essay on hindi topic - 'Mahanagri jeevan - abhishap' written in hindi
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महानगरों का जीवन थोड़ा अलग है. भाग -दौड़ ,आपा -धापी ,हर कोई अपने आप मे व्यस्त है . यह भागा -दौड़ी का जीवन उनलोगों के लिए अधिक है ,जो बाहर से यहाँ कमाने आए हैं .उनमे भी सरकारी लोगों की जिंदगी फिर भी थोड़ी सुकून भरी होती है .लेकिन गैर सरकारी दफ़्तरों मे काम करनेवाले तो वाकई जी तोड़ मेहनत कर के कमाते हैं . सुबह समय पर पहुँचने की हड़बड़ी और वापसी का कोई निश्चित समय नही होता , लेकिन ये भी सच है की बदले मे उन्हे एक बेहतर भविष्य भी तो मिल रहा है , महानगर की लड़कियों और महीलाओं के तो क्या कहने ! उनके तो दोनो हाथों मे लड्डू है , एक तरफ आर्थिक स्वावलंबन से मिला आत्म विश्वास दूसरी तरफ .घर -परिवार की तरफ से मिलने वाली आज़ादी. जो पहले उन्हे इतनी नही मिलती थी . अब तो पुरुष भी , चाहे पति के रूप मे हो या पिता -भाई के रूप मे . हर कदम पर उनका साथ दे रहे हैं . खाना पकाने से लेकर बच्चे पालने तक . समय का सदूपयोग तो कोई इनसे सीखे! घर-समाज -दफ़्तर. सभी का सामंजस्य क्या मजे से निभा रही हैं . साथ ही अपनी सेहत, फैशन, रख-रखाव सभी का ध्यान रखती हैं . आप मैट्रो के किसी लेडीज़ डिब्बे का नजारा देख लीजिए . आपको तमाम लेटेस्ट फैशन के कपड़े, बैग, चप्पल, गहने दिख जाएँगे . हाँ गौषिप भी खूब देखने को मिलता है यानी इतना सब करने के बाद भी जीवन का रस यानी गौषिप! वो भी नही हटता है.
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