essay on ishwar ek hai in hindi
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Explanation:
ईश्वर एक है किंतु उसके रूप अनेक हैं। कहीं हम राम के रूप में ईश्वर को जानते हैं तो कहीं कृष्ण रूप में, कहीं भगवान शिव के रूप में। आज हम क्यों मानते हैं ईश्वर को? क्यों वह पूजनीय है? इसका सिर्फ एक ही कारण है, और वह है प्रेम और सिर्फ प्रेम, क्योंकि ईश्वर के अनेक रूप होते हुए भी वह अपने बंदों से एक सा प्रेम करता है और दुःख-सुख तो मनुष्य सिर्फ अपने कर्मों के अनुसार ही भोगता है। जिस प्रकार हम ईश्वर को प्रेम स्वरूप मानते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी प्रेम स्वरूप बन सकता है।
जिस प्रकार ईश्वर निराकार है और हम उसे देख नहीं सकते, किंतु उसका अहसास हमें होता है। जब हम किसी संकट में पड़ जाते हैं या हमें कोई सताता है, तब हम ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। यही वो अटूट विश्वास है जो हमें अहसास कराता है, यकीन दिलाता है कि ईश्वर है और ईश्वर के प्रति हमारी आस्था बढ़ती जाती है।
प्रेम ही तो है, जो हमें आपस में बाँधे हुए है और हमें अपनों से बिछड़ने पर जो कष्ट होता है। वो सिर्फ प्रेम के ही कारण होता है, क्योंकि हम उनसे प्रेम करते हैं, इसलिए बिछड़ने पर कष्ट का अहसास होता है। इसके विपरीत जब हम वापस लौटते हैं तो हृदय में एक उत्साह, एक खुशी का अहसास होता है। यह प्रेम ही तो है जो हमारे हृदय में मौलिक रूप से उपस्थित होता है।
ईश्वर की इस सृष्टि में अगर प्रेम न होता तो सृष्टि के संचालन की कल्पना निराधार और निर्मूल ही होती। यदि हृदय में प्रेम है तो मनुष्य प्रेम स्वरूप बन सकता है। किंतु प्रेम रहित हृदय पाषाणवत एवं नीरस है। पत्थर में प्रेम की कल्पना नहीं की जा सकती है। मनुष्य ईश्वर की अंतिम व सर्वोत्कृष्ट कृति है। प्रतीत होता है मानों ईश्वर ने मनुष्य को बनाने में अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दी हो।
ईश्वर एक है विषय पर निबंध निम्न प्रकार से लिखा गया है।
प्रस्तावना
ईश्वर एक है किन्तु उसके रूप अनेक होते है। ईश्वर निराकार है, निरवैर है। ईश्वर इस सृष्टि का रचयिता है।
इस संसार में जो भी कुछ होता है ईश्वर की रजा से होता है। ईश्वर की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता।
विस्तार
ईश्वर को सभी धर्म के लोग अपने अपने तरीके से स्मरण करते है। ईश्वर ने केवल यह सृष्टि बनाई है। धर्म नहीं बनाए। धर्म तो लोगों ने अपने अनुसार बनाए है। जब इंसान का जन्म होता है तब न तो उसके शरीर पर कपड़े होते है जिससे वस्त्रों के अनुसार उसके धर्म का पता लगाया जा सके न ही शरीर कर कोई ऐसा चिह्न रहता है कि जिससे उसका धर्म पता लगे।
हम मनुष्यों ने ही ईश्वर को विभिन्न रूपों में बांट दिया है । हिन्दू उसे भगवान तथा प्रभु कहते है , मुस्लिम के लिए वह अल्लाह व खुदा है । ईसाईयों लिए इशु है तो सिखों के लिए वाहेगुरु है। इन सभी रूपों की शिक्षा एक ही है। उस निरंकार का संदेश एक ही है ।
ईश्वर ने एक ही धर्म को मानने के लिए कहा है वह है इंसानियत व मानवता। गरीबों पर दया करना, असहायों को सहारा देना । सभी की मदद करना यही सीख दी जाती है।
ईश्वर नहीं कहता कि धर्म की आड़ में मंदिर व मस्जिद के नाम पर लड़ो। ईश्वर मंदिर या मस्जिद में नहीं रहता। वह हर इंसान के अंदर रहता है।
किसी गरीब की सहायता करके, किसी दुखी आत्मा के आंसू पोछकर हम ईश्वर का प्रेम पा सकते है।दंगे फसाद करके नहीं। ईश्वर इन सभी बातों से प्रसन्न नहीं होता।
जब ईश्वर एक है तो हम कौन होते है उसका बटवारा करने वाले, धर्म के नाम कर लड़ने वाले।
हमें उस परमात्मा का आदेश समझकर खुशी व प्यार से रहना चाहिए ।
#SPJ2
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