Hindi, asked by jaysrinaveen1867, 1 year ago

Essay on hindi bhasha ka mahatva in hindi 500-800 words

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Answered by prabhunath700218
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भले ही हिंगलिश के बहाने हिंदी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है, किंतु हिंगलिश का बढ़ता प्रचलन हिंदी भाषा कीगरिमा के दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है| कुछ वैज्ञानिक शब्दों: जैसे मोबाइल. कंप्यूटर, साइकिल,टेलीविजन एवं अन्य शब्दों: जैसे स्कूल, कॉलेज, स्टेशन इत्यादि तक तो ठीक है, किंतु अंग्रेजी के अत्यधिक एवंअनावश्यक शब्दों का हिंदी में प्रयोग सही नहीं है|हिंदी, व्याकरण के दृष्टिकोण से एक समृद्ध भाषा है| यदि इसकेपास शब्दों का आभाव होता है, तब तो इसकी स्वीकृति दी जा सकती है| शब्दों का भंडार होते हुए भी यदि इस तरहकी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया जाता है, तो यह निश्चय ही भाषायी  गरिमा के दृष्टिकोण से एक बुरी बात है| भाषासंस्कृति के संरक्षक एवं वाहक होती है| राष्ट्रभाषा की गरिमा नष्ट होने से उस स्थान की सभ्यता और संस्कृति पर भीप्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का कहना है “वर्तमान समय में विज्ञान के मूलकार्य अंग्रेजी में होते, इसलिए आज अंग्रेजी आवश्यक है, किंतु मुझे विश्वास है कि अगले दो दशको में विज्ञान के मूलकार्य हमारी भाषाओं में होने शुरू हो जाएंगे और तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे|”

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के संदर्भ में गुरुदेव रविंदनाथ टैगोर ने कहा था “भारत की सारी प्रांतीय बोलियाँ, जिनमेंसुंदर साहित्यों की रचना हुई है, अपने घर या प्रांत में रानी बनकर रहे, प्रांत के जन-गण के हार्दिक चिंतन की प्रकाशभूमि स्वरूप कविता की भाषा हो कर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्य-मणि हिंदी भारत-भारती होकरविराजती रहे|” प्रत्येक देश की पहचान का एक मजबूत आधार उसकी अपनी भाषा होती है, जो अधिक से अधिकव्यक्तियों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा के रूप में व्यापक विचार विनिमय का माध्यम बनकर ही राष्ट्रभाषा (यहाँ राष्ट्रभाषा का तात्पर्य है – पूरे देश की भाषा) का पद ग्रहण करती है| राष्ट्रभाषा के द्वारा आपस में संपर्क बनाए रखकरदेश की एकता और अखंडता को भी कायम रखा जा सकता है|

हिंदी देश की संपर्क भाषा तो है ही, इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान भी दिया जाना चाहिए, जिससे कि यह पूरेदेश को एकता के सूत्र में बांधने वाली भाषा बन सके| देश रतन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की गई है वह आज भी प्रासंगिकहै “जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता | अत: आज देश केसभी नागरिकों को यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि वह हिंदी को स्नेह अपनाकर और सभी कार्य क्षेत्रों में इसकाअधिक से अधिक प्रयोग कर इसे व्यवहारिक रुप से राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करेंगे|”

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