Essay on human welfare
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Essay on Human Welfare
भारतीय संस्कृति, मानव कल्याण की भावना पर ही आधारित है । हमारी संस्कृति के अनुसार मानव के सभी कार्य दूसरों के हित तथा उनके सुख के लिए होने चाहिए । भारतीय संस्कृति की मूल भावना को व्यक्त करने के लिए मानव मात्र के कल्याण की कामना की गई है । सब सुखी हों, सब निरोगी हों, सबका कल्याण हो तथा किसी को कोई दु:ख न हो ।
मानव में सहनशीलता तथा क्षमाशीलता का गुण, महत्वपूर्ण स्थान रखता है । जिस व्यक्ति में सहनशीलता का गुण है वह व्यक्ति, दूसरों के क्रोधित होने पर भी तथा अपशब्द कहने पर शांत बना रहता है । वह हर स्थिति में दूसरों के भले की ही कामना करता रहता है । इसी कारण उसका कोई शत्रु भी नहीं होता ।
दूसरी ओर, जब कोई व्यक्ति शत्रुता के बदले शत्रुता करता है, ईर्ष्या के बदले ईर्ष्या करत है तब वह व्यक्ति मानव का नहीं, बल्कि पशुओं का कार्य कर रहा होता है । यदि आप किसी जानवर के साथ कोई बुरा काम करेंगे, तो वह वापस आपको नुकसान पहुँचाएगा ।
मनुष्य तथा जानवर में यही अंतर है, पशु में सहनशीलता, संवेदनशीलता, परोपकार, तथा सहयोग आदि की भावना नहीं होती । जबकि मनुष्य में ये सभी गुण होते हैं । किसी का नुकसान करना तथा प्रतिशोध करना मनुष्य को पशुतुल्य बना देता है ।
क्रोध उसकी बुद्धि का विनाश कर देता है और बुद्धि का विनाश होने पर व्यक्ति को उचित, अनुचित का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं रहता । जबकि मनुष्य को सदा दूसरों का हित करना चाहिए । यदि कोई व्यक्ति आपके साथ कुछ गलत करता है, उस समय अपनी सहनशीलता दिखाने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ कहलाता है ।
जब उस व्यक्ति को अहसास होगा कि उसके गलत व्यवहर का आप पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ रहा है, तब वह व्यक्ति भी अपना व्यवहार ठीक कर लेगा । उसी प्रकार क्षमा करना भी मानव कल्याण की ही भावना है । जब कोई व्यक्ति बुरा काम करता है, तब उसे इसकी सजा देने की अपेक्षा यदि माफ कर दिया जाए, तब उस व्यक्ति में अपने आप परिवर्तन आ जाएगा ।
अत: कहा गया है कि जिसके पास क्षमा रूपी अस्त्र है, दुष्ट मनुष्य भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते । ईर्ष्या, द्वेष तथा वैमनस्य, मानवीय आत्मा के द्योतक हैं क्योंकि जिस भी व्यक्ति में ये अवगुण हैं, वह व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता तथा उसका निरंतर पतन होता है ।
वहीं दूसरी ओर समाज में सहनशील व्यक्तियों का सभी आदर तथा सम्मान करते हैं । गीता में भी कहा गया है कि ”जो व्यक्ति सभी को अपने समान समझता है, वही व्यक्ति ज्ञानी तथा पंडित कहलाता है ।”
भगवान यीशु ने भी इसी प्रकार की शिक्षा दी थी: ”यदि कोई मनुष्य तुम्हारे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारता है, तो अपना बायाँ गाल भी उसके सामने कर दो । एक बार में नहीं, तो दूसरी बार में उसे शर्मिंदा होना ही पड़ेगा ।”
डाकू अंगुलिमाल को बुद्ध ने अपनी सहनशीलता तथा मधुर व्यवहार द्वारा जीत लिया था । स्नेहिल व्यवहार, मधुर वचनों तथा सहृदयता के द्वारा ही विनोबा भावे ने डाकुओं का आत्मसमर्पण तथा हृदय परिवर्तन किया था । कुछ लोगों का मानना है कि क्षमा करने तथा सहनशीलता से कुछ भी प्राप्त नहीं होता । इस प्रकार की विचारधारा से तो दुष्टों की दुष्टता और भी अधिक बढ़ जाती है ।
ऐसे व्यक्तियों का कहना है कि दुष्टों के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए । रावण जैसे पापी को श्रीराम के समझाने का कोई असर नहीं हुआ । श्रीकृष्ण द्वारा दुर्योधन को बड़े ही प्रेम से यह अनुरोध किया गया था कि पांडवों को केवल पाँच गाँव दे दो, परंतु दुर्योधन पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ और परिणामस्वरूप लाखों लोगों की जान का नुकसान हुआ ।
लोगों का मानना है कि बिना डर के कोई दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता । यदि अपराधी को दंड का डर नहीं हो, तो वह कभी भी अपनी आपराधिक प्रवृत्ति नहीं छोड़ता । परंतु लोगों की यह धारणा अधिक उचित नहीं है क्योंकि क्रोध से क्रोध का अंत नहीं हो सकता । शत्रुता को प्यार से ही समाप्त किया जा सकता है उसी प्रकार ईर्ष्या को भी प्रेम से ही दूर किया जा सकता है, तभी मानवता का कल्याण संभव है ।