Hindi, asked by Kavyagrvk9803, 1 year ago

essay on importance of rivers in hindi

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Answered by duragpalsingh
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नदियाँ सदैव ही जीवन दायिनी रही है । नदियाँ , प्रकृति का एक अभिन्न अंग है। नदियाँ , अपने साथ बारिस का जल एकत्र कर ,उसे भू-भाग मे पहुंचाने का कार्य करती है। गंगा, सिन्धु, अमेज़न, नील , थेम्स, यंगतिशि आदि विश्व की प्रमुख नदियां है। 

नदियों के कई सामाजिक, वैज्ञानिक व्  आर्थिक लाभ है । नदियों से जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक स्वच्छ जल प्राप्त होता है यही कारण है कि अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं ,जनजातियाँ नदियों के समीप ही विकसित हुईं। उदाहरण के लिए सिंधु घाटी सभ्यता , सिंधु नदी के पास विकसित होने के प्रमाण मिले है । सम्पूर्ण विश्व के बहुत बड़े भाग मे  , पीने का पानी और  घरेलू उपयोग के लिए पानी , नदियो के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी देखे तो नदियाँ बहुत उपयोगी होती है क्योंकि उद्योगो के लिए आवश्यक जल  नदियों से सरलता से प्राप्त किया जा सकता है । कृषि के लिए , सिंचाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, इसके लिए आवश्यक पानी  नदियों द्वारा प्रदान किया जाता है । नदियाँ खेती के लिए लाभदायक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का उत्तम स्त्रोत होती हैं। नदियां न केवल जल प्रदान करती है बल्कि घरेलू एवं उद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को अपने साथ बहकर ले भी जाती है। बड़ी नदियों का उपयोग जल परिवहन के रूप मे भी किया जा रहा है। सैलानिओ के लिए भी नदियों कई  मनोरंजन के साधन जैसे बोटिंग , रिवर रैफ्टिंग आदि उपलब्ध करती है जिससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है। नदियो से मछली के रूप मे खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होते है। नदियों पर बांध बनाकर उनसे हाइड्रो बिजली प्राप्त होती है ।

नदियां हमारी सदैव मित्र रही है और हमे उनसे अनेक महत्वपूर्ण लाभ होते है । हमारा कर्तव्य है कि उनका अति दोहन न करे एवं उन्हे प्रदूषित होने से बचाये। 
Answered by praneeth85
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नदी को अपनी यात्रा में बाढ़ के पानी के अलावा भूजल से सम्बन्धित दो प्रकार की परिस्थितियाँ मिलती हैं। पहली परिस्थिति जिसमें भूजल भण्डारों का पानी बाहर आकर नदी को मिलता है। दूसरी परिस्थिति जिसमें नदी में बहते प्रवाह का पूरा या कुछ हिस्सा, रिसकर भूजल भण्डारों को मिलता है। नदी, दोनों ही स्थितियों (Effluent– Gaining stage or influent– losing stage) का सामना करते हुए आगे बढ़ती है।

नदी का प्रवाह मिट्टी के कटाव व चट्टानों के नष्ट होने से प्राप्त मलबे तथा वनस्पतियों के अवशिष्टों को बहाकर आगे ले जाता है। उसका एक भाग सतही रन-आफ और दूसरा भाग भूजल प्रवाह कहलाता है। प्रवाह के इस विभाजन को प्रकृति नियंत्रित करती है। बरसात में सतही रन-आफ और बाकी दिनों में धरती की कोख से रिसा भूजल ही नदी में बहता है। अनुमान है कि नदी तल के ऊपर बहने वाले रन-आफ और नदी तल के नीचे बहने वाले भूजल का अनुपात 38:01 है।

उल्लेखनीय है कि भूजल प्रवाह, गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से, लगातार निचले इलाको की ओर बहता है। उसकी इस यात्रा में कुछ पानी नदी के प्रवाह के रूप में सतह पर तथा बाकी हिस्सा नदी तल के नीचे-नीचे चलकर समुद्र में समा जाता है। नदी के सूखने के बावजूद नदी तल के नीचे पानी का प्रवाह बना रहता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि नदी को भूजल का अधिकतम योगदान उथले एक्वीफरों से ही मिलता है।

नदी तंत्र में प्रवाहित बाढ़ के पानी के साथ मलबा (मिट्टी, सिल्ट, उपजाऊ तत्व इत्यादि) बहता है। उसका कुछ हिस्सा बाढ़-क्षेत्र (Floodplain) में और बाकी हिस्सा पानी के साथ आगे बढ़ जाता है और समुद्र के निकट पहुँचकर डेल्टा का निर्माण करता है। नदी तंत्र में प्रवाहित पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मलबे (ठोस) का और बाकी 30 प्रतिशत हिस्सा घुलित रसायनों का होता है। नदी तंत्र में प्रवाहित पानी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मुख्यतः बोल्डरों, बजरी, रेत और सिल्ट होता है। नदी मार्ग में उनका जमाव धरती का ढाल, प्रवाह की गति, जल की परिवहन क्षमता से नियंत्रित होता है। बोल्डर, बजरी जैसे बड़े कण नदी के प्रारम्भिक भाग में तथा छोटे कण अन्तिम भाग में मिलते हैं।

नदी अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी को बड़ी नदी, झील अथवा समुद्र में जमा करती है पर कभी-कभी उसके मार्ग में मरुस्थल आ जाता है। उसके आने के कारण नदी का पानी रेत में रिसने लगता है। वाष्पीकरण भी बढ़ जाता है। नदी पर सूखने का खतरा बढ़ने लगता है। यदि पानी की आपूर्ति बनी रहती है तो वह मरुस्थल की रिसाव बाधा को पार कर लेती है। यदि पार नहीं कर पाती तो मरुस्थल में गुम हो जाती है।

नदी अपने जीवन काल में युवा अवस्था (Youth stage), प्रौढ़ अवस्था (Mature stage) तथा वृद्धावस्था (Old stage) से गुजरती है। इन अवस्थाओं का सम्बन्ध उसके कछार के ढाल से होता है। अपनी युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था में नदी अपने कछार में भूआकृतियों (Land forms) का निर्माण करती है। उनका परिमार्जन (Modify) करती है। अपनी प्राकृतिक भूमिका का निर्वाह करती है। वह जैविक विविधता से परिपूर्ण होती है। उसका अपना पारिस्थितिक तंत्र होता है जो स्थिर पानी (Lake and reservoir) के पारिस्थितिक तंत्र से पूरी तरह भिन्न होता है। वह प्राकृतिक एवं प्रकृति नियंत्रित व्यवस्था है जो वर्षाजल, सतही जल तथा भूजल को सन्तुलित रख, अनेक सामाजिक तथा आर्थिक कर्तव्यों का पालन करती है। वह जागृत इको-सिस्टम है। नदी पर निर्भर समाज के लिये वह आजीविका का आधार है। कुदरती तौर नदी का प्रवाह अविरल होता है। सूखे दिनों में उसका प्रवाह धीरे-धीरे कम होता है। नदी में रहने वाले जीव-जन्तु और वनस्पतियाँ उस बदलाव से परिचित होते हैं। इसलिये कुछ उस बदलाव के अनुसार अपने को ढाल लेते हैं तो कुछ अन्य इलाकों में पलायन कर जाते हैं।

वृद्धावस्था में नदी का कछार लगभग समतल हो जाता है। पानी फैलकर बहता है। तटों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। उस स्थिति में नदी की पहचान खत्म हो जाती है। वह विलुप्त हो जाती है पर उसके कछार पर पानी बरसना समाप्त नहीं होता।

हर स्वस्थ नदी अविरल होती है। प्रदूषण मुक्त रहती है। अविरलता उसकी पहचान है। स्वस्थ नदी के निम्न मुख्य संकेतक हैं-

1. सुरक्षित कैचमेंट (Secure catchment)
2. पर्याप्त बहाव (Adequate flow )
3. स्वच्छ पानी (Clean water)
4. अक्षत चरित्र (Intact characters)

उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट है कि नदी मात्र बहता पानी नहीं है। वह जटिल प्रणाली है। उस जटिल प्रणाली में जल धारा के अलावा और नदी के अन्य अन्तरंग घटक यथा नदी तल (River Bed), नदी तट (River Bank), बाढ़ क्षेत्र (Flood plain), राईपेरियन जोन (Riparian zone) और कछार / बेसिन (Basin) इत्यादि होते हैं। इन घटकों को नदी से पृथक कर नहीं देखा जा सकता। वे सभी घटक नदी परिवार के सदस्य हैं। उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-
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