं पा रहा है, क्योंकि हम अपने जीवन मूल्यों को आचरण में लाना भूलते गए हैं। हमारे जीने का तरीका ही हमारी सबसे बड़ी पहचान है। हमारी संपदा है- हमारा चरित्र। यही आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है। हम एक ओर तो शांति के लिए आकाश में कबूतर उड़ाते हैं और दूसरी तरफ इंसान के विनाश के लिए घातक शस्त्रों का निर्माण करते रहते हैं।
यही वजह है कि हम ऊपरी तौर पर विकास के नए-नए कार्तिमान तो बनाते रहते हैं, लेकिन हमारा और हमारे समाज का नैतिक मूल्यों का ग्राफ पतन की निचली सतह तक पहुंचता जा रहा है। जानकारियों के बीच खड़े मानव के पास समझ के मीठे जल का एक लोटा भी नहीं है। इसका परिणाम गंभीर मनोरोगों से लेकर कलह, अशांति और गहन विषाद के रूप में सामने आ रहा है। जीवन में अराजकता फैल गई है। मन पर व्याकुलता छा गई है। सुख के समय अनीति के मार्ग पर दौड़ते रह कर, दुख के समय में जीवन समाप्त करने वाले कायरों की संख्या हर रोज बढ़ रही है। कहीं ऐसा न हो कि जिस मनुष्य की प्रगति के लिए हम बड़े-बड़े मॉल, सड़कें और आधुनिक सुविधाओं से युक्त भवन बना रहे हैं, आचरण के अभाव में उनमें रहने वाला मनुष्य ही पीछे छूट जाए।
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hope it helps you
goole par find kar lena
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